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१२, वर्ष २५, कि० २
भनेकान्त
पूर्व के नालन्दा, दक्षिण में कांचीपुरम् और मध्य भारत लिये निरर्थक हैं। मैं तो घास पर सोता हूँ । ऐसी कोई के धन कटक के समान उत्तरापथ का प्रसिद्ध विश्वविद्या. वस्तु अपने पास नहीं रखता, जिसकी रक्षा की मुझे लय पा पाणिनि जैसा वैयाकरण, विख्यात वैद्य जीवक चिन्ता करनी पड़े, जिसके कारण अपनी शान्ति की नीद यही पढ़े थे । संभवतः चाणक्य ने भी यही शिक्षा प्राप्त की भग करनी पड़े। यदि मेरे पास सुवर्ण या अन्य कोई थी। इस विश्वविद्यालय में शस्त्र और शास्त्र दोनो प्रकार सम्पत्ति होती तो मै ऐसी निश्चित नीद न ले पाता। की शिक्षा की व्यवस्था थी। दूर दूर से लोग यहाँ पढने पृथ्वी मुझे सभी आवश्यक पदार्थ प्रदान करती है, जैसे भाते थे। सिरकाय से चार मील पर विशाल भवनों के बच्चे को उसकी माता सुख देती है। मैं जहाँ कहीं जाता भग्नावशेष पड़े हुए है। यही पर यह विश्वविद्यालय हूँ, वहां मुझे अपनी उदर पूर्ति के लिए कमी नही, पाव. था। इसकी ख्याति सुदूर देशो तक थी।
श्यकतानुसार सब कुछ (भोजन) मुझे मिल ही जाता जैन धर्म का केन्द्र
है । कभी नही भी मिलता तो मै उसकी कुछ चिन्ता नहीं सिकन्दर ईसा पूर्व ३२६ मे अटक के निकट सिन्धु
करता। यदि सिकन्दर मेरा सिर काट डालेगा तो वह
मेरी प्रात्मा को तो नष्ट नही कर सकता। सिकन्दर नदी को पार करके तदाशिला में प्राकर ठहरा उसने दिगम्बर जैन मुनियो के उच्च चरित्र, उन्नत ज्ञान और
अपनी धमकी से उन लोगो को भयभीत करे जिन्हे सुवर्ण, कठोर साधना के सम्बन्ध में अनेक लोगो से प्रशंसा सुनी
धन प्रादि की इच्छा हो या जो मृत्यु से डरते हो।
सिकन्दर के ये दोनो अस्त्र हमारे लिए शक्तिहीन है, व्यर्थ थी। इससे उसके मन मे दिगम्बर जैन मुनियो के दर्शन करने की प्रबल आकांक्षा थी। जब उसे यह ज्ञात हुमा
है । क्योकि न हम स्वर्ण चाहते है, न मृत्यु से डरते है। कि नगर के बाहर अनेक नग्न जैन मुनि एकान्त मे तप
इसलिए जा पो, सिकन्दर से कहदो कि दोलामस को स्या कर रहे है तो उसने अपने माय नेम तुम्हारी किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। अतः वह को मादेश दिया-तुम जानो और एक जिम्नोसाफिस्ट
तुम्हारे पास नही पावेगा। यदि सिकन्दर मुझसे कोई (दिगम्बर जैन मुनि) को प्रादर सहित लिवा लामो वस्तु चाहता है तो वह हमारे समान बन जावे। पोनेसीक्रेटस वहां गया, जहाँ जगलमे जैन मुनि तपस्या
पस्या मोनेसीक्रेटस ने सारी बाते सम्राट से कही। सिकंदर कर रहे थे। वह जैन संघ के प्राचार्य के पास पहुँचा पोर न साचा जा सिकन्दर से भा नहा डरता, वह महान है । कहा-प्राचार्य ! आपको बधाई है। प्रापको परमेश्वर का उसके मन में प्राचार्य दोलामस के दर्शनो को उत्सुकता पुत्र सम्राट सिकन्दर, जो सब मनुष्यो का राजा है, अपने
__ जाग्रत हुई। उसने जाकर प्राचार्य महाराज के दर्शन पास बुलाता है। यदि आप उसका निमत्रण स्वीकार करके।
किये। जैन मुनियो के प्राचार-विचार, ज्ञान और तपस्या उसके पास चलेगे तो वह प्रापको बहत पारितोषिक देगा। से वह बडा प्रभावित हमा। उसने अपने देश में ऐसे यदि माप निमंत्रण अस्वीकार करके उसके पास नही किसी साधु को ले जाकर ज्ञान प्रचार करने का निश्चय जायेगे तो सिर काट लेगा।
किया। वह कल्याण मुनि से मिला और उनसे यूनान श्रमण साधु संघ के प्राचार्य दोलामस (सभवतः पतिसेन) चलने की प्रार्थना की। मुनि ने उसकी प्रार्थना स्वीकार सूखी घास पर लेटे हुए थे। उन्होंने लेटे हुए ही सिकन्दर कर लो यद्यपि प्राचार्य किसी मुनि के यूनान जाने की के अमात्य की बात सुनी और मुस्कराते हए बोले- बात से सहमत नहीं थे। सबसे श्रेष्ठ राजा बलात् किसी की हानि नही करता, न जब सिकन्दर तक्षशिला से अपनी सेना के साथ वह प्रकाश, जीवन, जल, मानव शरीर और प्रात्मा का यूनान को लोटा, तब कल्याण मुनि भी उसके साथ-साथ बनाने वाला है, न इनका संहारक है। सिकन्दर देवता विहार कर रहे थे। मुनि कल्याण ने एक दिन मार्ग में नहीं है क्योकि उसकी एक दिन मृत्यु अवश्य होगी। ही सिकन्दर की मृत्यु की भविष्यवाणी की। मुनि के वह जो पारितोषिक देना चाहता है, वे सभी पदार्थ मेरे वचनों के अनुसार ही वैवीलोन पहुँचने पर ई०पू० ३२३