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________________ ६४, वर्ष २५, कि० २ का नमूना दृष्टव्य है १५. चतुर्विशति तीर्थस्थर पूजा प्रलय पवन करि उठी पागि जो तास पटतर । १६. प्रादिनाथ पूजा बमै फुलिंग शिखा उतंग पर जल निरतर ।। १७. ओंकार सिद्धा जगत समस्त निगल्ल भस्म करहैगी मानो। १८. पंचमेरु पूजा तडतडात बव मनल, जोर चढ़ दिशा उठामो ॥ १६. नन्दीश्वर पूजा सोइक छिन मैं उपशमें, नाम नीर तुम लेत। ६०. चारमित्रो की कथा होइ सरोवर परिन में, विकसित कमल समेत ।। २१. जिन गीत दूसरे हेमराज की रचना प्रवचनसार पद्यानुवाद है (1) नेमिनाथ चरित्रजिस उन्होंने सं० १७२६ मे बना कर समाप्त किया है। इसको रचना प्राषाढ कृष्णा १३ सं० १७६३ को हुई दूसरी रचना दोहा शतक है, जिसे उन्होने कामा (भरत थी। इस काव्य मे कवि ने अपने पाराध्य के गुणों का पुर) मे बनाकर समाप्त की थी। बखान किया है और कहा है कि इस मूर्ति की वन्दना ३) प्रजयराज पाटणी करने से यह जीव इस समुद्र से पार हो सकता है। मामेर अजयराज का जन्म सांगानेर मे हुमा था। बड़े होने के मध्य एक जिन मन्दिर है, उसके चारों ओर प्राकृतिक पर इन्होने भट्टारक देवेन्द्रकीति के शिष्य महेन्द्रकीति के वातावरण का मनमोहक चित्रण दृष्टव्य है--- पास ज्ञान ग्रहण किया और अधिकांशत: पामेर मे रहने अजयराज यह कीयो बखाण, राज सवाई जयसिंह जाण। लगे। इसीलिए डा०प्रेमसागर जैन ने इन्हें प्रामेर का अंबावती सहर सुभ थान, जिन मंदिर जिनदेव विमाण ।। निवासी बताया है। ये मामेर के प्रसिद्ध सांवला जी के वीर निवाण सोहै वनराई, वेलि गुलाब चमेली जाई। मन्दिर में नित्य पूजा वन्दना करते थे। वहां के नेमिनाथ चम्पो मरबो परे सेवति, पो हो ज्ञाति नाना विषि कीती।। भगवान को चमत्कारिक मूर्ति से प्रेरणा पाकर उन्होने बह मेवा विधिसार, वरणत मोहि लागे बार। 'नेमिनाथ चरित्र, लिखा। इनकी अधिकाश कृतिया गढ़ मदिर कछु कहो न जाई, सुखिया लोग बसे अधिकाई भक्ति और अध्यात्म से सबंधित है। अजयगज की प्रमुख तामे जिन मंदिर इकसार, तहाँ विराज श्री नेमिकुमार । रचनाएं निम्न प्रकार है श्याम मूति सोभा प्रति घणी, ताकी उपमा जाहन गणी ।। १. यशोधर चौपाई (कार्तिक कृष्णा २ स. १६७२) (२) शिव रमणी का विवाह२. नेमिनाथ चरित्र (प्रासाढ कृष्णा १३ सं. १७९३) १७ छन्दों को यह एक मौलिक रचना है जिसमे ३. जिनजी की रसोई (जेष्ठ शु. १५ सं. १७६३) मात्मा का परमात्मा के साथ विवाह वणित किया गया ४. पार्श्वनाथ जी का सोलहा (१७६३) है। यह एक रूपक काव्य है। इसमे दूल्हा तीर्थङ्कर को ५. प्रादिपुराण भाषा (१७६७) बताया गया है । भक्तजनो की बरात बनाई गई है। दूल्हा ६. चरखा चउपई। व बरात पचमगतिरूपी ससुराल में पहुँचते हैं और वहाँ ७. शिवरमणी का विवाह । से मुक्ति रूपी रमणी से विवाह करते हैं। शिव रमणी ८. विनती। मात्मा का मन मोह लेती है। उस समय उसके मानन्द ६. वसन्त पूजा । का पारावार ही नहीं रहता। वर-वधू ज्ञान सरोवर में १०. कक्काबत्तीसी। १. संवत सतरास तिगणवे, मास प्रसाढ़ पाई वर्णयो । ११. शांतिनाथ जयमाल । तिथि तेरस अधेरी पाख, शुक्रवार शुभ उत्तिमदास ॥ १२. पद संग्रह। -शास्त्र भण्डार, ठोलियों के मन्दिर में स्थित हस्त १३. बाल्यवर्णन । लिखित प्रति (नेमिनाथ चरित्र) १४. सिखस्तुति २. उत्तरपुराण भाषा के अन्त में परिचय ।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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