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________________ पोवनपुर में अपराण्ह बेला मे सिकन्दर की मृत्यु हो गई। मृत्यु से जाता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जिम्नोसोपहले सिकन्दर ने मुनि महाराज के दर्शन किये और फिस्ट' जिनको यूनानियों ने पश्चिमी भारत में देखा उनसे उपदेश सुना। सम्राट् की इच्छानुसार यूनानी था, वे जैन मनि थे, वे ब्राह्मण या बौद्ध नहीं थे। कल्याण मुनि को प्रादर के साथ यूनान' ले गये। कुछ सिकन्दर ने दिगम्बर मुनियों का समुदाय तक्षशिला में वर्षों तक उन्होने यूनानियों को उपदेश देकर धर्म प्रचार देखा था। उनमे से कल्याण नामक मुनि फारस तक किया। मन में उन्होंने समाधिमरण किया। उनका शव उसके माथ गये थे। इस गुग मे इस धर्म का उपदेश राजकीय सम्मान के साथ चिता पर रखकर जलाया चौबीस तीर्थकरों ने दिया है। और महावीर उनमें गया। कहते है, उनके पापाण-चरण एथेन्स मे किसी अन्तिम तीर्थकर है।' प्रसिद्ध स्थान पर बने हुए है। -ई० पाई-थामस बुद्ध का जीवन तक्षशिला में उस समय दिगम्बर मुनि रहते थे, इसी पस्तक मे एक स्थान पर लिखा है कि सिकन्दर इस बात की पुष्टि अनेक इतिहास ग्रन्थों से होती है। के प्राइमियो ने जैन-बौद्ध धर्म को वैविश्या, प्रोक्सियाना 'एलेक्जेण्डर (मिकन्दर) ने उन दिगम्बर मुनियों के पास तथा अफगानिम्नान-भारत के बीच की घाटियों में योनेसीक्रेटम को भेजा। उसका कहना है कि उसने तक्ष. उन्नत रुप से फैला हग्रा पाया था। शिला से २० स्टेडीज दूर १५ व्यक्तियों को विभिन्न मेजर जनरल जे० स० फलांग ने अपनी पुस्तक मुद्रात्रों में खडे हुए, बैठे हुए या लेटे हुए देखा, जो बिल तुलनात्मक धर्म -विज्ञान ( कुल नग्न थे । वे शाम तक इन ग्रासनो से नहीं हिलते ) मे तक्षशिला मे दिगम्बर जैन मुनियो के थे। शाम के समय शहर में आ जाते थे। सूर्य का होने की बात का सर्मथन किया है। ताप सहना सबसे कठिन काम थ।।' इन प्रमाणो से यह सिद्ध होता है कि सिकन्दर के -प्लूटार्च, ऐशियण्ट इंडिया, पृ०७१ अाक्रमण के समय तक्षशिला जैन धर्म का केन्द्र था पोर 'दिगम्बर जैन धर्म प्राचीन काल से अब तक पाया यहा अनेक दिगम्बर मुनि रहते थे । ब्र० शीतलप्रसाद और उनकी साहित्य-साधना श्री पन्नालाल जैन अग्रवाल ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद लचनऊ के निवासी थे। सम्कारो को ग्रादर्श बनाया था। सन् १९०४ में महा. इनके पिता का नाम मवखन लाल और माता का नाम मारी से १३ फर्य को प्रापकी पत्नी का वियोग हो श्रीमती नरायणी देवी था। प्रापका जन्म सन् १८५६ गया । और हम चं को जननी तथा अनुज पन्नालाल का । मे काला महल में हुआ था। पापने मैट्रिकुलेशन परीक्षा भी देशान्त हो गण। दुर्दैव के इस घटनाक्रम से शीतल१८ वर्ष की उम्र में प्रथम श्रेणी मे पास की थी। और प्रमाद जी के चित्त को बडा ग्राघात पहुँचा । उस समय ४ वर्ष बाद रुड़ की इंजीनियरिंग कालेज से अकान्टशिप की महामारी से देश में तहलका मचा हुआ था। परीक्षा पास की थी। परीक्षा पास करने के बाद उन्हें अग्नि परीक्षा - स्नेही जनो के पाकस्मिक वियोग गवर्नमेट सविस मिल गई। यह स्वाभाव से ही चचल, का उनके जीवन पर बडा प्रभाव पडा । यद्यपि वे निरन्तर कार्य करने में पट, उदीयमान विचारक और लेखक थे। स्वाध्याय और मामयिक सेवायो के कारण पर्याप्त बल आपका विवाह कलकत्ता के वैष्णव अग्रवाल छेदीलाल जी पा चुके थे। एक ओर सरकारी नौकरी का प्रलोभन पदो. की मुहमी से हुआ था । प्रार। पानी पत्नी के धार्मिक नति, वेतन वृद्धि । और प्रौढ़ावस्था की उमड़ती
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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