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७४, वर्ष २५, कि०२
प्रकान्त
पांच सौ धनुष के थे और भरत पांच सौ धनुष के थे। दुर्धर ता है। इस ऊचाई का लाभ बाहुबली को मिला। वे दृष्टि युद्ध में किन्तु बाहुबली के मन में एक विकला था कि मेरे जीत गये । फिर जलयुद्ध हुप्रा । उसमें भी बाहुबली की कारण भरत को क्लेश पहुँचा है। जब एक वर्ष समाप्त विजय हई । अन्त में मल्लयुद्ध हुप्रा। दोनो ही अप्रतिम हुमा तो चक्रवर्ती भरत ने पाकर उन्हें प्रणाम किया। वीर थे। किन्तु बाहुबली शारीरिक बल में भी भरत से तभी बाहुबली को केवलज्ञान होगया। चक्रवर्ती ने बढ़ चढ़ कर थे। उन्होने क्षण मात्र मे भरत को हाथों में केवल ज्ञान उत्पन्न होने से पूर्व भी मुनिराज बाहुबली की कार उठा दिया। बाहुबली ने राजापो मे श्रेष्ठ, बड़े पूजा की और केवलज्ञान होने के अनन्त र अर्हन्त भगभाई तथा भरत क्षेत्र को जीतने वाले भरत को जीतकर वान् बाहुबली की पूजा की। इन्द्रो और देवो ने भी प्राकर भी 'ये बड़े है' इस गौरव से उन्हे पृथ्वी पर नही पटका, उनकी पूजा की। बल्कि उन्हें अपने कन्धे पर बैठा लिया।
भगवान् बाहुबली केवलज्ञान के बाद पृथ्वी पर बाइबली की तीनो ही युद्धों में निर्णायक विजय हो विहार करते रहे और फिर भगवान् ऋषभदेव क सभाचुकी थी। सब लोग उनकी जय-जयकार कर रहे थ। सद हो गये, तथा कैलाश पर्वत पर जाकर मुक्त हुए । इस अपमान से क्षुब्ध होकर भरत ने बाहुबली के आर पोदनपुर को अवस्थिति -
न चला दिया। किन्तु चक्र बाहुबली को प्रदक्षिणा पोदनपुर क्षेत्र कहां धा, वर्तमान मे उसकी क्या स्थिति देकर वापस लौट प्राया । बाहुबलो भरत के भाई थ है, अयवा क्या नाम है, इस बात को जनता प्रायः भूल तथा चरमशरीरी थे, इसलिए चक्र उनके ऊपर कुछ भी चुकी है। कथाकोषों और पुराणों में पोदनपुर में घटित प्रभाव नही डाल सका । ये मन में विचार करने लगे- कई घटना प्रो का उल्लेख मिलता है, किन्तु उनसे पादन'बडे भाई ने इस नश्वर राज्य के लिए यह कैसा लज्जा- पर की भौगोलिक स्थिति पर विशेष प्रकाश नही पड़ता। जनक कार्य किया है। यह राज्य व्यक्ति को छोड़ देता है फिर भी दिगम्बर पुराणों, कथाकोपों और चरित्रग्रंथो किन्त व्यक्ति राज्य को नही छोड़ना चाहता । धिक्कार आदि मे इधर-उधर बिखरे हुए पुष्पो को यदि एकत्र है इस क्षणिक राज्य और राज्य की लिसा को।' यह करके उन्हें एक सूत्र में पिराया जाय तो उनसे सुन्दर विचार कर प्राहिस्ते से उन्होने भरत को एक ऊंचे स्थान माला बनाई जा सकती है। पर उतार दिया और भरत से अपने अविनय को क्षमा पोदनपर के लिए प्राचीन ग्रथो में कई नामो का मांग कर और अपने पुत्र महाबली' को राज्य सौपकर गुरू प्रयोग मिलता है। जैसे पाटन. पो
प्रयोग मिलता है । जैसे पोदन, पोतन, पोदनपुर । प्राकृत के निकट मुनि' दीक्षा ले ली। उन्होने गुरू की प्राज्ञा मे ।
और अपभ्रश मे इसे हो पोयणपुर कहा गया है। रहकर शास्त्रो का अध्ययन किया तथा गुरू की पाज्ञा से
समाज मे पोदनपुर के सम्बन्ध मे एक धारणा व्यावे एकल बिहारी रहे। फिर कैलाश पर्वत पर जाकर प्त है कि यह दक्षिण में कही था । भगवान् ऋषभदेव ने एक वर्ष का प्रतिमायोग धारण करने का नियम लकर पत्रो को राज्य देते समय भरत को अपने स्थान पर घोर तप किया । एक वर्ष तक उसी स्थान पर खड़े रहने अयोध्या का राजा बनाया और अन्य ६६ पुत्रों को के कारण दीमकों ने उनके चारों ओर वामी बना ली। विभिन्न देशों या नगरों के राज्य सौप दिये । बाहुबली ने वामियों मे सपं आकर रहने लगे। वामियों मे लताये अपनी राजधानी पोदनपुर बनाई। उग प्राई। चिड़ियो ने उनमे घोसले बना लिए। एक हरिषेण कथाकोप कथा २३ मे पोदनपुर के संबन्ध स्थान पर निराहार खड़े रहकर ध्यान लगाना किराना,
४. स्वयम्भू कृत पउम चरिउ के अनुसार उनके मन में १. पउमचरिउ, स्वयंभू के अनुसार सोमप्रभ ।
यह कषाय थी कि मै भरत की धरती पर खड़ा हुँ । २. प्रादि पुगण ३६।१०४
५. प्रादि पुराण ३६२०२ ३. हरिवश पुराण १९६८
६. हरिवंश पुराण ११।१०२