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राजस्थान के जैन कवि और उनकी रचनाएं
डा० गजानन मिश्र एम. ए. पी-एच. डी.
(१) जोषराज गोदीका
ज्ञान-पिपासा बुझाने लगे। अद्यावधि उनकी निम्नलिखित जोधराज गोदीका सागानेर के निवासी थे। इनके रचनाएं उपलब्ध हैपिता का नाम अमरचन्द था। ये खण्डेलवाल जैन थे। १. प्रीतंकर चरित्र (स. १७२१)। जोधराज के नाना कल्याणदास थे। कहा जाता है कि २. ज्ञान ममुद्र (स० १७२२) । इनके पिता अमरचन्द गोदीका के पास करोडों की सम्पत्ति ३. धर्म सरोवर (स. १७२४)। थी। दूर-दूर तक उनका व्यापार फैला हा था। गज- ४. सम्यक्त्व कौमुदी भाषा (सं० १७२४)। महलों की तरह उनके महलों पर भी ध्वजाए फहराया ५. प्रवचनसार भाषा (१७२६) । करती है।
६. जिन स्तुति (१७२६)। जोधराज के जन्म की निश्चित तिथि अभी ज्ञात नही ७. कथाकोष भाषा (१७२६) । हो सकी है, लेकिन उनके ग्रन्थो मे दिये हुये रचनाकाल के ८. चौमाराधना उद्योत कथा । प्राधार पर इनका जन्म सं० १६७५ के प्रासपास होना ६. गोडी पार्श्वनाथ स्तवन । संभव है । इनका लालन-पालन लाड प्यार में हुआ। बड़े १०. नेमिजिन स्तुति । होने पर जोवराज ने पं० हग्निाथ मिश्र को अपना मित्र ११. भावदीपिका वचनिका। बनाकर उनकी संगति से शास्त्र-ज्ञान उपलब्ध किया
१२. समन्तभद्र कथा । तथा उनसे अपने पढ़ने के लिए कई हस्तलिखित ग्रन्थो
प्रीतंकर चरित्र एक प्रबन्ध काव्य है जो सम्भवतः की प्रतिलिपियां भी करवाई। प्रारंभिक शिक्षा के पश्चात्
इनकी प्रथम रचना हो सकती है। इसमें प्रीतकर मुनि इन्हें व्याकरण, छंद एव ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथों का भी
का जीवन चित्रित किया गया है। यह ग्रंथ पाटोदी के अध्ययन कराया गया। जोषराज गोदीका अनेक शास्त्रों के प्रकाण्ड विद्वान
मन्दिर में वेष्टन सख्या ६८२ पर उपलब्ध है।
सम्यक्त्व कौमुदी मे कवि द्वारा रचित अनेक लघु थे। सस्कृत, प्राकृत एव व्रज एव राजस्थानी भाषा पर
कथाएं सग्रहीत है। यद्यपि मूल रूप में यह सस्कृत का उनका पूरा अधिकार था। प्राध्यात्मिक शास्त्रों में उनकी विशेष रुचि थी। अपनी इसी रुचि के कारण उन्होने अथ
ग्रंथ है लेकिन कवि ने अपनी प्रतिभा से इसमें मौलिकता सांगानेर को साहित्य का केन्द्र बना दिया और जनता की
लाने का प्रयास किया है। जिसे पढकर प्रत्येक पाठक को
प्रात्मदर्शन होते है। इसीलिए प्रारंभ मे कवि ने कहा है१. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास ।
मूल ग्रंथ में ज्यों सुनी, कथा कहै कवि जोष । - कामता प्रसाद जैन पृ० १५५ २. जोध कवी सुर होय, वासी सागानेर को।
सोई ए भाषा सही, वायक दरसन बोष ।। प्रमरपूत जग सोय, वणिक जात जिनवर भगत ।।
सम्यक्त्व कौमुदी की रचना कवि ने संवत् १७२४ में --धर्मसरोवर छद स०६७३ । फाल्गुन वदा जयादशा शुक्रवार का सागानरम बन ३. प्रवचन सार भाषा छद २७-२८ ।
समाप्त की थी, जैसा कि उसके प्रशस्ति पद्य से स्पष्ट है४. वीरवाणी वर्ष १, पृ०७०।
संवत सत्रास चौबीस, फागुन वुदि तेरस शुभ दीस । ५. वही। ६. वही।
सुकरवार सो पूरन भई, यह कथा समकित गुन ई॥