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का है, विचारणीय है ।
वस्तुतः बङ्गाल का प्राचीन धर्म ही जैन धर्म था । बङ्गाल में यत्र तत्र सर्वत्र जैन प्रवशेष ही पाये जाते हैं। हमें इन स्थानों में कही भी बौद्ध प्रतिमायें दृष्टिगोचर नही हुई। इन विभिन्न शैली और कलात्मक प्रतिमानों का अध्ययन समय सापेक्ष है। हम तो वहीं केवल पन्द्रह मिनट ही रुके थे। जिन प्रतिमा निर्मारण शैली का प्रवाह सर्वत्र
मै
अनेकान्त
व्याप्त था। ऐसी प्रतिमाये बिहार में भी देखने में आई है।
पाकबेडरा से हम दो बजे पूंचा पहुंच गये और बस में बैठकर सीधे पुलिया स्टेशन प्रा पहुंचे । यद्यपि श्री ताजमल जी साहब और भी स्थानों में चलना चाहते थे और तीर्थाधिराज श्री सम्मेद शिखर जी की यात्रा करने की प्रबल भावना थी पर मोसम और मार्ग प्रतिकूलता ने हमे कलकत्ता लौटने को बाध्य कर दिया ।
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श्री वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली - ६