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७६ बर्ष २५, कि. २
अनेकान्त
साथ युद्ध के लिए पोदनपुर से निकल पड़े। इधर सेना है। अर्थात् उसमें भी पोदनपुर को सुरम्य देश में रूपी सागर से दिशामों को व्याप्त करते हुए चक्रवर्ती माना है। भरत भी प्रा पहुँचे, जिससे वितता नदी के पश्चिम भाग बौद्ध ग्रन्थ चुल्ल कलिंग और प्रस्सक जातक मे में दोनों सेनामों की मुठभेड़ हुई।
पोटलि (पोतलि) को अस्मक जनपद की राजधानी इस समस्या का स्पष्ट समाधान प्राचार्य गुणभद्र ने बताया है और प्रस्सक देश को गोदावरी नदी के निकट 'उत्तरपुराण' मे किया है
सक्य पर्वत पश्चिमी घाट और दण्डकारण्य के मध्य अव. जम्बूविशेषणे दोपे
स्थित लिखा है। सुत्तनिपात ६७७ में प्रस्सक को गोदाभरते दक्षिणे महान् ।
बरी के निकट बताया है। पाणिनि ११३७३ अश्मक को सुरम्यो विषयस्तत्र
दक्षिण प्रान्त मे बताते है । महाभारत (द्रोणपर्व) मे प्रश्मक विस्तीर्ण पोदन पुरम् ॥७३॥६॥ पुत्र का वर्णन है। उसकी राजधानी पोतन या पातलि पर्यात् जम्बू द्वीप के दक्षिण भरत क्षेत्र मे एक थी। इसमें पोदन्य नाम भी दिया है। सुरम्य नाम का बड़ा भारी देश है और बड़ा विस्तृत हेमचन्दराय चौधरी ने पोदन्य और बौद्ध ग्रन्थों के पोदनपुर नगर है।
पोत्तन को एक मान कर उसकी पहचान प्राधुनिक बोधन श्री वादिराजसूरि ने भी पार्श्वनाथ चरित सगं १, से की है। यह प्रान्ध्र प्रदेश के मजिरा और गोदावरी श्लोक ३७.३८ पौर सगं २, श्लोक ६५ मे पोदनपुर को नदियो के सगम से दक्षिण में स्थित है। इस मान्यता का मुरम्य देश में बताया है।
समर्थन 'वसुदेव हिण्डि' के निम्नलिखित उद्धरण से होता कभी-कभी ग्रन्थों की साधारण लगने वाली बातें हैशोध-खोज के सन्दर्भ मे बड़ी महत्वपूर्ण बन जाती है। ___ "उत्तिष्णामो गोयावरि नदि । पार्श्वनाथ चरित में सुरम्य देश को शालि चावलों के खेतो
तत्य बहामा कयहिगा सीहवाहीहि से भरा हुप्रा बताया है। यह कथन पोदनपुर को चावल तुरएहि पत्ता मो पोयणपुरं ।" बहुल प्रदेश में होने का संकेत करता है।
प्रर्थात गोदावरी नदी को पार कर पोदनपुर पहुँच प्रादिपुराण में कथन है कि जब भरत का दूत पोदन- गया । पुर पहुंचा तब वहां नगर के बाहर खेतों मे पके हुए धान उपर्युक्त प्रमाणों से पोदनपुर प्रश्मक, सुरम्य अथवा खड़े थे
रम्यक देश मे गोदावरी के निकट था । जो माधुनिक बहिःपुरमयासाद्य
प्रान्ध्र प्रदेश का वोधन मालूम पड़ता है। रम्याः सस्यवती भुवः ।
श्वेताम्बर परम्परापक्वशालिवनोद्देशान्
हमे माश्चर्य होता है कि इस सम्बन्ध में श्वेताम्बर सपश्यन् प्राप नन्दयुम् ॥२५॥२८॥ और दिगम्बर परम्परा म नामों में एकरूपता नहीं है। सोमव विरचित उपासकाध्ययन (यशस्तिलक चम) महापुराण, हरिवंशपुराण, पद्मपुराण इन सबमे मे लिखा है
बाहुबली के नगर का नाम पोदनपुर मिलता है। श्वेता. रम्पकवेशनिवेशोपेपोवनपुरनिवेशिनो।
म्बर-दिगम्बर दोनों परम्पराम्रो के मध्यमार्गी अथवा अर्थात रम्यक देश में विस्तृत पोदनपुर के निवासी। यापनीय सघ के प्राचार्य विमल सूरि ने 'पउम चरिउ' में
यहा भी पोदनपुर को रम्यक देश में बताया है। कई स्थानो पर बाहबली की नगरी का नाम तखसिला पुण्यात्रा कथाकोष कथा-२ में सुरम्यवेशस्य पोदनेश' वाक्य (तक्षशिला) दिया है। यथा१. उपासकाध्ययन कल्प २८, पृ. १७७ में प्रसत्य- २. वसुदेव हिण्डी २५वा पावती लम्ब पृ० ३५४।२४०, फल की कथा ।
पचम सोम श्री लम्ब पृ० १८७४२४१ ।