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• अनेकान्त -
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इसके अतिरिक्त यदि निर्धारण भाव है तो वह अनुपादाय इसलिए यह युक्त नहीं है। कैसे है. (किसी के कार पन् +प्राधित), क्योंकि कोई यदि कोई कहे कि निर्माण पक्षाव है तो वह फिर भाव मनपादाय नहीं होता है। भाववादियों को उत्तर देत अनुपादाय (किसी के ऊपर अन्+प्राश्रित) कैसे हो सकता हए प्राचार्य कहते हैं कि यदि निर्वाण भाव है तो वह है क्योकि कोई भी ऐसा प्रभाव नहीं है जो अनुपादाय उपादाय (द्रव्य) होगा प्रर्षात् वह अपने कारण सामग्री हो। माध्यमिक कहता है कि किसी भी समाचबा मनिपर पाश्रित होगा किन्तु उपादाय निर्वाण की ब त इष्ट नही त्यता की प्रजसि भाव को लेकर होती है। रविवारण (जो है परन्तु अनुपादाय निर्वाण की बात कही जाती है । अतः ही नहीं) उनकी अनित्यता की बात कोई नही कहता यदि निर्वाण एक भाव है तो वह अनुपादाय निर्वाण कैसे है। लक्षण को प्राधित कर लक्ष्य की प्राप्ति होती है। होगा, इसलिए निर्वाण भाव होने के कारण विज्ञान आदि इसलिए प्रभाव की कल्पना भी उपादाय (स पेक्ष) होती की तरह उपादाय होगा, अनुपादाय नहीं। क्योंकि कोई है। यदि निर्वाण सभाब है तो अनुपादाय कैसे हो सकता भाव अनुपादाय नहीं होता। इसका कारण बतलाते हुए है। वह तो उपादाय ही होगा क्योकि बह प्रभाव है, नागार्जुन कहते हैं कि कोई भाव अनुपादाय होता ही मही विनाश धर्म है। इसी से ही प्राचार्य ने कहा है कि कोई नानुपादाय कश्चिद मावो हि विद्यते)।
भी प्रभाव अनुपादाय नहीं हो सकता। पूर्वपक्ष कहता है पूर्वपक्षी पूछता है कि यदि उपरोक्त दोषो के कारण
कि यदि भाव अनुपादाय नही है (वह उपादाय है) तो क्या
बन्ध्या पुत्र प्रादि प्रभाव भी किसी के उपादाय है । पाचार्य निर्वाण भाव नही है तो क्या निर्वाण प्रभाव है जिसमे कनेश जन्म जी निवृत्तिमात्र होती है। प्राचार्य कहते है कि
इसका उत्तर देते हुए कहते है कि बन्ध्या पुत्र प्रादि को यह भी युक्त नही है क्योकि यदि निर्वाण भाव नहीं है तो
प्रभाव किसने कहा है क्योंकि भाव ही यदि नही हैं तो प्रभाव कैसे होगा, चूकि जहां भाव नही है तो वहाँ प्रभाव
प्रभाव सिद्ध ही नहीं होता। भाव के अन्यथा भाव को ही भी नही है।
लोग अभाव कहते हैं। अतः बन्ध्या पुत्र आदि का प्रभाव
तो सिद्ध ही नहीं होता। यदि निर्वाण क्लेश-जन्म का प्रभाव है तो निर्वाण क्लेश जन्म की पनित्यता कहा जायगा। कारण कि मनि- पूर्वपक्ष पूछता है कि यदि निरम माव भी नहीं है, त्यता और कुछ नही क्लेश जन्म का प्रभाव है प्रतः प्रभाव भी नहीं है तो फिर निर्वाण है क्या ? प्राचार्य निर्वाण अनित्यता होगा और यह इष्ट नहीं है क्योंकि नामागुन उत्तर देते हुए कहते हैं कि भगवान् तथागत ने फिर तो बिना यत्न के ही (अर्थात् बिना शील, समाधि, कहा है यह जो ससार, जन्म परम्परा (माजवजनीभाव) प्रज्ञा और भावना के ही) मोक्ष का प्रसङ्ग पा जावेगा। है वह उगदाय (माश्रित) एक प्रतीत्य (सापेक्ष) है किन्तु
-- जो निर्वाण है वह प्रतीत्य एवं अनुपादाय है। चन्द्रकीति १-मावश्न यदि निर्वाणमनुपादाय तत्कथम्
ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि यह जन्म परम्परा निरिणं मानुपावाय कश्रिद मावो हि विद्यते।
(सत्त्वों का गमनागमन भाव) है वह कभी हेतु प्रत्यय -..शा. २५६, पृष्ठ/२३० मामयीनोपाश्रित होकर प्रज्ञाप्त होता है यथा दीर्घ वस्तु २-पवि मावोन निर्वाणममावः कि भविष्यति निर्वावं या मावोन नामावस्ता विद्यते।
१-यचमावत्र निवारणमनुपाबावसकवर -.शा. २५/७ पृष्ठ २३० मिमि घमावोऽस्ति पोऽनुपादाय विद्यते ।। ३-लेशजन्मनोरमावो निर्वाणमिति चेत्, एवं तहि क्लेश
-म. शा. २५/- पृष्ठ २३१ जन्मनोरनित्यता निर्वाणमिति स्यात्। अनित्यतयहि २-य माजवंजवोगाव उपावाय प्रतीत्य वा क्लेशचन्ममोरगावो नाम्पा प्रतः प्रनित्यतंब निरिणं सोप्रतीत्यानुपावाय निर्वालमुपदिश्यते। स्वात।-म. शा. पृष्ठ २३०-३१
-म. शा. २५/६ पृष्ठ २३१