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* अनेकान्त .
राजा श्री वीरसिंह ने करवाई थी।
जिस पर ग्राम्य जन कभी कभार सिन्दूर प्रादिकी टोकी सतरहवी शती के उत्तरार्द्ध में सजा वीरसिंह ने पत्थरों लगा देते होंगे। पर प्राश्चर्य है कि एक दुकानदार ने हमें द्वारा प्रवेशद्वार का निर्माण करवाया, दुर्ग-प्रवेश के लिये जैन मन्दिर बतलाते हुए इस स्थान पर पहुंचा दिया। पूर्वकाल मे यही एक प्रवेश द्वार वा। आगे चलने पर एम बहुलारा वाली प्रतिमा की भाँति इस प्रतिमा के परिकर प्रस्तरमय निमंजिला रथ पाता है। प्रस्तरमय रथ को में अष्टग्रह, महाप्रातिहार्य, धरणेन्द्र पन वती पौर बिम्ब प्रथा बङ्गाल, बिहार, उड़ीसा के अतिरिक्त सुदूर मैसूर निर्माता युगल की सुरुचिपूर्ण कलाभिव्यक्ति प्रेक्षणीय थी। राज्य के हम्पी तक मे पाई जाती है। हमी का रथ बड़ा हाडमासरा से हम लोग जीप मे तत्काल लौट पाये। ही सुन्दर है और इसी प्रकार कोणार्क का भी। रथयात्रा दूसरे दिन ता० २६ को प्रात:काल हम रियो द्वारा की प्रथा एक ऐसी प्राचीन प्रथा है जिससे लोगों को घर बांकुड़ा धर्मशाला से 'इकतेश्वर' महादेव गये। वहाँ इम बैठे भगवान के दर्शन हो जाते थे। वसुदेव हिण्डो नामक की बड़ी ख्याति है। मन्दिर के बाहर नारियल, प्रसाद, प्राचीन महत्वपूर्ण जैन ग्रन्थ में इसे प्रति प्राचीन काल से मिष्ठान्न की दुकाने हैं और पण्डे लोग खडे रहते हैं। मन्दिर चली आयी परम्परा बतलायी है।
में कुछ सीढियों उतरने पर जमीन पर रहे हए एक स्वाभामदनमोहन मन्दिर की प्रतिष्ठा सन १६६४ में राजा विक त्रिकोण से लम्बे पाषाण खंड के तलघर में दर्शन हा। दुर्जनपिह ने करवाई थी। यह भी बङ्गाल को तत्कालीन कहा जाता है कि यहाँ भगवान् शङ्कर का यही रूप है। टाली की कोरणी (Terracota)का सन्दर नमना है। इस चमत्कारी स्थान पर भक्त लोग 'धरणा' देकर सो मन्ने श्वर शिव मन्दिर का निर्माण भी सन १६२२ में वीर जाते हैं और अपने कार्य सिद्धि का वरदान पाकर ही लौटते हमीरसह ने करवाया था।
है, ऐसा कहा जाता है। विष्णापर में ख-शिल्पियों का काम भी सर जोरों बांका में बस द्वारा हम गौरावाडी गये। वह मे पर है । सैकड़ों घर इसी व्यापार-उद्योग से अपने परिवार कंसावती नदी के तट पर बंधे हुए बांध के पास पारसनाथ का पालन करते है । शख को प्रस्तर शिलानों पर घिस कर नामक गांव था। गाँव के स्थान पर सरकार को प्रोर से अर्ड चन्द्राकार काच (करोड) से अगूठी सांखा चूड़ी प्रादि बाष
बाबा बांध का काम चालू है, इसलिये गाँव वालो के कथनानुसार विविध प्रकार की वस्तुयें तैयार करते हैं। शंख का करोत हमें ग्राषा थी कि वहाँ जाने के लिये सरकारी ट्रकों द्वारा विरहिणी के विरह की भांति जाते प्राते दोनो तरफ काटता जाने माने की सुविधा मिल जायेगो पर जहाँ हम गौराही रहता है । विष्णुपुर के ताँतो लोग वस बुनते हैं, ठठेरे वाड़ी की कालोनी में उतरे, सभी प्राफिस शायद शनिवार कसेरे बर्तन बनाते हैं । यहाँ सराक बन्धुषों के लगभग ३० या अन्य किसी कारण से बन्द थे। हमे एक विद्यार्थी घर होंगे। सराकों के घरों में खड़ियां लगी है और वे सूत और एक महिला का अच्छा साथ मिल गया जो अपने-अपने बमादि का व्यवसाय करते हैं।
गांव जा रहे थे। हम पैदल ही उनके साथ चल पडे । विष्णुपुर से ता० २१ शुक्रवार को हम लोग बस मध्याह्न का समय था, विद्यार्थी ने हमें तीन चार मील साथ द्वारा बांकुड़ा पाये। जिले का मुख्य नगर होने से बांकुडा चलकर जहाँ बांध का सरकारी प्राफिस था, पहुँचा दिया एक बहुत बडा नगर है। सुख सुविधापूर्ण मारवाड़ी धर्म- और उसने अपने गांव का मार्ग पकडा । शाला, नूतनगंज में ठहरे मोर बीकानेर के ही एक अनुभवी बांध के पास पहाड़ी टीले पर सरकारी प्राफिस था । सहृदय व्यास जी के सुप्रबन्ध में दो दिन रहे। भोजनोपरांत पारसनाथ गाँव का तो नाम शेष हो गया पर वहाँ माफिस जीर लेकर यहाँ से हम हाडमासरा गये। वहाँ गांव के के पृष्ठ भाग में हमने एक शिव मूर्ति, नन्दी और कुछ प्रस्तर अन्त में एक पत्थर के शिखरयुक्त छोटा मन्दिर देखा जिसमें खण्ड देखे । इसी पहाड़ी पर भगवान् पार्श्वनाथ की एक बल्मीक के ढेर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। इसके पीछे विशाल प्रतिमा जो दो टुकड़ों में विभक्त थी, वहाँ वालो ने जङ्गल में एक पाश्वनाथ भगवान की प्रतिमा खड़ी थी, हमें बतलाया। यह प्रतिमा परिकर में चौबीसी प्रतिमायें,