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७८, वर्ष २५, कि०२
अनेकान्त
राश्यंतरवियावित्यो
बसाई थी। वह पंजाव से काश्मीर तथा पंजाब से कपिश बहलोदेशमासवत् ।"
देश जाने वाले मार्ग पर नियन्त्रण रखती थी। पुष्करा-त्रि.श. पु. च. १।५।२८३ वती नगरी कुभा (काबुल) पौर सुवास्तु (स्वात) नदी सम्राट भरत दिन-रात चलता हुमा बहली देश के संगम पर थी। उत्तर भारत के मैदान से कपिश और पहुंचा, मानो सूर्य एक राशि से चक्कर लगाना हुया दूसरी उड्डीयान (स्वात को उत्तरी दून) जाने वाला रास्ता राशि मे पहुँचा हो।
पुष्करावती होकर जाता था। "बाहुवलिणो तक्षसिला विण्णा।"
इस विवरण से स्पष्ट है कि तक्षशिला की स्थापना -विविध तीर्थ कल्प, पृ. २७ श्री रामचन्द्र के काल में या उनके कुछ समय पश्चात् हुई बाहुबलो को तक्षशिला दी।
थी । ऋपभदेव के काल मे तक्षशिला नाम की कोई नगरी "तक्षशिनायां बाहुबली विनिर्मितं धर्मचक्र ।" नही थी। ऐसी स्थिति में श्वेताम्बर ग्रन्थों में बाह बली
-विविध तीर्य कल्प, पृ० ८५ की नगरी का नाम तक्षशिला किस कारण दिया, यह बाहुबली ने तक्षशिला में धर्मोपदेश दिया । अवश्य विचारणीय है । ऐसा प्रतीत होता है कि जिस काल
उपयुक्त उल्लेखो से यह स्पष्ट है कि श्वेताम्बर ग्रंथो में प्रागम ग्रन्थ लिखे गये, उस समय उन पागम ग्रन्थों के के अनुसार बाहुबली को तक्षशिला का राज्य मिला था। कर्ता प्राचार्यों के सामने तक्षशिला की अत्यधिक प्रमिद्धि तक्षशिला वहली देश में स्थित थी। अति उस प्रदेश को रही थी। उसकी ख्याति से प्रभावित होकर ही उन वहली अथवा वाल्हीक कहा जाता था और तक्षमिला प्राचार्यों ने तक्षशिला नाम का प्रयोग करना उचित उसकी राजधानी थी।
समझा। फिर उस परम्परा के परवर्ती ग्रंथकारों ने इस तक्षशिला का स्थापना काल
नाम को ही अपना लिया। इसमें सन्देह नहीं है कि तक्षशिला वहली देश मे थी। पोदनपुर को ही तक्षशिला कहा जाने लगा, यह सभा. किन्तु विचारणीय प्रश्न यह है कि ऋषभदेव के काल मे वनामूलक कल्पना है। उसके लिए कोई ठोस प्राधार तक्षशिला नाम की कोई नगरी थी भी या नहीं। नही है।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री रामचन्द्र ने भरत विमलमूरि कृत प उमचरिउ' के अनुसार पोतन नगर को उसके ननिहाल केकय देश का राज्य दिया था। (पोदनपुर) श्री रामचन्द्र जी के काल मे अत्यन्त समृद्ध रघुवंश के अनुमार उसे केकय के साथ सिन्धु देश भी था । जब रामचन्द्र लंका विजय करके अयोध्या लौटे, तब मिला था। वे वय पीर सिन्धु दोनो देश मिले हए थे। एक दिन उन्होने लघु भ्राता शत्रुघ्न से कहा---इस पृथ्वी
प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता कनिंघम' याधुनिक पश्चिमी पर तुम्हें जो प्रिय नगर हो, वह मांगो। मै वह दूगा। पाकिस्तान स्थित गुजगत, साहपुर और जेहलम जिलो इस साकेतपुरी को ग्रहण करो अथवा पोदनपुर, पण्ड को प्राचीन वेकय देश मानते है । केकय देश की राजधानी वर्धन या अन्य कोई प्रभीष्ट देश । उन दिनों राजगृह या गिरिव्रज थी, जिसकी पहचान जेह- उपर्युक्त कथन से ऐमा लगता है कि श्री रामचन्द्र लम नदो के किनारे पर बसे हुए प्राधुनिक गिरजाक के काल में भी पोदनपर विख्यात और समृद्ध नगर था। (जलालपुर) वस्ती से की गई है।
तक्षशिला इससे भिन्न थी, जिसे भरत के पुत्र तक्ष ने । भरत के पुत्र (रामायण के अनुसार) तक्ष और बसाया और अपनी राजधानी बनाया। पकर थे। उन दोनों ने गान्धार देश को जीता और नवीन कल्पना - दोनों ने अपने नाम पर तक्षशिला और पुष्करावती नामक एक मधुर कल्पना यह भी की गई है कि बाहबली नगरियां बमाई। तक्षशिला नगरी बड़े महत्वपूर्ण स्थान पर
२. भारतीय इतिहास की रूपरेखा, भाग १, पृ. १५६ । १. Archeological Survey Report.
३. पउमचरिउ ८६।२।