SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . अनेकान्त * लुचन कर रहे थे, इन्द्र के अनुनय पर उन्होने शिखा का है, कुछ विद्वान् उसे तोड-मरोड़ कर प्रस्तुत किये गये लुचन नहीं किया। जीवन पर्यन्त उनके मस्तक पर वह प्रमालो का करार देकर खिमिचौनी करने का अना. शिखा ज्यों की त्यों रही। बहुत सारी प्राचीन मूर्तियाँ इस बश्यक उपक्रम करते हैं। वे अपने चिन्तनकार को अनुद्. तथ्य की स्पष्ट साक्षी है।। घाटित रखना ही उपयुक्त समझते हैं। पर इतिहास तो चाणक्य कूटनीतिक क्षेत्र में विख्यात है । कूटनीति के सदैव नई करवट लेता रहता है। हर विद्वान् अपनी तटस्थ साथ छल प्रपंच, विश्वासघात मादि मनुस्यूत रहते हैं। कुछ शोध के माधार पर पूर्व अधीत में कुछ नया जोड़ता है। विद्वान् इसलिये भी चाणक्य को जैन मानने के लिये प्रस्तुत सर्वत्र ग्रन्थों की बहुलता है। उनमें संगुप्त इतिहास की नही हैं कि अहिंसा व्रत का धारक जैन उपासक कूटनीति परतों को जब भेदा जाता है, नये ही तथ्य हस्तगत होते का खुल कर प्रयोग कैसे कर सकता है ? जो करता है, वह हैं। यह क्रिया जैन-प्रजैन किसी भी विद्वान् द्वारा की जा जैन कैसे हो सकता है ? इसका दूसरा पक्ष यह भी हो सकती है। फिर भी उसमें से सम्प्राप्त कुछ तथ्य तो अपनाये सकता है कि क्या वैदिक धर्म में कूटनीतिक दाव-पेंच जायें तथा कुछ झुठलाये जाये, यह कैसे संगत हो सकता सम्मत है ? संभक्त: कोई भी ऐसा धर्म नही है, जो छल- है। सांप्रदायिक अभिनिवेश का बहिष्कार सर्वत्र होना खम को मान्यता दे। फिर भी विगत में हुए बड़े-बड़े राजा, चाहिए, पर किसी भी ऐतिह्य सत्य पर सांप्रदायिकता का सेनापति, महामात्य प्रादि जैन, बौद्ध, वैदिक आदि किसी मुखौटा नहीं लगाना चाहिए। न किसी धर्म से अवश्य सम्बद्ध रहे है। उन्होने बडे से बडे जैन ग्रन्थ अब तक भाण्डागारों में दबे हे प्रतः ऐतियुद्ध लड़े है तथा माक्रमण-प्रत्याक्रमण भी किये हैं। फिर हासिक दृष्टि से उनका अनुशीलन बहुत कम हो पाया। भी उनको धार्मिकता की भोर कोई अंगुली नही उठी। युग की मांग के साथ वे बाहर पा रहे हैं, अत: नये तथ्य उस अवस्था में चाणक्य की कूटनीति उसके जैनत्व में कैसे उजागर हो रहे हैं । कहना चाहिए, ऐतिह्य तथ्य कुछ स्पबाधक हो सकती है? जैन उपासक समाज तथा राष्ट्र से ता तथा ठोस प्राधार लेकर पा रहे हैं। आवश्यकता है, जब सेवर लेते हैं तो वे सेवा के प्रत्यर्पण में कभी पीखे विद्वान इस वास्तविकता को सममें और अपेक्षित हो तो रहने वाले नहीं होते। वे उसे अपना सामाजिक तथा राष्ट्रीय इतिहास को नया परिधान भी दें। चाणक्य से सम्बद्ध जैन कर्तव्य मानकर उस क्षेत्र में भी प्राणी रहते हैं । चाणक्य ग्रन्थों के कुछ प्रमाण समीक्षणीय दृष्टिकोण से मैंने प्रस्तुत भी इसी परपरा का सबल वाहक था। किये है। आशा है, विद्वान् इनके बलाबन को परखने मे इतिहास में जैन परंपरा की जब कोई नई कड़ी जुड़ती मेरे सहभागी बनेंगे। प्रेषक : कन्हैयालाल दूगड़ प्रधान मन्त्री श्री जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा ३, पोर्चुगीज चर्च स्ट्रीट, कलकत्ता-१
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy