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________________ * अनेकान्त . बिम्ब निर्माता-युगल और: घरगेन्द्र पद्यावती युक्त थी। भी पटा था, हमें जल्दी लौटना था अत: अम्बिका नगर सिंहासन के सिह और हस के प्राकार भी परिलक्षित थे। मिष्ठान्न भण्डार से कुछ मिष्ठान्न और जल लेकर हम वहाँ के ग्राफ़िसरों के साथ उस प्रतिमा के फोटो लिये और नदी पार होकर बांकुड़ा जाने वाली बस में आकर बैठ एक मार्ग बताने वाले मजदूर को साथ लेकर हमने अम्बिका गये। ययासमय बांकुड़ा पहुँच कर धर्मशाला में निवास नगर का मार्ग पकड़ा । जाते समय तो हमें कडकडाती धूप किया। में चलते कही क्षणिक बादलों की छाया मिल जाती थी। बांकुडा को धर्मशाला बडी विशाल है. रहने की सब पर लौटते समय सारा प्राकाश मेघाच्छा हो गया और प्रकार की सुविधा है। सोने के लिये खटिपा उपलब्ध हो जोरो से तूफान चलने लगा। हम तूफान की शीतल हवा जाती है, जिसकी ग्रामदनी से पाराप्त-कबूतर लोग दाना का पानन्द लेते हुए शीघ्र गति से चलते रहे पर जब वर्षा चुगते हुए निर्मातागों, अनुमोदको, ' व्यवस्थापकों की पुण्य प्रारम्भ हुई तो हमें सड़क के पास ही एक ग्राम्य स्कूल का वृद्धि करते है। धर्मश ला की दीवारों पर सैकडो सुभाषित बरामदे वाला खाली कमरा मिल गया, जिसमे हमने और शिक्षाप्रद दोहे श्लोक लिखे हैं जो बड़ी प्रेरणातत्काल प्राश्रय ग्रहण कर लिया। पांच दस बटोही और दायक सुरुचिपूरण पद्धति है। भी पाकर बैठ गये। यह तो सयोग की ही बात थी। यदि बाँकुड से दूमरे दिन प्रातःकाल रवाना होकर हम जङ्गल में यह स्थान न मिलता तो बडी दुर्दशा होती, रेल द्वारा इन्द्रबीला पहुँचे और स्टेशन से अनतिदुर स्थित अस्तु । जब वर्षा तूफान बन्द होकर प्रासमान साफ हो गया 'महाल कोक' नामक गाँव में गये । यहाँ हमारे पूर्व परितो हम लोग कसावती और कुमारी नदी के सङ्गम पर बसे __चित जयहरि श्रावक का निवास स्थान है। ये सराक भाई अम्बिकानगर मे नदी के पार जा पहुंचे। सुसस्कृत और जैन शिक्षा-दीक्षा से सुपरिचित होने के साथ अम्विका नगर, अम्बिका देवी के मन्दिर के कारण साथ राजस्थान, बङ्गाल, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात और प्रसिद्ध है । मन्दिर के पुजारी महोदय को हमने बुलवा कर उत्तरप्रदेशादि के सभी जैन तीर्थों में घूमे हुए हैं और जैन मन्दिर खुलवाया। इसके शिलालेख मे विदित हा कि इस के प्रचार कार्य व साधुजन सेवा मे ही इनकी रुचि रही मन्दिर का जीर्णोद्धार सन् १३२० ता० १६ फाल्गुण को रही है। कई वर्ष पूर्व जब यहाँ से निकटवर्ती तालाजुड़ी राजा राइचरण धवल ने रानी लक्ष्मीप्रिया देवी की गाँव मे भगवान आदिनाथ स्वामी की पद्मासनस्थ प्रतिमा स्मृति मे कराया था। वस्त्र परिधान युक्त देवी के स्वरूप तालाब के पाल पर प्रकट हुई थी, उस समय मैं श्री ताज. प्रतिमा लक्षणादि का हम ठीक ठीक प्राकलन न कर सके मल जी साहब वोथरा के लघु भ्राता श्री हनुमानमल जी पर यह खड़ी हुई मूर्ति है और जैन शासनदेवी अम्बिका बोथरा के साथ यहाँ पाया था। पोर इन्ही के यहाँ प्रेममूर्ति से भिन्न कचित् भिन्न शैली को परिलक्षित हुई। पूर्ण वातावरण में ठहर कर ताल जुड़ी जाकर प्रभु दर्शन अम्बिका नगर मे अम्बिका मन्दिर के पृष्ठ भाग में एक किये । अब यह प्रतिमा श्री ताजमल जी वोथरा एव तत्रस्थ जैन मन्दिर अवस्थित है, जिसमें पोड़ा अन्वेरा पड़ता था सराक बन्धु के प्रयत्न से कलकत्ता प्रा गई मौर बडे मन्दिर पर उस में प्रतिष्ठित-अवस्थित भगवान मादिनाथ, ऋषभदेव में विराजमान है । महाल कोक में कुल ३० घरो की छोटी म्वामी की सपरिकर प्रतिमा अत्यन्त सुन्दर है। प्रभु के पृष्ठ सी साफ सुयरी बस्ती है जिसमें १२ घर सराको के हैं। भाग में तोरण, जो समवशरण के तोरण का प्रतीक है हमने यहाँ एवं इधर के कई गांवों में हिन्दुओं के घरों की और प्रभामण्डल को कलापूर्ण है। भगवान् के मस्तक पर दीवाल पर चारो ओर एक काली सी धारी पट्टी दृष्टिगोचर जटा केशविन्यास अत्यन्त सुन्दर हैं । सिंहासन के नीचे वृषभ होती है जो रोहण मनसा पूजा का प्रतीक बतलाया जाता वाछन स्पष्ट है। प्रभु प्रतिमा पायः करके प्रखण्ड और है। सराक लोग जन धर्माचार विस्मृत होकर बङ्गाल के देवी अत्यन्त मनोज्ञ है । अम्बिका मन्दिर के दाहिनी और चौकी पूजा आदि को मान्य करने लगे हैं पर शताब्दियां बीत गई पर कुछ शिल्पाकृति-गोवर्धन और कुछ लिपि वाला प्रस्तर सम्पर्क छूट गया फिर भी खान-पान में शुद्ध निरामिष
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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