________________
४, वर्ष २५. कि
अनेकान्त
गया है।
पर ऊपर की वेदी में विराजमान प्रतिमाएँ :
प्रकित है । परिकर का ऊपरी प्रश टूट गया है। ऊपर प्रथम चौबीसी
उड्डायमान दो देवाकृतियां रही ज्ञात होती हैं। नीचे
दोनो मोर दो देवाकृतियां हैं तथा उनके भी नीचे दो इस चौबीसी में मूलनायक प्रतिमा के अतिरिक्त अन्य भोर २४ प्रतिमाएं अंकित की गई हैं। सभी प्रतिमाए।
अलंकृत मानवाकृतियां दिखाई देती है। प्रासन टूट कायोत्सर्ग मुद्रा में काले पाषाण से निर्मित है। मूलनायक प्रतिमा के शिर पर तीन छत्र तथा पीछे भामण्डल प्रकित
:: मूलनायक प्रतिमा शान्तिनाथ को नहीं : है। चिह्न के प्राभाव में मूलनायक प्रतिमा का प्रति बोध
शान्तिनाथ प्रतिमा के सम्बन्ध में हम पहले ही बता नहीं होता है।
माए हैं कि कंधो पर लहराती हुई केशराशि इस बात की द्वितीय पारिनाथ प्रतिमा
प्रतीक है कि प्रतिमा शान्तिनाथ तीर्थङ्कर की नही है वह काले पाषाण से निर्मित यह प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा मे नोडा विनाश की। यदि शान्तिनाथ की विराजमान है। श्रीवत्स चिह्न स्पष्ट दिखाई देता है। तीनो
ताह' होती तो चिह्न भी अंकित मिलता। इस प्रतिमा का परिकर किञ्चित् परिवर्तन के साथ
पनागर के ही कछयाने मे स्थित संग्रहालय में समहनुमानताल बड़े मन्दिर में विराजमान प्रतिमा के समान ,
हीत जैन मूर्तियों को देखने से भी यह बात और स्पष्ट है। शिरोपरि मलकत तीन छत्र अकित है । छत्र के दोनो
हो जाती है । उक्त सम्रहालय मे भग्नावस्था में प्राज भी मोर भलंकृत हो हाथी सवारों से युक्त मूर्तिगत किए गए मोदो मतियां उपलजिनके कंधो पर न केवल केश है। हाथियों के नीचे दोनों ओर अपने-अपने हाथों में राशि ही है, अपितु उनके पासनों पर उनका चिह्न वृषभ मालाएँ धारण किए हुए दो उड्डायमान देवाकृतियां हैं। भो अंकित है। शासन देवतामों का प्रकन भी दिखाई ये प्राकृतियां विभिन्न अलंकारो से युक्त हैं । इन देवों के देता है नीचे दोनो भोर मन्य देवाकृतियाँ अंकित है। जिनके एक
यदि इस प्रतिमा का परिकर भग्नावस्था मे न होता तो एक हाथ में चंवर दिखाई देता है। इन प्राकृतियो के
प्रतिमा का चिह्न तथा शासन देवताओं का अंकन भी अंगावयव अलंकारों से सुसज्जित हैं। इनके नीचे दोनो
वास्तविकता को प्रकट करता। इस भाति एक ही क्षेत्र मोर दो भग्न मुद्रा में पुरुष मोर नारी को प्राकृतियां
विशेष की एक सी कलाकृति की उपलब्धियों से भ. दिखाई देती है, जो सभवतः यक्ष-यक्षिणी है।
शान्तिनाथ की प्रतिमा यथार्थ में भ. प्रादिनाथ की ही मासन पर दोनों मोर दो सिंहाकृतियां है। सिंहा
ज्ञात होती है। कृतियों के मध्य एक पुष्पाकृति है जिसके अन्तर्गत एक वृषभाकृति अंकित दिखाई देती है। इस प्राकृति से प्रतिमा मन्दिर का नाम बड़ा मन्दिर क्यो ? प्रथम तीर्थकर मादिनाथ की ज्ञात होती है। प्रासन के . मन्दिर के नामकरण से भी यही ज्ञात होता है कि यह नीचे एक पंक्ति में लेख भी अंकित है किन्तु लेख का कुछ सर्व तीर्थङ्करों में बड़े तीर्थकर मादिनाथ के लिए निमित मंश वेदी में दब गया है । प्रक्षर भी इतने अस्पष्ट हो गए कराया गया होगा। प्रतएव इसे बड़ा "बड़ा मन्दिर' हैं कि उनका पड़ा जा सकना कठिन है। लेख में “षष्ठी सज्ञा से सम्बोषित किया जाने लगा कुण्डलपुर (दामोह) प्रतिष्ठापितं" किसी तरह पढ़ा जा सकता है। इससे प्रतिमा को बड़े बाबा की प्रतिमा भी इसी प्रकार प्रथम तीर्थकर उक्त तिथि में प्रतिष्ठापित की गई ज्ञात होती है । मादिनाथ की है। और यही कारण है कि उक्त प्रतिमा तृतीय प्रतिमा
को माज बड़े बाबा' के नाम से जाना जाता है। काले पाषाण से निर्मित कायोत्सर्ग मुद्रा में यह प्रतिमा