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________________ अपभ्रंश की एक अज्ञात कथा-रचना डा. देवेन्द्रकुमार शास्त्री भारतीय साहित्य में प्राकृत और अपभ्रश कथा- सामाजिक परिवेश में चित्रित की गई है। घटनाएं साहित्य प्रत्यन्न समृद्ध है। यह कथा-साहित्य जन-मानस मामान्य होने पर भी लोक सांस्कृनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मे शत-सहस्राब्दियो से प्रचलित रहा है। इसमे न केवल है। कथा रचना-पाकार में सांस्कृतिक विवरण को समेट धार्मिक और सामाजिक जीवन का वरन् लोक-सस्कृति नहीं पाई है, किन्तु सकेत प्रवश्य मिलते हैं । जैन साहित्य का परिवेश भी चित्रित किया गया है। अधिकतर कथाए में इस प्रकार की अनेक कथाएं मिलती हैं जो मल में लोक-जीवन से ली गई हैं। कथावस्तु और भाषा दोनों ही लोक कथाएं थी और जिनमे कथानक रूढ़ियाँ तथा कथालोक-जीवन की स्वाभाविकता को सहेजे हुए हैं। लोक-भिप्राय सहज रूप में निबद्ध है। भारतवर्ष में ही नही, जीवन के चित्रण में स्थानीय रग-रूपो की झलक भी सभी देशो मे कथा-साहित्य मौखिक रूप में प्रचलित रहा मिलती है। इन कथानो मे नायक व चरित्र सामान्य है, जिम उसके विभिन्न रूपान्तरण प्राप्त होते है। जीवन के हैं। यर्याप निम्न वगं के जीवन से उनमे कुछ प्रादित्यवर कथा का पाठ निम्नलिखित है :विशिष्ट पौर असाधारण कार्य भी लक्षित होते है, किन्तु पासाजणह पय पणविवि सरसह चित्त परि । वे इतने असाधारण नही है जो सामान्य जीवन में न मिल सुह वयहफल प्रक्खमि णिसुण भाव करि ।। सकते हों। मध्ययुगीन भारतीय साहित्य में सामन्त वर्ग भरह खित्ति महिमंडल वाणारसि जु पुरी। का चित्रण करना एक सामान्य प्रवृत्ति थी, जिसकी विशेष जीवदयावय पारउ सेटिवि तहि गयरी ।। ताएं अपभ्रंश-साहित्य में भी मिलती है। गुणवय कतहि रत्तउ रेसि गंवण जणिया । प्रस्तुत 'प्रादित्यवार कथा' एक ऐसी ही कथा-रचना वाण पूय सुपयासिवि विवहे तणु गणिया ।। है, जो भाषा काव्यों के लिए एक प्रादर्श (मॉडल) रही एकहि दिणि सा सेठणि चेईहर गया। है और जिसमें जन सामान्य की घटनाएं एक धार्मिक व ___ण्हवण पूजहि प्रवलोय वि संठिनबह सहिया । उपक्रम किया गया है। परन्तु लेखक ने लिखते समय मणि सिखंत पढतहि रविवउ बजरिउ । उनकी जांच नहीं की। इस कारण कुछ सुनी सुनाई जो किज्ज नवरसहि हियए तं परिउ ।। बातो का भी समावेश हो गया है फिर भी कवि का प्रयत्न धम्मसवणु बहु णिसुणिवि चेए धरि गइया । सराहनीय है। अन्य में जयपुर नगर का अच्छा वर्णन पुण्णक्खय वउ णिविवि उग्गदुग्गणि भइया ।। किया है। किन्तु कविता सरस नहीं है साधारण कोटि की महणिसि महि विसूरह किम कीयो वइया । है। कवि ने इस ग्रन्थ की रचना वि० स०१८२७ मार्ग- घर परियण सबु छंडिवि पुत्त वि पहि चलिया ।। शिर शुक्ला द्वादशी के दिन अश्विनी नक्षत्र में समाप्त प्रवधि हि ते वि पहत्ते बहु दिणि गमण करे। को है जैसा कि उसके पद्यों से स्पष्ट है : सुयण वितरि णालोपहि समरिउ चित्त घरे ॥ संवत् पठारह शतक ऊपर सत्ताईस । तह जिणभसउ वणिवरु बहुलच्छो सहिया । मास मांगसिर पखि सुकल तिथि द्वादशी लहोश । सूरो गमि ते दुग्गइ तह मंदिर गया ।। नखित पश्विनी बार गुरु सुभ महाख के मदि। अणकंपा सहि सेठहि णा प्रबहेरि किया। पंथ अनूप रच्यो पद ह ताक संबसिदि॥* साहमी जाणेप्पिणु मंदिर सठ किया।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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