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________________ कालकोट के दुर्ग से प्राप्त एक जैन प्रतिमा डा. देवेन्द्रकुमार शास्त्री मध्यप्रदेश साहित्य व सस्कृति की दृष्टि से ही नही, तक भट्टारको की गद्दी रही है। प्रामपास पहाडी स्थान वरन् इतिहास तथा पुरातत्व की दृष्टि से भी अत्यन्त हैं और छोटी-मोटी कई गुफाए है, जिनमे जैन सांस्कृतिक समृद्ध है । मध्यप्रदेश मे भी मालवा एव पार्ववर्ती क्षेत्रों इतिहास और प्राचीन गरिमा की भ.लक ग्राज भी दिख नाई मे अनेक स्थानों पर जैन इतिहास तथा पुरातत्व व्याप्त पड़ती है। मिलता लगभग डेढ़ माह पूर्व ही भानपुरा से दक्षिण की चित्तौड़ के दुर्ग की भौति कालाकोट के दुर्ग से अनेक पोर लगभग १५-२० किलोमीटर की दूरी पर कालाकोट दि० जैन प्रतिमाए कई वर्षों से प्राप्त हो रही है। जन नामक दुर्ग से भगवान् पार्श्वनाथ की एक दि० जैन प्रतिमा सामान्य आवश्यकता पड़ने पर किले से पत्थर लाते रहते उपलब्ध हुई है। है और किसी न किसी भीत के ढहने पर कोई न कोई भानपुरा झालरापाटन और नीमच के बीच एक जन प्रतिमा निकाल पड़ती है। तीर्थपुर पार्श्वनाथ की प्राचीन नगरी के रूप में अवस्थित है। यह कम्बा मध्य यह प्रतिमा रलेटी रंग की पद्मासन मूर्ति है। इसकी प्रदेश और राजस्थान की सीमा के निकट है । झालावाड़ ऊचाई लगभग ५ फुट और चौडाई लगभग तीन फुट है। रोड से लगभग २० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्रतिमा अच्छी हालत में है और मनोज्ञ है। नासिका, वक्ष पहले यह होलकर स्टेट के अन्तर्गत था। इस पुर में वर्षों । पौर हस्तागुलियो के कुछ प्रश भग्न हो गये है। यह प्रतिमा इस समय भानपुग के एक उद्यान में एक कमरे सेविकाओं का अंकन है। दाहिनी ओर नाग एव वाम पावं मे विराजमान है। भक्त लोग इसको बन्दना करने जाते में तीन घुटने टेकी हुई प्राकृतियां है। रहते है। कुछ लोगो के अनुमार इसमें कुछ प्रतिशय भी इसी स्थल से एक और जैन देवी की प्रतिमा प्राप्त है। एक बार जब प्रतिमा लेने के लिए कुछ लोग पहुने हुई है । देवी के ऊपर एक वृहद् जिन की ध्यानस्थ प्रतिमा तो निराश लौटना पडा। क्योंकि प्रतिमा किसी से उठती है, जिसके दोनों पार्श्व पर परिचारक चंवर लिए हाए ही नही थी। जब दूसरी बार कुछ अन्य भक्त लोग खड़े है। परिचारकों के दोनों पार्श्व पर एक-एक जिन ___ संकल्प लेकर पहुँचे तो प्रतिमा सरलता से उठकर भान. प्रतिमा की खडी हुई मूर्तियाँ हैं । जिन प्रतिमा के पादपीठ पुरा तक ग्रा गयी। कालाकोट भानपुग से मन्दसौर की पर जिस पर वे बैठी हुई है, दो सिंह उत्कीर्ण है। जिन प्रोर मार्ग मे अवस्थित है। प्रतिमा का लांछन खण्डित है। जिसके नीचे शासन देवी प्रतिमा-लेय इस प्रकार हैकी बैठी हुई मूर्ति है । इनके नीचे शासन देवी की बैठी हुई सवत् १३०२ वर्षे पो० १५ गम् लाडवागडा पोरमूर्ति है। देवी के प्रासन के नीचे दबका मिह उत्कीर्ण है। पाटान्वये माहुशहन “सा ...""तेद...""प्रतिष्ठिता देवी के मस्तक के ऊपर पाम्र गुच्छ का छत्र है । द्विभुजी प्रतिमा-लेख की लिपि में खड़ी पाई मिलती है। देवी के वांये हाथ में पाम्र गुच्छ तथा दाहिने में वे एक भानपुग के श्रावक बन्धुनों से निवेदन है कि वे इस बच्चे को लिए हुए हैं। बच्चे के हाथ में भी प्राम्र गृच्छ चमत्कारी प्रतिमा को बड़े मन्दिर में विराजमान कर है। दोनों पाव पर एक एक बैठी एवं एक-एक खडी पुण्य-सचय करने का लाभ प्राप्त करें। प्राचीन प्रतिमा परिचारिकाएं हैं । देवी ललितासन मुद्रा में बैठी है।. सदा पूज्य होती है।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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