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कलचुरि कला में शासन देवियां
शिवकुमार नामदेव (शोधछात्र)
भारतीय इतिहास मे कलचुरि नरेशों का काल प्रवि- हो रहे है। यक्षी के दोनो पार्श्व पर एक-एक परिचा. स्मरणीय रहेगा। दीर्घकाल के शासनावधि में कलचुरि रिका खडी हई है। दाहिने मोर की परिचारिका अपने नरेशो ने अन्य की भांति कला की भी चहुमुखी उन्नति हस्त से अधोवस्त्र पकड़े हुए है, उसके दक्षिण हस्त मे की । शैव धर्मावलम्बी होते हुए भी इन कलचुरि नरेशो सभवतः पद्म है। ने अन्य धर्मों के प्रति द्वेष भाव नही रखा, परिणाम स्वरूप कलचुरि कालीन जैन चश्वरी की प्रतिमा तेवर सभी धर्म एक स्वच्छंद वातावरण मे फले फले। इस (जबलपुर,म०प्र०) बालसरोवर के शैव देवालय की बाह्य काल मे हिन्दू एव बौद्ध मूर्तियो की ही तरह जैन मूर्तियों पट्टी पर उत्कीर्ण है। उसी देवालय की बाह्य पट्टी पर की बहुलता है।
जैन तीर्थकर प्रादिनाथ की अनेकों मूर्तियां है। कलचुरि कला में प्राप्त शासन देवियों की प्रतिमानो
पनागर (जबलपुर, म०प्र०) से अम्बिका देवी की को दो भागो में विभक्त किया जा सकता है-स्थानक एक २॥' ऊँची सुन्दर प्रतिमा प्राप्त हुई है । स्थानीय लोग एव प्रासन प्रतिमाएं।
इस 'खेरदाई' या 'खे रदैय्या' नाम से पूजित करते है । प्रासन मूर्तियां
अम्बिका देवी की यह बैठी हई प्रतिमा को अम्बिका ही कलचुरि क लीन शासन देवी की प्रासन प्रतिमाए, मानने के प्रमुख कारण ये है कि देवी के प्रतीक पाम्रकारीतलाई, तेवर, पनागर (जबलपुर जिले में) तथा लुम्ब एव बालक प्रादि प्रमुख लक्षण स्पष्ट दृष्टिगोचर सोहागपुर (शहडोल जिले मे) प्रादि स्थलो से प्राप्त हुई होते हैं ।देवी के मस्तक पर भगवान नेमिनाथ की पद्माहै। इन मूर्तियो मे अबिका, चक्रेश्वरी की प्रतिमाए सनस्थ व पार्श्व में अन्य खड्गासनस्थ जिन मूर्तियाँ है । मुख्य है।
पृष्ठभाग मे विस्तृत प्राम्रवृक्ष उत्कीर्ण है। देवी के मस्तक कारीतलाई ने पाम्रादेवी की एक मूर्ति प्राप्त हुई है पर क्रमशः नेमिनाथ, पाश्र्वनाथ एवं चन्द्रप्रभु की प्रतिमाएं जो माजकल रायपुर (म० प्र०) सग्रहालय मे सरक्षित उत्कीर्ण है। है । सफेद छीटेदार लाल बलुवा पत्थर से निर्मित इस सोहागपुर (शहडोल म०प्र०) से एक और प्रतिमा प्रतिमा में बाइसबे जैन तीर्थकर नेमिनाथ को शासन देवी प्राप्त हुई है जिसका समीकरण अथवा पहचान प्रभी अबिका ललितासन मे सिंह के ऊपर बैठी हुई है, जो संभव नही हो पाई है । देवी के मस्तक के ऊपर बैठी हुई उसका वाहन है । द्विमजी यक्षी अपने दाये हाथ मे पाम्र- जिन प्रतिमा के मस्तक के ऊपर सर्प के छत्रों का वितान लुबि लिए है और बाम हस्त से गोद में बैठे हुए अपने है। देवी के मस्तक के ऊपर भी सर्प छत्रों का वितान है। कनिष्ठ पुत्र प्रियशकर को सम्हाले हुए है। अबिका का इससे यह संभव प्रतीत होता है कि देवी सुपार्श्व प्रथवा ज्येष्ठ पुत्र शुभंकर अपनी मा के दक्षिण पाद के निकट पार्श्वनाथ (कालिका या पद्मावती) से सबंधित है। एक बैठा हुप्रा है । प्रबिका का चेहरा मुस्कराता हुमा दिख- मुखी एवं द्वादशभुजी देवी के वाम हस्तों में चक्र, वण, लाया गया है । मस्तक के ऊपर स्थित प्राम्रवृक्ष बाला परशु, प्रसि, शर तथा एक वरद मुद्रा मे है। दक्षिण भाग खडित हो गया है । अबिका का केश विन्यास मनो- हस्तों मे धनु, अंकुश, पाश, दण्ड, पप, तथा एक हाथ हर है। उसके प्रग-पग पर यथोचित माभूषण शोभित खण्डित है। देवी के दोनों पाव एवं पादपीठ पर उसके