SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६२५० १ स्वती देवी के मुख से 'पाय दिगम्बर' शब्द कहला दिया, परिणामस्वरूप दिगम्बरों ने पहले यात्रा की और भगवान नेमिनाथकी भक्ति पूर्वक वदना पूजा की। उसके बाद श्वेतांबर सम्प्रदाय ने की। पट्टावलि के वे पद्य इस प्रकार हैं : "पद्मनन्दि गुरु जातो बलात्कार गणाग्रणी । पाषाण घटिता येन वादिता श्री सरस्वती ।। अनेकान्त पन्त गिरीतेन गच्छः सारस्वतोऽभवत् । प्रतस्तस्वं मुनीन्द्राय नमः श्री पद्मनन्दिने ।" इस घटना का सम्बन्ध कुन्दकुन्दाचार्य से कतई नही क्योंकि इस घटना का समय वि० की १५वीं शताब्दी है तो इनसे कई शताब्दियों पहले हो गये हैं । इसका सम्बन्ध पद्मनन्दि नाम साम्य के कारण कुन्दकुन्द जोड़ना, निराधार है। दूसरी घटना अलाउद्दीन खिलजी के समय की है, जिसे फिरोजशाह तुगलक के समय की बतलाई गई है। जबकि सं० १३७५ में भट्टारक प्रभाचन्द हुए जब दिल्ली के पातशाह पेरोजशाह हुए थे तब चादाशाह हुए, तब भ० प्रभाचन्द्र दिल्ली पाए प्रोर उन्होंने विद्यावल से बाद जीत लिये, मोर शाह ने रोककर लंगोट लगाकर अन्तःपुर के दर्शन की बात कही धौर सब बायको ने ऐसी प्रतिज्ञा की कि हम प्रापको वस्त्रयुक्त यती मानेंगे। प्रभाचन्द्र से राघो चेतन ने वाद किया और वे उसमे पराजित हुए' पालिको बन्द कर दी, तब उन्होंने उसे बिना कहारों के चलाई । १. संवत् तेरह से पिचिहतरथो जानिये, भए भट्टारक प्रभाचन्द्र गुनवानि वै ।। - बुद्धिविलास पृ० ७८ २. दिल्ली के पातिसाहि, पेरोजसाहि जब । चांदोशाह प्रधान भट्टारक प्रभाषन्द्र तब भाए दिल्ली माझि बाद जीते विद्यार साहि रीझि के कही, करं दरसनपुर तिहि सम संगोट शिवाय फुनि चाँद विनती उच्चरी । मानि जती जुत वस्त्र हम सब भावग सौगंद करो || याही गछ मैं भट्टारक जब बहुभए, बश्य कितेक विती है गछ निकसे नये । तिनमें चलत वचन को भेद न जानियों निकसन की विधियां लिपीतो मानियों ॥ ६१॥ कविका यह सब कथन ठीक ठीक नहीं जान पड़ता, क्योंकि राघो चेतन ऐतिहासिक व्यक्ति हैं। वे प्रलाउद्दीन खिलजी के समय हुए हैं। उनका वाद महासेन से हुआ था। राघो चेतन का अस्तित्व फीरोजशाह तुगलक के समय नहीं था। फीरोजशाह तुगलक का समय वि० स० १४०० से १४४५ है। हाँ, प्रभाष फीरोजशाह तुगलक के समय मौजूद थे, वे वस्त्र धारण करके भन्तःपुर मे भी गए । राघो चेतन का सम्बन्ध प्रभाचन्द्र के साथ नही था और न उनके समय राघो चेतन हुए। यह घटना महासेन के साथ घटी थी, जो पलाउद्दीन खिलजी के समय दिल्ली भाए थे । इसी तरह ग्रन्थ में जहाँ तहाँ कथन में विरुद्धता दिखलाई पडती है । ग्रन्थों में इन्द्रनन्दिके नीतिसार का भाषा पद्यानुवाद भी दिया हुआ है। उसके सम्बन्ध में कवि ने स्वयं लिखा है कि इन्द्रनन्दि का नीतिसार ग्रंथ संस्कृत पद्यों में है। मेरे अनुरोध करने पर पं० कल्यान ने, जो संस्कृत भाषा के अच्छे विद्वान और तर्क वाले थे। इतिहास सम्बन्धि कुछ बातों का ज्ञान रखते थे । उनका प्रथं बतलाया, तब मैंने उसका अनुवाद किया । ग्रन्थ निर्माण के सम्बन्ध में कवि ने लिखा है कि उस समय जयपुर में गुणकीर्ति नाम के एक मुनि थे, जो तप का अनुष्ठान करते थे । उन्होंने मुझसे कहा कि तुम एक ग्रन्थ बनाओ, जिसमें जैन पन्थ का संघ गण गच्छादि की उत्पत्ति भोर उनके भेदों का वर्णन हो, महावीर से लेकर अब तक की पट्टावली, आवकों के साँप गोत्र वगैरह धौर धन्य मनेक घटनाओं का वर्णन समाविष्ट करो। साथ ही पांवाड, संतोषराम, भांवसा रूढामल प्रादि अनेक श्रावकों ने भी ग्रंथ बनाने की प्रेरणा की। तब मैंने इस ग्रन्थ को बनाने का उद्यम किया है। ग्रंथ में अनेक ऐतिहासिक घटनाएं लिखने का ३. प्रावतपुर में मनिर्धारि विषाद राघो चेतन प्रति किय विवाद पालिकी बंद कर दी लवार दही चलाय मुनि बिन कहार ।। ६०२ ।। राघो चेतन ऐतिहासिक व्यक्ति हैं, जो मन्त्र-तन्त्रवादी थे । मोर मलाउद्दीन खिजली के समय दिल्ली प्राये थे ।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy