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सल्लेखना या समाधिमरण
जन सम्पर्क से दूर रहे हैं और जिनका उपलब्ध साहित्य में उल्लेख भी नहीं मिलता ।
जैन साहित्य के अध्ययन से पता चलता है कि अनेक तपस्वी साधु ने अपने अन्तिम जीवन में जीवन की सफलता के लिए समाधिपूर्वक प्राण छोड़ा है। प्रवण बेलगोल के अनेक शिलालेखों में सल्लेखना या समाधिपूर्वक शरीर का परिश्याग करने वाले अनेक साधुओं और धावक श्राविकाओं के नामों का उल्लेख किया गया है जिनमें से अनेक साधुम्रों ने एक-एक महीने तक के उपवासों द्वारा समभावों से प्राणों का विसर्जन किया है और दर्शन, ज्ञान, चारित्र तथा तपरूप प्राराधना चतुष्टय द्वारा श्रात्मसमाधि में निष्ठ रहकर मानव जीवन को सफल बनाया है । यहाँ उदाहरण के तौर पर सिर्फ दो साधों का उल्लेख किया जाता है जिन्होने एक मास के उपवास पूर्वक समता से जीर्ण शरीर का परित्याग कर देव लोक प्राप्त किया है।
१. मलनूर के पट्टनिगुरु के शिष्य उग्रसेन गुरु ने एक मास तक सन्यास व्रत का पालन कर शरीर का परित्याग किया था। यह शिलालेख शक संवत् ६२२ (वि० सं० ७५७) का है।
२. कुन्दकुन्दाग्यय देशी गण के चारुकीति पति देव के शिष्य अजितकीर्ति देव ने एक मास के उपवास के पश्चात् शक संवत् १७३१ (वि०स० १०६३) में भाद्रपद वदी चतुर्थी बुधवार को स्वर्ग प्राप्त किया।
जैन लेख संग्रह में ऐसे अनेक लेख है जिनमें एक महीने से भी कम समय में सन्यास व्रत का अनुष्ठान करते हुए शरीर का परित्याग कर मानव जीवन को सफल
बनाया था।
; जैन लेख स० भा० १ लेख नं० ८ ।
२. जैन लेख संग्रह भा० १, लेख नं० ७२ ।
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इनके अतिरिक्त अनेक श्रावक श्राविकाओंों ने भी समाधि मरण द्वारा शरीर का परित्याग किया है। उनमें से यहाँ दो धाविकाओं का परिचय दिया जा रहा है
श्रेष्ठराज चामुण्ड की पत्नी देमियक्क, जो मूल संघ, देशीगण और पुस्तक गच्छ के विद्वान मुनि शुभचन्द्र सिद्धान्त देव की शिष्या थी और दूषण की ज्येष्ठ भगिनी
थी । बडी विदुषी, पति परायणा, जिन चणाराधिका और माहारादि चारों दान दात्री यो बढी विष्ठा थी, 1 उसने शक सं० ६५० के लगभग घवला की प्रति लिखवाई थी और बूमिराज के स्वर्गवास के पश्चात् क सं० १०३७ और १०४२ के मध्यवर्ती किसी समय मे शुभचन्द्र भट्टारक को प्रदान की थी। इस देमियक्क या देमति ने शक सं० १०४२ में फाल्गुन वदी ११ बृहस्पतिवार को सन्यास विधि से शरीर का परित्याग किया था । दण्डनायक गंगराज की धर्मपत्नी लक्ष्मीमति ने जो जिन धर्मपरायणा साध्वी महिला थी, मन्दिर निर्माण पादि कार्यों में सहयोग देती थी। और दानधर्म में जिसकी अभिरुचि थी । उसने भी शक सं० १०४४ मे सन्यास विधि से शरीर का परित्याग किया था उसकी पावन स्मृति मे उसके पति दण्डनायक गंगराज ने एक निषद्या बनवाई।
सल्लेखना या समाधिमरण का सक्षिप्त परिचय पाठकों के समक्ष उपस्थित है। पाया है वह पाठकों को रुचिकर और उपयोगी होगा ।
३. श्री मूलसंघद देशिगणद पुस्तकगच्छद शुभचन्द्र सिद्धान्त देवर गुद्धि सक वर्ष १०४२ नय विकारी सवत्स रद फाल्गुण व ११ वृहवार दन्दु सन्यासन विधियि देमियक्क युडिपिदलु ।
- जैन लेख सं० भा० १, लेख नं० ४६, पृ० ७० । ४. जैन लेख सं० भा० १, पृ० ६८ ।