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. अनेकान्त . सोपषि शेष और निरुषि शेष निर्वाणधातु ।' यहाँ पाश्रय विज्ञान की व्यावृत्ति को निर्वाण कहा जाता है।' सर्व का अर्थ है समी धर्मों का बीज मालय विज्ञान । उसकी विज्ञान स्वभाव वासनामय मनोविज्ञान एवं रष्टियुक्त वासपरावृत्ति का पर्ण है द्विविध दोष्ठुल्य वासनापों के अभाव नामों की परावृत्ति ही निर्वाण कहा जाता है। यह वित्त से उसकी निवृत्ति होने पर कर्मण्यता और धर्मकाय स्वभावत: प्रभास्वर है, पर भागन्तुक क्लेशों से उपक्लिष्ट ऐक्यभाव के नाम से परिवर्तन होना। वही पुनः पाश्रय होता है। जिस प्रकार मल सहित वस्त्र मल के दूर हो जाने परावृत्ति है । वह किसके प्रहाण से प्राप्ति होती है ? इसको पर शुद्ध हो जाता है, जिस प्रक र सुवर्णमल के क्षीण हो दर्शाया गया है कि दो प्रकार के दोष्ठुल्य की हानि से । दो जाने पर शुद्ध रूप में स्थित हो जाता है, उसी प्रकार चित्त प्रकार से अभिप्राय है-क्लेशावरण दौष्ठुल्य और ज्ञेयावरण समस्त क्लेशो के प्रहीन होने से अपने परम परिशुद्ध प्रकृत दोष्ठुल्य । पाश्रय की प्रकर्मण्यता को दौण्ठल्य कहते हैं। प्रभास्वर रूप ने परिणत हो जाता है। यही परम परिवही क्लेशावरण एवं ज्ञेयावरण का बीज है।
शुद्ध विकल्परहित चित्त की अवस्था की प्राप्ति निर्वाण की पालय विज्ञान की व्यावृत्ति किस अवस्था में तथा प्राप्ति है। तथता, यून्यता, धर्मघातु मादि इसी के पर्याय कैसी होती है इसकी चर्चा करना उचित है। प्रकरण में हैं। कहा गया है कि इसकी (मालय विज्ञान की) व्यावृत्ति निर्वाण दो प्रकार का बतलाया गया है-सोपधिशेष पहत्व की अवस्था में होती है। क्षयज्ञान तथा अनुत्पत्ति निर्वाण धातु तथा निरुपधिशेष निर्वाण धतु । इनमें सोपभि शान से महत्व की प्राप्ति होती है। उस अवस्था में प्रालय शेष निर्वाण दृष्ट धर्म वेदनीय है तथा निरुपषिशेष निर्वाण विज्ञान स्थित समस्त दौष्ठुल्य का निरवशेष प्रहाण हो मरणोत्तर प्राप्त होता है। जो क्लेशोपक्लेश चित्त ही के जाता है तथा भविष्य में उनकी उत्पत्ति की संभावना नही परिणाम शेष से पथाशक्ति वासनावृत्ति का लाम होने से रह जाती है। यही महत्त्व प्रर्थान् निर्वाण की अवस्था है। प्रवृत्त होते हैं, उनके पालयविज्ञान में स्थित जो बीज हैं, वे
लक्तावतार सूत्र में कहा गया है कि विकल्पमनो- उनके साथ होने वाले क्लेश प्रतिपक्ष मार्ग से नष्ट हो जाते १-तत्र संसारप्रवृत्तिः निकायसमागान्तरेषु प्रतिसन्धि बधः।
-है। बीज के नष्ट होने पर पुनः उस पाश्रय से क्लेशों की निवृत्तिः सोपषिशेषो निस्पषिशेष निर्वाण पातु ।
उत्पत्ति नहीं होती है, अत: सोपधिशेष निव रिण की प्राप्ति
होती है। इसे ही जीवन्मुक्ति कहा जा सकता है। यह २-मायोऽत्र सर्वबीजकमालयविज्ञानम् । तस्य परावृत्ति
पालयविज्ञान का पाश्रय परावृत्तिपूर्वक विमल विज्ञान में रया दोष्ठुल्य व्यवासनामावेन निवृत्ती सत्यां कर्मण्यता
रूपान्तरण या परिणति है। धर्मकायाद्वयज्ञानमावेन परावृत्तिः । सा पुनरामय परावृत्तिः
पुनः पूर्वकों द्वारा पाक्षिप्त जन्म के नष्ट हो जाने से कस्य प्रहाणात प्राप्यते ? प्रत माह-द्विषा गोष्ठुल्य -विकल्पस्य मनोविज्ञानस्य श्यावृत्ति निर्वाणमित्युच्यते।' हानितः।' विति, क्लेशावरण दौष्ठुल्यं ज्ञेयावरण -संकाव. पृष्ठ ५१ गोष्ठुल्यं । दौठुल्यं पापयस्य कर्मण्यता । तत् पुनः २-सर्वविज्ञान स्वमाव वासनालय मनोविज्ञान सृष्टि वासना क्लेश यावरणयोः बीजम् ।'-वही पृट १००
परावृत्ति निर्धारणमित्युच्यते।-बही पृष्ठ ४१ -तस्य व्यावृत्तिरहरवे तवाश्रित्य प्रवर्तते।'–त्रिशि० -वही गायो ७५३-५६ (अध्याय १०) पृष्ठ १५६-५७ का०५
४-विकल्पस्या प्रवृत्तिरनुत्पादो निर्वाणमिति पदामि। ४-'कि पुनरर्हत्त्वं यद्योगावहनियुच्यते ? कस्य पुनर्योगाद
-वही पृ१ हनित्युस्यते ? क्षयज्ञानानुत्पाद जान लामात् । तस्या ५-सयता शून्यताकोटि निर्वाणं धर्मधातुकम् । झवस्थायामालपविज्ञानाधित वौष्ठल्य मिरवशेष प्रहा- कायं मनोमयं चित्रं चित्तमात्रं वदाम्यहम् ॥ बाबालय विज्ञानं व्यावृत्तं भवति सेब चाहंदवल्या। -विज्ञहिमा. पृष्ठ ४४
६-२० विज्ञप्तिमा० पृष्ठ ८७ (गे• तिवारी)
वही
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- पुन अयशानामुल्य निया