SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ** अनेकात * भुवनेश्वर प्रादि उत्कल प्रान्तीय मन्दिरो की स्मृति ताजी थे, परन्तु इस र समच' स्थान की निर्माण शैली ऐसी हो जाती है। इसके प्रास-पास कभी छोटे-छोटे दूसरे मन्दिर विचित्र है कि इतने विशाल पिरामिड प्राकृति वाले इस भी थे जो पब ध्वस्त हो चुके हैं। नीचे की तरफ कुछ स्थान मे स्तभ बाहुल्य तीन जगती के अन्तराल में सर्वत्र चौरस और गोल चौकियां बनी हुई है जो किन्ही ध्वस्त दशन दुर्लभ होते हैं। इसे सन् १५८७ ई. पास-पास स्तूगो के प्रतीक हो ऐसा अनुमान किया जा सकता है। वीर हमीर नामक मल्ल मजा ने निर्माण करवाया था। इस मन्दिर के चतुर्दिक शिल्पाकृतियाँ उत्कोरिणत है । मन्दिर इस मन्दिर के सामने एक अहाते में दल मादल नामक के मध्य मे शिव मूति है। सामने वेदी पर तीन प्रतिमाये विशालकाय अद्भत तोप रखी। जो सन् १७४२ की बनी हैं। मध्यवर्ती प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथ की है जिसे वहाँ हुई है। इस कमान का वजन ३०० मन है और स ढे बारह वालो ने 'अनन्तदेव' को प्रतिमा बतलाया। मालूम देता है फुट लम्बी है । इसका मुहाना १ फुट का है और बनाने मे कि कभी वहाँ अनन्तदेव गोत्रीय सराको की बस्ती रही एक लाख रुपये लगे थे। सन् १७४२ मे जच मल्ल राज्य होगी। यह पार्श्वनाथ प्रतिमा अष्ट महाप्रातिहार्य और पर मराठो ने पाक्रमण किया तब यही नोप उनकी रक्षा धरणेन्द्र पद्मावती युक्त है। ऊपर सप्तफरण और पृष्ठ भाग मे काम पाती थी। में भी सर्पाकृति है। परिकर में उभयपक्ष मे अष्टग्रह की विष्णुपुर के अनेक मन्दिर बड़े ही सुन्दर शिल्पाकृति प्रतिमायें स्पष्ट निर्मित हैं, बङ्गाल और बिहार की सहखा- वाले बङ्गाल की अद्भुत कला शैली से युक्त हैं। जिस प्रकार न्दि पूर्ववर्ती मूत्तिकला मे सेव ग्रहो के प्राकार स्पष्ट परि- प्राबू के जैन मन्दिरो में प्रस्तर भास्कर्य अपनी सूक्ष्मता की लक्षित होते हैं। राजगृह-वैभारगिरि के खण्डहर स्थित पराकाष्ठा के प्रबल प्रतीक हैं उसी प्रकार यहाँ के मन्दिर प्रतिमा के परिकर में ऐसी ही नवग्रह प्रतिमायें है जिनकी अपने टाली भाँस्कयं निर्माण के लिये बेजोड और अद्भुत वेशभूषा हमें कुषाणकालीन समय तक ले जाकर खडा कर हैं। राधा माधव का मन्दिर मन् १७३७ में राजा कृष्णसिंह देती है, जबकि परिवर्ती काल में पश्चिम भारत मे वे केवल की पत्नी रानी चूडामरिण देवी ने बनवाया था। यहां से सूक्ष्म चिह्न मात्र पच तीथियों में भवशिष्ट रह गये थे। लाल बांध नामक विशाल जलाशय को देखने नये, इसके भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा के निम्न भाग में धरणेन्द्र पास सर्वमङ्गला देवी का मन्दिर है । जब स्वामी रामकृष्ण पद्मावती हैं और मूत्ति-निर्मापक दम्पत्ति-युगल की चैत्य परमहंस यहाँ दर्शन करने प्राये, तब उन्हें भाव समाधि हो वन्दना करती हुई प्रतिमायें तो प्रायः सभी तीर्थकर प्रति- गई थी। लाल बांध से पाते समय एक टेकरी पर 'गुमगढ' मामो में उपलब्ध हैं। यह मन्दिर पुरातत्व विभाग के नामक स्थान दष्टिगोचर हुपा जो गवाक्ष-द्वारादि से बिहीन अधीन है। विचित्रता युक्त था । कहा जाता है कि मल्ल राजा लोग लूट बहुलारा से वापस पाते पौधा होकर विष्णुपुर पहुँचते का माल इसी स्थान में सुद्धित प्रच्छन्न रखते थे। पहुँचते भगवान् अंशुमाली प्रस्ताचल पर जा खड़े हुए। क्यामराय का मन्दिर सन् १६४०ई० में रधुनावसिंह हमने रात्रि में रामपद मण्डल के घर में विश्राम किया और ने निर्माण कराया था। पाश्चर्य तो यह है कि इतने विशाल प्रातःकाल विष्णुपुर के ऐतिहासिक स्थानों की शोभा देखने मन्दिर में कही इच भर भी जगह शिल्पाकृति से रिक्त नहीं के लिये निकल पड़े। छोड़ा । जोड़ा शिव मन्दिर-कृष्ण बलराम मन्दिर रघुनाथ विष्णुपुर इस समय बांकुड़ा जिले में है, मध्यकाल में सिंह द्वितीय द्वारा विस्थापित है। जोड़ बङ्गला मन्दिर भी यह स्थान मन्त्रभूमि की राजधानी पी पौर माज भी प्रशस्त कोरणी युक्त है, इसकी छत का निर्माण दो संलग्न दुकानों के साइनबोर्डों तक में अनेकशः यह नाम अभिहित दुबालों वाले बङ्गले की भांति है। राधा श्याम मन्दिर सन् देखा जाता है। हम सर्वप्रथम पुरातत्व विभाग के अधीन १.५८ मे राजा चैतन्यसिंह द्वारा प्रतिष्ठापित है। विभिन्न 'रासमंच' नामक स्थान में गये । कहा जाता है कि रास पौराणिक और अवतार परित्रादि की शिल्प समृद्धि अत्यंत विशेष अवसर पर समस्त मन्दिरों के विग्रह यहाँ लाये जाते प्रेक्षणीय है। सन १६५८ में लाल जी मन्दिर की प्रतिष्ठा
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy