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अनेकान्त -
दीवान हाफिज का पद्यानुवाद
गुमानीराम भांवसा का नहीं है
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-श्री प्रगरचन्द नाहटा 'अनेकान्त' के मई जून १६७३ के अङ्क मे डॉ० से प्राईने पकवरी की प्रति तो बीकानेर के राजकीय अनूप गजानन्द मिश्र का लेख-'राजस्थान के जैन कवि और संस्कृत लायब्रेरी में मैंने स्वय देखी है। इस ग्रन्थालय के उनकी रचनाएँ' नामक प्रकाशित हुप्रा है । इसमें सर्वप्रथम राजस्थली विभाग को प्रकाशित सूची में प्रति नं० १७६ गुमानीराम भावसा का परिचय देते हुए उनका जन्म १८१८ के विवरण में इस ग्रन्थ का 'कायस्थ गुमानीराम लिखित । के पास-पास बतलाया है, जो कि पं० टोडरमल जी के स० १८५२ में लिखित ।' होने का छपा है। सूची में रचजन्म संवत् एव प्रायु सम्बन्धी पुरानी मान्यता पर प्राधा- यिता का नाम मुशीलाल हीरालाल लिख दिया है, पर रित लगता है। अभी डॉ० हुक्मचन्द भारिल्ल का शोध वास्तव में हीरालाल के कहने पर गुमानीराम कायस्थ ने प्रबन्ध-प० टोडरमल व्यक्तित्व और कृतित्व' नामक ही इसे लिखा था। दीवान हाफिज के पद्यानुवाद की भी प्रकाशित हुप्रा है, उसके अनुसार वह ठीक नहीं लगता। मैंने अपने ग्रन्थालय के लिये नकल करवायी थी, पर अभी नई खोज के अनुसार पं. टोडरमल जा का जन्म सं० वह इधर-उधर रखी होने से मिल नहीं रही है । अतः १७७६-७७ और मृत्यु १८२३ अर्थात् ४७ वर्ष की भायु विशेष विवरण नहीं दे सका। थी। अतः गुमानीराम का जन्म स० १८०० के पास-पास डॉ० गजानंद मिश्र ने सता स्वरूप भी इनकी रचना होना संभव है।
होने का उल्लेख किया है, यह भी मुमानीराम की रचना डॉ. गजानंद मिश्र ने गुमानीराम की रचनाओं के नहीं है । भागचन्द छाजेड़ के नाम से यह रचना हिन्दी में सम्बन्ध में लिखा है कि "ये फारसी भाषा के प्रच्छे ज्ञाता तथा इसका गुजराती अनुवाद सोनगढ में छप चुका है। थे। इन्होने महाराजा सिंह की प्राज्ञा से कार्तिक सु०५ राजस्थान दि०. शास्त्र अण्डारों की सूची में 'सत्ता स्वरूप' स० १८४६ में दीवान हाफिज का पद्यानुवाद किया था। की कई प्रतियों का विवरण है, पर वहां इसके कर्ता का इनके नाम से सत्ता स्वरूप नामक रचना तथा अनेक पद्य नाम नहीं दिया गया है । गुमानीराम के 'पद' अवश्य मिलते भी लिखते (मिलते) है।" पर वास्तव में दीवान हाफिज है। राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की सूची भाग-५ का अनुवाद टोडरमल के पुत्र गुमानीराम भांक्सा रचित पृष्ठ ७३० में गुमानीकृत 'दर्शन पच्चीसी' पत्र ११ का विवनहीं है, वह तो गुमानीराम कायस्थ का किया हुआ है, रण छपा है, पर उसके स्वविता गुमानीराम भांवसा हो थे जिन्होंने बाईन-अकबरी का मी अनुवाद किया था। राज. या अन्य, यह निश्चित कहना बाकी है। स्थान के हिन्दी साहित्यकार नामक ग्रन्थ सबत् २००१ में डॉ. मिश्र ने टेकचन्द का परिचय नहीं दिया पर उसके जयपुर से प्रकाशित हुपा था, उसके पृष्ठ १६१ में महाराजा सम्बन्ध में तो मेरे कई लेख एवं अन्यों के लेख भी प्रकाशित प्रतापसिंह के प्राश्रित और दरवार के लेखकों का विवरण हो चुके हैं। देते हुए लिखा है कि "इन्हीं काव्य-मर्मज्ञ त्या गुणग्राहो डॉ० मिथ ने रत्नचन्द्र की रचनायों का संग्रह रत्नचन्द्र नरेश के राज्य काल में गुमानीराम कायस्थ द्वारा प्रबल- मुक्तावली में प्रकाशित होने का लिखा है। सो इस ग्रन्थ के फजल कृत माईने अकबरी का जयपुरी भाषा मे अनुवाद मिलने का पता मुझे सूचित करने का कष्ट उठावे । किया । दीवान हाफिज का भी ब्रज पञ्चानुवाद हुमा । इनमें