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________________ . अनेकान्त * मूर्ति, पनागर' एव सोहागपुर से प्राप्त प्रबिका को प्रति- हैं। किन्तु जैन धर्म इन अत्याचारो को सहन कर जीवित मानों के अतिरिक्त सम्पूर्ण जबलपुर, दमोह, सागर, रीवा रहा, यह उसके अहिंसा सिद्धात की विशेषता थी। प्रादि जिलो मे इन मूर्तियों के बाहुल्य से जैन धर्म का विज्जलदेव के शासन काल में जैन धर्म उन्नत अवस्था व्यापक प्रभाव सिद्ध होता है। मे रहा। सम्राट् स्वय धर्म की प्रभावना के लिये अग्रसर रहते थे। उन्होंने स्वयं कई जैन मन्दिरों का निर्माण प्राचार्य मिराशी का अनुमान है कि सोहागपुर मे जैन कराया था। उनका अनुकरण उनके सामतों और प्रजा मंदिर थे। सोहागपुर के ठाकुर के महल मे अनेक जैन ने भी किया। वि० सं०१०८३ ई० में माणिक्य भट्टारक मूर्तियां सरक्षित हैं। इनमें से एक पार्श्वनाथ एव दूसरी के निमित्त से कन्नडिगे मे एक जिन मन्दिर बना था। सुपाश्वनाथ से सम्बन्धित है। सवत् १०८४ में कीति सेहने पोन्नति वेलहुगे और वेण्णेदक्षिगा कौशल के कलनुरि नरेश एवं जैन धर्म यूर में श्री पार्श्वनाथ के मन्दिर बनवाये थे। कलचुरियों के शिलालेखो में जिन भगवान् की मूर्ति यक्ष, यक्षणियो दक्षिण कौशल के कलचुरियो के काल के अभिलेखो मे सहित अङ्कित रहती थी।" जैन धर्म का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। परन्तु उस क्षेत्र लिङ्गायतो के बसवपुराण में लिखा है कि विज्जल मे अनेको जैन प्रतिमाये, रतनपुर, धनपूर तथा मल्लार एव के प्रधान बलदेव जैन धर्मानुयायी थे। उनकी मृत्यु के ग्रारङ्ग आदि स्थलो से प्राप्त हुई है जिनके आधार पर इस पश्चात् उनके भांजे बसव की प्रसिद्ध एव सद्गुणो से प्रभाक्षेत्र मे जैन धर्म के प्रसार एव अस्तित्व का बोष होता है। वित हो विज्जल ने उसे अपना सेनापति एवं कोषाध्यक्ष नियुक्त किया। बसव ने अवसर का लाभ उठाकर अपने कल्याण के कलबुरि नरेश एव जैन धर्म धर्मप्रचार हेतु राजकोष का खूब धन खर्च किया। इस कल्याण के कलचुरि नरेशों के काल मे भी जैन धर्म प्रकार विज्जल ने हल्लेइज एव मधुवेय्य नामक दो जनमो का अस्तित्व प्रमाणित होता है। इस वंश के प्रमुख नरेश की प्रखि निकलवा ली। यह सुन बसव कल्याणी से भाग बिजल एवं उनके राज्य कर्मचारी जैन धर्म के पोषक थे। गया परन्तु उसके द्वारा भेजे गये जगदेव नामक व्यक्ति ने सन् १२०० ई० में कलचुरि राज्यमंत्री रेचम्पय ने श्रवण । विज्जल का अन्त कर दिया। बेलागोला मे शातिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित यद्यपि कलचुरियो का राज्य कल्याणी में अल्पकालीन था परन्तु धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था। उनके काल करायी थी। बिजल के काल में जैन धर्म का अस्तित्व घट मे ही कर्णाटक मे लिङ्गायत संप्रदाय का प्रचार हुप्रा । गया एवं लिगायत सम्प्रदाय का प्राबल्य हुमा । 'सासव जैनियो को इनके द्वारा बहुत त्रास सहन करना पड़ा परन्तु पुगण' एवं 'विजलवीर चरित' में जैन एवं जैव धर्मा उस धर्म पर जैन धर्म का भी अत्यधिक प्रभाव पड़े बिना वलम्बी लोगो के मध्य हुए संघर्ष का वर्णन है। शंवो ने धर्म प्रचार हेतु हठयोग का सहारा लिया । वे चमत्कारिक कृत्यो द्वारा जनता को मुग्ध करने लगे। उनमें एकात रामय्य प्रमुख था। उस समय अझलूर जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र था। रामय्य ने जैनियों द्वारा विजल से शिका- यत की गई। विज्जल ने रायय्य को समझा कर एव उसके सोमनाथ के मन्दिर को कुछ भेट देकर विदा किया। इस मन्दिर में जैनों पर अत्याचार के चित्र भी उत्कीर्ण ६-खण्डहरों का वैभव पृष्ठ १७४ । ७-एच. टी. एम. पृष्ट १०० । -मीडिइवल जैनिज्म-श्री मास्कर प्रानंद पृष्ठ २८१, जैनिज्म एंड कर्नाटक कल्चर-शर्मा १९४० पृष्ठ ३५ एवं मागे, कामताप्रसाद जैन द्वारा सक्षित जैन इतिहास भाग ३ खण्ड ४ के पृष्ठ ११५ पर उद्धत । E-वही पृष्ठ १६। १०-जैम ऐण्टीक्वेरी | पृष्ठ ६७-६८ ११-का०६० इ. ४१-क्रमा ४२ पद्य ३३ ।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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