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________________ पोदनपुर पं० बलभद्र जैन क्षेत्र मगल जीत लिया। उन्होंने अपने भाइयों को भी प्राधीनता निर्वाण भक्ति (संस्कृत) मे पोदनपुर को निर्वाण स्वीकार करने के लिए पत्र लिखे। १८ भाइयों ने मापस क्षेत्र स्वीकार किया है, जो इस प्रकार है मे परामर्श किया और सब मिलकर भगवान् के पास 'द्रोणीमतिप्रबलकुण्डलमेढ़ के च, पहुँचे । भगवान ने उन्हे उपदेश दिया, जिससे उनके मन वैभार पर्वततले वरसिद्धकटे । मे वैराग्य उत्पन्न हो गया और वे भगवान् के पास ही ऋष्याद्रिके च विपुलादिबलाहके च, मुनि बन गये। विन्ध्ये च पोवनपुरे वृषदीपके च ॥२६॥ दिग्विजय के बाद जब भरत ने अयोध्या में प्रवेश ये साधवो हतमला: सुगति प्रयाताः ॥३०॥ किया तो उन्हें यह देखकर पाश्चर्य हुमा कि चक्र नगर इस मे पोदनपुर को निर्वाण भूमि माना है। के भीतर प्रवेश नही कर रहा । उन्होने सन्देहयुक्त प्रसिद्धि होकर बुद्धिसागर पुरोहित से इसका कारण पूछा । पुरोपोदनपुर की प्रसिद्धि भरत-बाहुबली-युद्ध के कारण हित ने विचार करके उत्तर दिया-'पापके भाई बाहविशेष रूप से हुई है । जब भगवान् ऋषभदेव को नीला. बली प्रापकी प्राज्ञा नही मानते ।" जना ग्रास रा को प्राकस्मिक मृत्यु को देखकर ससार से भरत ने परामर्श करके एक चतुर दूत को बाहु. वैराग्य हो गया और वे दोक्षा के लिए तत्पर हुए, तब बली के पास भेजा। द्रत ने बाहुबली की सेवा में उन्होने अपने सौ पुत्रों को विभिन्न देशो के राज्य बाट पहुँच कर अपना परिचय दिया और अपने प्राने क' दिए। उन्होने अयोध्या को राजगद्दी पर अपने पुत्र उद्देश्य भी बताया। बाहुबली ने भरत की प्राधीनता भगत का राज्याभिषेक किया तथा दूसरे पुत्र बाहुबली स्वीकार करने से स्पष्ट इनकार कर दिया। जब को युवराज पद देकर उन्हे पोदनपुर का राज्य दे सम्राट् भरत को यह खबर पहुँची तो वे विशाल सेना दिया। लेकर पोदनपुर के मैदान मे जा डटं। बाहुबली भी एक मोर भगवान् के दीक्षा कल्याणक महोत्सव की अपनी सेना सजाकर नगर से निकले और उन्होंने भी तैयारियां हो रही थी, और दुमरी पोर भरत का राज. भरत की सेना के समक्ष अपनी सेना जमा दी। दोनो सिंहासन महोत्सव मनाया जा रहा था। भगवान ने सेनानी मे भयानक मुठभेड़ हुई, जिसमे दोनोपोर के अपने हाथों से भारत के सिर पर रानम् कूट पहनाया और प्रनेको व्यक्ति हताहत हए। तब दोनो राजामों के दीक्षा लेने चल दिए । अपार जन मेदिनी, इन्द्रों पौर देवों मत्रियों ने परस्पर परामर्श करके निश्चय किया कि देशने भगवान् का दीक्षा-महोत्सव मनाया। वासियो का व्यर्थ नगश न हो, प्रत. दोनो राजापो मे धर्ममहाराज भरत और उसके सभी भाई अपने अपने युद्ध होना चाहिए। दोनो भाइयो ने मंत्रियों के इस परा. देश मे शातिपूर्वक राज्य करने लगे। कुछ समय बाद मर्श को स्वीकार किया और दोनो मे दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध महाराम भरत की प्रायुधशाला में चकरन उत्पन्न और मल्ल युद्ध करने का निश्चय हुप्रा । बाहुबली सवा हुप्रा । भरत विशाल सैन्य को लेकर दिग्विजय के लिए १. पयपुराण ४१६६। पउमचरिउ स्वयंभू कृत सन्धि निकले । उन्होंने कुछ ही वर्षों में सम्पूर्ण भरत क्षेत्र को ४।१०।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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