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महायान बौद्धदर्शन
में
निर्वाण की कल्पना
बौद्धदर्शन मे निर्वारण की कल्पना का प्रत्यधिक महत्व है। बौद्ध साधक का अन्तिम लक्ष्य भी निर्वाण ही है । महायानी निर्वाण की कल्पना अपने ढङ्ग से ही स्वीकार करते हैं। वे मानते हैं कि हीनयानियो के निर्वाण मे केवल क्लेशावरण का क्षय ही होता है किन्तु वे कहते हैं कि क्लेशाकरण मिटने के बाद ज्ञेयावरण शेष रहता है । चाचार्य वसुबन्धु ने 'विज्ञप्तिमात्रता सिद्धि' में दो नेम्यो का उल्लेख किया है जो हैं - ( १ ) पुदुगलनंस्मय ( २ ) धर्मनैरात्म्य | पुद्गलनेरात्म्य क्लेशावरण का क्षय है। सत्व सत्कायदृष्टि के कारण नाना प्रकुशल कर्मो का उपार्जन करता है। राग द्वेष एव मोह रूप बहुतेरे क्लेशों को करता है तथा दुःखों के भार को उठाता है किन्तु जब सत्त्व बीतराग, वीतष एवं वीतमोह होता है तब उसके क्लेश होण हो जाते हैं । क्लेशों का प्रहीण ही फुगलनेरात्म्य है । २ इसे हीनयानी स्थापना माना गया है।
जब सस्व संसार के सब पदार्थों में शून्यता का ज्ञान प्राप्त करता है तब उसके सच्चे ज्ञान के ऊपर पड़ा हुआ प्रावरण स्वयमेव हट जाता है और वह मुक्ति को प्राप्त करता है। उस मुक्ति में उसे सर्वज्ञता की प्राप्ति होती है । इस प्रकार यह सर्वेशता की प्राप्ति ज्ञेयावरण के हट जाने से
१-३० विमला सिद्धि-विधिका कारिका १० । २- ३-३० डॉ० महेश तिवारी- विज्ञसिपत्र सिद्धि-पूड २७
- धर्मचन्द्र जैन, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र
ही होती है और ज्ञेयावरण सब ज्ञेय पदार्थों के ऊपर ज्ञान की प्रवृत्ति को रोकता है। घतः जब ज्ञेयावरण दूर हो जाता है तब सब पदार्थों में अप्रतिहत ज्ञान प्राप्त होता है मौर इसी से ही सर्वशता की प्राप्ति होती है ।
महाकान के मुख्यतः दो प्रसिद्ध मत हैं-विज्ञानवाद एवं सून्यवाद। इनको योगाचार एवं माध्यमिक मत से की भिहित किया जाता है। इन दोनों मतों में निर्धारण पर सविस्तार विचार किया गया है। अब हम पहले योगाचार मत मे निर्वारण की कल्पना पर संक्षेप में विचार करेंगे । योगाचार मत में निर्वारण :
विज्ञानवाद, जो बौद्ध चिन्तन का एक उत्कर्ष माना जाता है, उसमें जिस प्रकार निर्वारण के स्वरूप, निरूपण एवं स्थापन सम्बन्धी चर्चा की गई है उसे यहाँ कहेंगे । प्रालय विज्ञान की कल्पना योगाचार मत की एक विशेष देन है । 'प्रालय विज्ञान' वह तत्व है जिसमें जमत् के समस्त धर्मों के बीज निहित रहते हैं, उत्पन्न होते हैं तथा पुनः विलीन हो जाते हैं। प्रकरणों में घाता है कि 'श्रालय विज्ञान' के बिना ससार की प्रवृत्ति या निवृत्ति सम्भव नहीं है।" ससार की प्रवृत्ति का अर्थ है अन्यनिक्तवसभाग शरीर की प्रतिसन्धि का बन्ध और निवृत्ति का अर्थ है १. विज्ञानम्सरेण संसार प्रवृत्तिनि तिर्वा कुन्यते - विज्ञप्तिमा० पृष्ठ ८४ (डॉ० महेश तिवारी)