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________________ पोदनपुर ७६ को उत्तरापथ और दक्षिणापथ दोनों तरफ राज्य दिया कुछ पौराणिक घटनायें-- गया था। उन्होंने उत्तरापथ के अरने राज्य की राजधानी हस्तिनापुर के राजा महापद्म और सुरम्य देश के तक्षशिला बनाई और दक्षिणापथ की राजधानी पोदनपुर पोदनपुर के राजा मिहनाद में बहुत समय से शत्रुता चली बनाई । जब भरत ने आक्रमण किया तो उन्होंने तक्षशिना पा रही थी। अवमर पाकर महापद्म ने पोदनपुर के ऊपर पर याक्रमण किया पोदनपुर के ऊपर नहीं किया । अाक्रमण कर दिया। पोदनपुर मे सहस्रकूट नामक एक क्योकि बाहुबली प्रायः तक्षशिला में ही रहते थे। चैत्यालय था, जिसमें एक हजार स्तम्भ लगे हुए थे । इस कल्पना का प्राधार कुछ भी नहीं है। 'विविध महापद्म चैत्यालय को देखकर बड़ा प्रसन्न हुमा । उसके तीर्थकल्प' हस्तिनापुर कल्पके अनुसार भगवान् ऋषभदेव मन में भी यह भावना जागृत हुई कि मै भी अपने नगर ने बाहुबली को तक्षशिला प्रौर हस्तिनापुर का राज्य दिया मे इसी प्रकार का सहस्र स्तम्भ वाला चैत्यालय बनवाथा। इससे इस कल्पना का खण्डन हो जाता है कि बाहुः ऊगा। उसने एक पत्र अपने अमात्य को लिखा- 'महा. बनी ने अपने दक्षिण राज्य की राजधानी पोदनपुर स्तम्भसहस्रस्य कर्तव्यः स ग्रहो ध्रुवम्' अर्थात् तुम एक बनाई थी। हजार स्तम्भ अवश्य संग्रह कर लो। प्रादिपुराण' में भगवज्जिनसेन ने बताया है कि भग पत्रवाचक ने स्तम्भ के स्थान पर स्तभ पढ़ा और वान् ऋषभदेव ने राज्य व्यवस्था के लिए चार व्यक्तियों उसका प्रथं हुप्रा कि तुम हजार बकरे इकट्ठ कर लेना । को दण्डधर (राजा) नियुक्त किया-हरि, प्रकम्पन, कश्यप तदनुसार उन्होने एक हजार बकरे इकट्ठ कर लिए। जब पौर सोमप्रभ । सोमप्रभ भगवान से कुरुराज नाम पाकर महाराज पाये और उन्हे पत्र वाचक की इस भूल का पता कुरुदेश का राजा हवा पोर कुरुवश का शिखामणि चला तो बड़े क्रुद्ध हुए और वाचक को कठोर दण्ड दिया। कहलाया। एक अनुस्वार की भूल का कैसा परिणाम निकला । हरिवंशपुराण' में सोमप्रभ का नाम सोमयश दिया पाटलिपत्र नरेश गन्धर्वदत्त की पुत्री गन्धर्वदत्ता है और उन्हे बाहुबली का पुत्र तथा सोमवंश (चन्द्रवश) अत्यन्त रूपवती थी। उसने प्रतिज्ञा की थी कि जो मुझे का कर्ता बताया है। गन्धर्व विद्या में पराजित कर देगा, उसे ही वरण करूगी। उक्त पुराणो के अनुसार हस्तिनापर का राज्य मोम- अनेकों कलाकार आये और पराजित होकर लौट गये । प्रभ को दिया था, न कि बाहुबली को। बाहुबली को तो एक दिन विजयाधं पर्वत के निकटवर्ती पोदनपुर के निवासी पोदनपुर का ही राज्य दिया था। सोमप्रभ और बाहुबली पचाल उपाध्याय ने गन्धर्वदना की प्रतिज्ञा सुनी। वह को भगवान् द्वारा राज्य देने का काल भी भिन्न-भिन्न अपने पांच सौ शिष्यों को लेकर पाटलिपुत्र पहुँचा और है । जिस काल मे भगवान् समाज व्यवस्था, वर्ण-व्यवस्था, वहाँ राजकन्या को पराजित करके उसके संग विवाह विवाह व्यवस्था में लगे हुए थे, उस समय दण्ड नीति को किया। व्यवस्था के लिए अन्य तीन व्यक्तियो के साथ सोमप्रभ इम कथा मे पोदनपुर को विजया पर्वत के निकट को भी राजा बनाया था और उसे कुरु जांगल देश का बताया है । राज्य दिया था। किन्तु दीक्षा लेने से पूर्व भगवान ने द्वारका नगरी मे वासुदेव कृष्ण की महारानी अपने सौ पुत्रों को राज्य दिया। उनमे बाहबली को गन्धर्षदत्ता का पुत्र गजकुमार था । पोदनपुर नरेषा अपरा. पोदनपुर का राज्य दिया। जित को पराजित करने के लिए श्रीकृष्ण ने कई बार इन प्रमाणों से बाहबली को तक्षशिला पोर पोदनपुर : १. आराधना कथाकोप, कथा ६५ । हरिषेण कथाकोष, मिलने की कल्पना का निरसन हो जाता है। कथा २५ में पोदनपुर को उत्तरापथ में बताया है, १. प्रादिपुराण १६।२५५.८ । जबकि प्राराधना कथाकोष मे उसे सुरम्य देश मे २. हरिबशपुराण बताया है।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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