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पोदनपुर
परीक्षित को नागों ने मार डाला। इस समय तक्षशिला इसके पश्चात् जब प्रशोक राजगद्दी पर बैठा, तब के नागों का राजा तक्षक था'।
उसने अपने पुत्र कुणाल को तक्षशिला का उपरिक (गव. परीक्षित का पुत्र जनमेजय प्रतापी राजा था। उसने । नर) बनाया। कुणाल जन्म से ही सुरूप और सुकुमार अपनी शक्ति खूब बढाई और अपने पिता की मृत्यु का था। उसकी प्रॉखे बड़ी सुन्दर थी। अशोक ने वृद्धावस्था बदला लेने के लिए नागवश को निमूल करने का सकल्प में तिष्यरक्षिता नामक एक युवती से विवाह किया था। कर लिया। वासुकी, कुलज, नीलरक्त, कोणप, पिच्छल, एक बार एकान्त पाकर तिष्य रक्षिता कुणाल की पाखों शल, चक्रपाल, हलोमक, कालवेग, प्रकालग्न, सुशरण, को देखकर उस पर मुग्ध हो गई । विमाता के इस घृणित हिरण्यवाहु, कक्षक, कालदन्तक, तक्षकत्र, शिशुरोम, प्रस्ताव को कुणाल ने अस्वीकृत कर दिया। इससे तिष्यमहाहनु प्रादि अनेक नाग सरदारों को सम्राट जनमजय रक्षिता उसकी शत्रु बन गई। एक बार अवसर पाकर ने जीता जला दिया था। पीछे नागराज वासुकी के भागि- उराने तक्षशिला के परिजनो को एक कपट लेख भेजकर नेय प्रास्तीक ने बड़े अनुनय विनय से नागो की सधि प्रशाक के नाम से यह प्रादेश दिया कि कुमार को अन्धा कराई । इन नागो ने अपना प्रभाव-विस्तार खुब किया। कर दिया जाय । इस प्रादेश को पाकर पौर जन भयभीत मथुरा पर नागो की सात पीढियो ने राज्य किया। हा गये। तब कुणाल ने इस प्रादेश को राजा और काश्मीर में भी उनका गज्य था। ईसा पूर्व छठवी पिना का आदेश मानकर उनकी आज्ञा को पालना अपना शताब्दी में विदिशा मे नागराज शेप, पर जय भागी. कर्तव्य समझा और खुशी से अपनी प्रांख निकलवा दीं । रामचन्द्र, चन्द्राशु, घनधर्मण, नगर और भूतनाद प्रसिद्ध जब कुणाल अपनी स्त्रो काचनमाला के साथ पाटलिपुत्र नाग राजा हुए।
प्राया और अशोक को इस भयानक पड्यन्त्र का पता जब सिकन्दर ने भारत पर अाक्रमण किया, उस चला तो उसने तिप्य रक्षिता को जिन्दा जलवा दिया। समय तक्षशिला का राजा अम्भि था। उसने सिकन्दर से तथा तक्षशिला में जिस स्थान पर कूणाल ने अपनी प्रॉखें बिना लड़े ही उसकी प्राधीनता स्वीकार कर ली थी। निकलवाई थी, वहाँ स्तूप खडा करवा दिया, जो चीनी उसकी सहायता से सिकन्दर की सेना ने सिन्धु पार की यात्री ह्वान च्याग के समय तक वहाँ मौजद था। इस और तक्षशिला पहुँचकर अपनी थकान उतारी। स्तूर क खडहर रिकाय के डेढ मील पूर्व में वरपल
मौर्य सम्राट विन्सार के काल में तक्षशिला ने दो नामक गाव मे पड़े हए है। ये खडहर रावलपिडी से बार विद्रोह किया और एक बार अशोक को और दूसरी
उत्तर-पश्चिम में २६ मील पर है और कलाकार बार कुणाल को वहाँ विद्रोह दबाने को जाना पडा। विद्रोह
सराय रेलवे स्टेशन से २ मील है। इस नगर की भूमि दबाने के लिए किसी शक्ति का प्रयोग नहीं करना पड़ा,
पर प्रब हाहधेरी, सिरकाय, सिरमुख, कच्छाकोट गाव
बस गये है। बल्कि बड़े रोचक और नाटकीय ढग से स्वयं शान्त हो
ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में वैक्टिया से निकाले जाने गया । जब कुमार अशोक तक्षशिला के निकट पहुँचा तो
पर कुशाणो ने इसे अपनी राजधानी बनाया था सिकन्दर तक्षशिला के पोर नगरी से साढ़े तीन योजन आगे तक
ने इसको ईसा पूर्व ३२६ मे जीता था। उसके चार वर्ष बाद सारे रास्ते को सजाकर मंगल घट लिए हुए उसकी सेवा
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने इसे अपने राज्य में मिला लिया। में उपस्थित हए और कहने लगे-"न हम कुमार के
ईसा पूर्व १६० मे डंमिट्रियम ने इसे जीत लिया और यह विरुद्ध है, न राजा बिन्दुसार के। किन्तु दुष्ट अमात्य
ग्रीक गजानों की भारतीय राजधानी बन गया। उसके हमारा पराभव करते है।"
बाद यह शक, पल्लव और कूपाण राजापो के प्राधिपत्य १. महाभारत ।
में रहा। २. वायु पोर ब्रह्माण्ड पुराण ।
विख्यात विश्वविद्यालय३ . । दिव्यावदान
यहाँ ईसा की प्रथम शताब्दी तक पश्चिम के बल मी,