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________________ ३४ ] का है, विचारणीय है । वस्तुतः बङ्गाल का प्राचीन धर्म ही जैन धर्म था । बङ्गाल में यत्र तत्र सर्वत्र जैन प्रवशेष ही पाये जाते हैं। हमें इन स्थानों में कही भी बौद्ध प्रतिमायें दृष्टिगोचर नही हुई। इन विभिन्न शैली और कलात्मक प्रतिमानों का अध्ययन समय सापेक्ष है। हम तो वहीं केवल पन्द्रह मिनट ही रुके थे। जिन प्रतिमा निर्मारण शैली का प्रवाह सर्वत्र मै अनेकान्त व्याप्त था। ऐसी प्रतिमाये बिहार में भी देखने में आई है। पाकबेडरा से हम दो बजे पूंचा पहुंच गये और बस में बैठकर सीधे पुलिया स्टेशन प्रा पहुंचे । यद्यपि श्री ताजमल जी साहब और भी स्थानों में चलना चाहते थे और तीर्थाधिराज श्री सम्मेद शिखर जी की यात्रा करने की प्रबल भावना थी पर मोसम और मार्ग प्रतिकूलता ने हमे कलकत्ता लौटने को बाध्य कर दिया । अनेकान्त के ग्राहक बनिये । 'अनेकान्त' जैन समाज की एकमात्र शोध पत्रिका है। जैन साहित्य, जैन आचार्यो और जैन परम्परा का इतिहास लिखने वाले विद्वान् 'अनेकान्त' की ही सहायता लेते हैं । इसका प्रत्येक लेख पठनीय और प्रत्येक अङ्क संग्रहणीय होता है । प्रत्येक मन्दिर और वाचनालय में इसे अवश्य मँगाना चाहिये । मूल्य केवल ६) रुपया । श्री वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली - ६
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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