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________________ . अनेकान्त - [ ३३ भोजी संस्कार प्राज भी विद्यमान हैं। तोरण, भामण्डलादि प्रातिहार्य युक्त है। यहाँ की प्रतिहमारा उद्देश्य था कि भाई जयहरि को साथ लेकर माओं के तोरण उपरि भाग में न होकर प्रभु के पृष्ठ भाग पाकबेडरा प्रादि उधर के प्राचीन जैन खण्डहरादि स्थानों सांची-तोरण की भांति हैं। अम्बिका नगर की ऋषभदेव में घूम कर जैन-अवशेषों का अध्ययन करे पर वे स्वयं उस प्रतिमा का तोरण इसी प्रकार का है। दूसरी प्रतिमा के तरफ गये हप नही थे अतः उन्हें कष्ट न देना उचित समझ परिकर में प्रष्टग्रह प्रतिमाये विद्यमान हैं। अम्बिका देवी हम उनके यहाँ एक दिन एक रात्रि का प्रातिथ्य ग्रहण कर की एक खड़ी हुई प्रतिमा है एवं तीन प्रतिमाएं वृक्ष युक्त रेल द्वारा प्रादा पाये। रेल लेट होने से पू'चा जाने वाली हैं। जिनमें एक में उपरि भाग में जिन प्रतिमा, वृक्ष के बस निकल चुकी थी अतः तीन घण्टों की प्रतीक्षा कर नीचे यक्ष-यक्षिणी और निम्न भाग में सप्त ग्रह मूर्तियां हैं। दूसरी बम मे बारह बजे 'पूचा' गांव पाये । यहाँ से दो दूसरी प्रतिमा के निम्न भाग में सिहासन के नीचे दो कलश ढाई मीन दूर पाकबेडरा है। हमें तो वहाँ जाकर तत्काल बने हुए हैं, जिनकी रचना शैली बङ्गाल के कलशों मे लौटना था, क्योंकि ढाई बजे की बस निकल जाने से हमें अभिन्न है । तीसरी प्रतिमा भी वृक्ष तल मे यक्ष यक्षिणी फिर एक अहोरात्र वही रहना पडता । प्रतः अपना सामान वाली है। एक शांतिनाथ स्वामी की खण्डिन प्रतिमा है वही सुनील ठाकुर नामक सज्जन की दुकान के पास रख जिसमें प्रभु का लांछन हरिण स्पष्ट परिलक्षति है। एक कर शीघ्र गति से हम लोग पाकबेडरा पहुंचे। उस दिन तीर्थकर प्रतिमा और एक चतुर्विशति तीर्थदर प्रतिमा है। वहाँ मेला होने से ग्राम्य जन मकडो को सम्पा मे एकत्र एक चौमुख मन्दिर सर्वतोभद्र और एक चतुर्मुख स्तूप भी थे । मदोन्मत्त स्त्री पुरुषों का समूह अपने गले मे ढोल- इन प्रतिमानों के मध्य में विद्यमान है। ढक्कादि वाजित बजाते हुए नाच रहा था। वे लोग यहाँ मैंने जिन यक्ष-यक्षिणी प्रतिमापो का उल्लेख जिनेश्वर भगवान की प्रतिमामो को भैरव मानकर पूजते किया है वस्तुन; यह निर्णय नहीं कई विद्वानो ने इन्हे थे। पाकबेडरा की मभी प्रतिमाये और भग्नावशेष एकही भगवान के माता-पिता और कइयो ने यक्ष-यक्षिणी माना प्रहाते मे रखे हुए थे, जिसमें प्रविष्ट होने पर मासानी से है पर मेरे विचार मे यह विध। अभी विचारणीय है प्रतः दर्शन किया जा सकता था। इसमें प्रवस्थित मभी जिन स्त्री-पुरुष जोड़ी कह सकते हैं। माता-पिता की प्रतिमा वृक्ष प्रतिमाये अव्यवस्थित ढग से पड़ी थी। ७ फुट ऊंची के नीचे हो भौर वृक्ष पर पहन्त प्रतिमा हो, यह बात तर्कखङ्गासन स्थित श्री पद्म भु स्वामी की प्रतिमा-जिमका सङ्गत नहीं लगती। भगवान् की माताओं की मूनियां परिकर नहीं था, केवल उभय पक्ष में चामरधारी इन्द्र अव- "चतुविशति जिन मातृ पट्टक" बीकानेर, जैसलमेर पाद शिए थे। प्रभूलांछन भी पूजन सामग्री मे ढक जाने से अनेक स्थानो में विद्यमान हैं पर उनमें माता की गोद मे प्रपथ लुप्त था के दर्शन किये जो ग्राम्य जनों के पूजना बालक भगवान् को दिखाया गया है। लगभग ३१ वर्ष केन्द्र थे। पूर्व क्षत्रिय कुण्ड लछुवाड़ की धर्मशाला में मैंने एक काली पाकवेडरा के इस स्थान में तीन चार मन्दिर ग्राज पाषाण की लेख सहित पन्द्रह सौ वर्ष से भी प्राचीन भी खडे है पर वे खाली पड़े हैं और प्रखण्डित-खण्डित प्रतिमा त्रिशला माता और गोद मे भगवान् महावीर की सभी अवशेष इमी प्रहाते में लाकर रख लिये गये है। यहाँ देखी थी जो कुछ दिन बाद ही वहां से गायब हो गई। कतिपय विभिन्न शैलो और विधायो की प्रतिमाये टि- शिल्प शास्त्र और मू । विज्ञान के विद्वान् इस पर विशेष गोचर हुई । भगवान् प्रादिदेव, ऋषभ प्रभु की पांच प्रति- प्रकाश डाले । जबू वृक्ष शाल्मलि प्रादि पर शाश्वत जिन माये है, जिनमें दो चौबीस तीर्थकरो को प्रतिमा परिकर बिम्बो का उल्लेख है, जिनके भी श स्त्रों में वर्णन मिलते युक्त है। एक पंचतीर्थी परिकर युक्त और दो खण्डित हैं, हैं। हमारे संग्रह मे एक दो सौ वर्ष प्राचीन सु दर चित्र में जिनमे से एक के तो दो खण्ड हुए पडे है। भगवान् महा. वृक्ष पर पहन्त प्रतिमा और सामने चतुर्विध सघ, पूजोपवीर की दो प्रतिमाय हैं जिनमें एक पचतीर्थी परिकर, करण लिये भक्तादि दिख ये हैं, पर वह भ.व भी किस हेत
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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