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पं० बखतराम शाह
परमानन्द जैन शास्त्री
पं० बखतराम प्रेमराज के पुत्र थे। यह चाटसू (राज- कीय घटनाए, और इनसे पूर्ववर्ती घटनाए जो सुनी-सुनाई स्थान) के निवासी थे। इनकी जाति खण्डेलवाल और थी उन्हें भी लिख दिया है, पर उनके सम्बन्ध में कोई गोत्र शाह था और धर्म था दि० जन । चाटसू से वे विचार व्यक्त नहीं किया कि ये ठीक हैं या नहीं। कारणवश सवाई जयपुर में रहने लगे थे। जयपुर मे वे यहा पर पन्थ की एक-दो घटनामो का दिग्दर्शन लश्करी मन्दिर में विराजमान ने मिप्रभु की भव्य मूर्ति का कर देना उचित समझता है। जो ऐतिहासिक दृष्टि स दर्शन किया करते थे। शाह बखतावर के ४ पुत्र थे- विरुद्ध पड़ती हैं। सेवाराम, जीवन शाह, खुशालचद और गुमानीराम ।
काहू समये संघ चल्यो गिरनारिकों। इनमें सेवाराम का परिचय प्रलग लिखा गया है। जीवन
कुंद कुंद मुनि बहुरि श्वेत पट लारकों ॥५७३ शाह भक्ति के प्रेमी थे उन्होंने अनेक भक्ति पद बनाये
साथि वुहू मतके ही पंच भये घने । हैं। जीवन शाह ने स० १८६३ मे 'बुद्धिविलास' की प्रति
पहुंचे गिर तरि जाय सर्व ऐसे भने, लिखवाई थी।
पहले बरसन करन तनो मगरो परचो शाह बखतराम भट्टारकीय विद्वान थे और वीस पथ
मापस माझि वहन हो क प्रति रिस भरपो।।५७४ के अनुयायी थे। इन्होंने मिथ्यात्वखडन नाम का ग्रन्थ सं० १८२१ में बनाकर समाप्त किया था। इसमें तेरा
वे तो कहें हमारो हो मत प्रावि है। पंथ का खंडन किया गया है ।
दूजे कहँ अनादि हम प्रावि है। ___ इनकी दूसरी रचना 'बुद्धिविलास' हैं जिसमें १५२६
तव प्रकास तं भई देव बानी यही। टोहा, चौपई, कवित्त छप्पय, कुंडलियां, सोरठा, पद्धड़ी,
सगरत काहे मावि दिगंबर है सही ॥५७५ भुजगप्रयात, परिल्ल, गीता, सवैया प्रादि छन्दों मे
पहिले वंदन करी नेमि जिनचंद की। विविध विषयों का कथन किया गया है, अथ में जयपुर
जबते प्रामनाय ठहरी मुनि कुंद कोना मामेर का वर्णन राजानों का समुल्लेख, भट्टारक पट्टावलि
यह घटना प्राचार्य कुन्दकुन्द के ममय की नहीं है, सघोम्पत्ति चद्रगुप्त के सोलह स्वप्न देवसेन के दर्शनसार
किन्तु विक्रम की १५वीं शताब्दी के पद्यतन्दि भट्टारक के का पद्यानुवाद, हेमराज के अनुसार चौरासी बोल, खडे
समय की है उम समय दिल्ली वालों का संघ मेठ पूर्णचन्द लवालो के गोत्र मादि सं० १७१७ तथा १८१८ की राज
की प्रधानता में म०पयनन्दि के सानिध्य में गिरनार की १. ग्रन्थ अनेक रहस्य लखि जो कुछ पायो थाह । यात्रा को गया था, उसी समय श्वेताम्बर सम्प्रदाय का
बखतराम वर्णन कियो प्रेमराज सुत साह ।। संघ भी उक्त तीर्थ की यात्रार्थ प्राया हुपा था। उस समय मादि चाटसू नगर के वासी तिनको जानि । दोनों संघों में यह विवाद छिड गया कि पहले कौन बंदना हाल सवाई जै नगर माहिं बसे है प्रानि ।। करे, जब विवाद ने अधिक तुल पकड लिया, तब उसके तहाँ लश्करी देहरं राजत श्री प्रभु नेम ।
शमनार्थ यह 'युक्ति सोची गई कि जो सच सरस्वती से तिनको दरसण करत ही उपजत है प्रति प्रेम । अपने को 'प्राध' कहला देगा वही संघ पहले यात्रा को
-मिथ्यात्वखंडन नाटक जा सकेगा। प्रतः भट्रारक पदमनन्दि ने पाषाणको सर