________________
८४, वर्ष २५, कि० २
अनेकान्त
हिलोरें । कौटुम्बिक सहयोगियों का पुन: गृहस्थी बसाने ६.पात्मध्यान का उपाय-संपा० ० शीतलप्रसाद, का प्राग्रह, कन्याओं का सौन्दर्य और योग्यता, उनके प्रका० सवाई सेठ खुशालचन्द जैन चौरई (छिदवाड़ा) अभिभावकों द्वारा सम्बन्ध स्वीकार करने की प्रार्थना पृ० ५६, प्रका० १६२८ ।
और दूसरी पोर समाज सेवा की उत्कट लगन, और स्वा. ७. अात्म धर्म-लेखक ब्र० शीतलप्रसाद, प्र० मूलचन्द ध्याय द्वारा प्रात्म स्वरूप को प्राप्त करने, तथा समझाने
किशनदास कापडिया सूरत, पृ० १५६ प्रका० सन् का यत्न । इस अग्नि परीक्षा में शीतल प्रसाद जी
१६१६।
८. प्राध्यात्मिक चौबीस ठाणा-टीका० ब्र. शीतलखरे उतरे। उन्हें सांसारिक भोगा काक्षा अपने लक्ष्य से
प्रसाद लेखक तारण स्वामी, प्र० सेठ मन्नूलाल जैन विचलित न कर सकी। अत: ब्रह्मचारी रहकर समाज
अागामौद पृ. १२४ प्रका० १६३६ । सेवा में संलग्न कर जीवन बिताना अच्छा समभा।
६. प्राध्यात्मिक सोपान- ले० ब्र. शीतलप्रसाद, प्र० इसी से सन् १९०५ मे सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे
मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत, पृ० ३२५ दिया। और समाज सेवा के कार्य मे योग देने लगे।
प्रका० सन् १९३१। सन १९०२ में महासभा के मुख पत्र हिन्दी जैन गजट १०. प्रात्मानंद का सोपान-ले० ब्र० शीतलप्रसाद, प्र० का सम्पादन किया। जिससे उसकी वाया पलट गई।
मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत, पृ० २० प्रका० और सन् १९०६ मे वे जैन मित्र के सम्पादक नियुक्त सन् १९२३ । हए और उन्होंने उसका सम्पादन सन् १६२६ तक २० ११. इप्टोपदेश टीका श्री पूज्यपाद स्वामी-टीका ब्र० वर्ष किया। इसके अतिरिक्त समाज सगठन, जैन प्रचार, शीतलप्रसाद, प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया शिक्षाप्रसार, समाज-सुधार, ऐतिहासिक खोज तथा अनेक मूरत, पृ० २५६ प्रका० १९२३ । घामिक ट्रैक्टो के अतिरिक्त स्वाध्यायोपयोगी ग्रंथो का १२. उपदेश शुद्ध सार-ले० तारणतण स्वमी, अनु० हिन्दी अनुवाद कर ग्रथ प्रकाशित कराये । प्रत्येक वर्ष में ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० सेठ मन्नूलाल धागासौद, पृ० एक ग्रथ जैन मित्र के उपहार में नया लिख कर प्रकाशित ३२३ प्रका० १०३६ । करने थे । अापके द्वारा लिमित, सम्पादित, अनुवादित १३. गृहस्थ धर्म-ले० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० मूलचन्द पुस्तको की संख्या ७५ के लगभग है। जिनका परिचय किशनदास कापडिया सूरत, पृ० ३१४, प्रका० सन् नीचे दिया जाता है
१६२३ (कई संस्करण छपे)। १ अध्यात्मिक निवेदन- निखक व. शीतलप्रसाद, १४. छह ढाला-ले० कविवर दौलतराम, टीका ७० प्रकाशक मूलचन्द्र किशनदास कापडिया सूरत, पृष्ठ शीतलप्रसाद, प्र० सेठ माणिकचन्द हीराचन्द जे. पी. १६ प्रका० १६२५ ।
बम्बई, पृ. ५८ प्रका० १६१२ (कई यरकरण छपे)। २. अध्यात्मज्ञान-सपा० प्र० शीतल प्रसाद, प्र० मूल- १५. जिनेन्द्र गत दर्पण (प्रथम भाग)-ले. बाबू बना
चन्द किशनदास कापडिया, सूरत, पृ० १२८, प्रका० रसीदास, सपा० ब्र० शीतलप्रमाद, प्र० जैन मित्र सन् १९३१।
मडल देहली, पृ० ३२ प्रकाशन सन् १९२६ (कई ३. अनुभवानद-संपा० ब्र० शीतलप्रमाद, प्र० जनमित्र
संस्करण छपे)। कार्यालय, बम्बई, पृ० १२८, प्रका० सन् १९१२ ।
१६. जैन धर्म की विशेषताए-ले० ब्र० शीतलप्रसाद, ४ महिना-लेखक ब्र० शीतलप्रसाद, प्रका० जनमित्र
प्रका० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० २० प्रका० सन् मडल देहली, पृ० २०, प्रका० सन् १९३२ (कई मस्करण छप)।
१६३६)। ५ प्रात्मोन्नति या खुद की तरक्की-ल. ब्र० शीतल- १७. जैनधर्म क्या है-ले०७० शीतलप्रसाद प्रका. जैन प्रसाद, प्रका० जैन मित्र मडल देहली, पृ० २४, प्रवा.
मित्र मडल देहली, पृ० १८ । सन् १९३६ ।
१८. जैनधर्म प्रकाश-ले. ब्र० शीतलप्रसाद, प्रका० परि