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बरा मन्दिर पनागर की प्राचीन जैन शिल्पकला
हाथ लम्बे चौड़े देशी पत्थर पर अंकित यह शिल्प जवल- इस मन्दिर के निचले द्वितीय अंश में एक वेदी पर: पुर हनुमानताल बड़े मन्दिर में विराजमान कलचुरि तीन प्राचीन जैन प्रतिमाएं विराजमान हैं। कालीन प्रतिमा के समान है। इस अंकन में मूलनायक
पार्श्वनाथ प्रतिमा प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में ध्यानस्थ है । केश गुच्छक रूप में
पघासन मुद्रा में ध्यानस्थ यह प्रतिमा नब फणावली दर्शाये गये हैं। विज्ञाल नेत्र, कर्ण प्रतिमा की भव्यता प्रकट से गले में कण्डनपर के 'बडे बाबा' की प्रतिमा करते हैं । गले मे त्रि रेखायें उनके रलत्रयमय उपदेश एवं समान तीन रेखायें दिखाई देती हैं। प्रतिमा के भासन धारण की प्रतीक ज्ञात होती है। प्रतिमा का परिकर कलाकृति का उत्कृष्ट रूप है।
पर नवग्रह प्रतिमाएँ अंकित है। दोनो पोर चंवरधारी
दो देव खड़े दिखाए गये हैं। बीच में फण फैलाए हए दो सर्व प्रथम सर्वोपरि अलंकृत दोनों पोर हाथी प्रकित है सभी प्रकित है। ये सर्प चिह स्वरूप अंकित किए गये जिनकी सूड छत्र के ऊपरी मंश का स्पर्श कर रही है। हाथियों के मध्य पिछत्र अलकत रूप में चित्रित किए
ज्ञात होते है । प्रतिमा देशी पत्थर से निर्मित है। गए हैं। छत्र के सबसे ऊपर एक मानवाकृति भी अकित
द्वितीय प्रतिमा दिखाई देती है जो कोलक जैसे वाद्य के बजाने में रत है। प्रतिमा तीन छत्र से सुशोमित है। दोनो मोर दो हाथा पुष्पाकृतियों पर आधारित है। पुष्पारियो के नीचे हाबी हाथियों के नीचे दो चवरषारी देव भंकित हैं। मलकृत दोनों मोर दो उडडायमान देवाकृतियां तथा उनके दोनो पोर पद्मासन तथा कायोत्सर्ग मुद्रा में एक-एक नीच दो चंबरधारी देव प्रकित हैं। प्रासन पर पथमनो प्रतिमा भी प्रकित है। चिह्न विहीन मासन, जबलपुर अलंकरण के रूप में तीन कमल पुष्प की पालियां हनुमाननाल बड़े मन्दिर में विराजमान प्रतिमा के पासन उनके नीचे दोनों पोर दो सिंहाकृतियों का अंकन है।
से मिलता जुलता है। कलाकृति से प्रतिमा कलधार सिंहाकृतियों के मध्य एक पुष्पाकृति भी है जिसे चिह्न नहीं
कालीन ज्ञात होती हैं । प्रासन पर प्रकित दोनों पोर सिंहाकहा जा सकता है।
कृतियां केवल प्रलकरण मात्र है। मूलनायक प्रतिमा के दायें-बायें कायोत्सर्ग मुद्रा में दो
तृतीय मानस्तम्भ प्रतिमाएं अकित है। प्रतिमानों का प्रकन मूलनायक काले पाषाण से निर्मित यह स्तम्भ अवलोकनीय है। प्रतिमा के समान है। शिरोपरि सर्व प्रथम तीन छत्रों का इस स्तम्भ के चारों पोर १३.१३ प्रतिमाएं प्रकित की अंकन है। छत्र के नीचे सप्त फणावली से युक्त रचना गयी हैं। ऐसा ज्ञात होता है मानो नंदीश्वर द्वीप के ५२ की गई है। फणावली भग्न हो जाने पर भी उनका सप्त प्रकृतिम चैत्यालयों का दिग्दर्शन कराने के लिए ही इस संख्यक होना ज्ञात होता है। फणावली से ये प्रतिमाए स्तम्भ की रचना की गयी थी। स्तम्भ पर प्रकित प्रति. सुपाश्र्व नाथ तीर्थङ्कर की ज्ञात होती हैं । पासन पर कोई माएं तीन भागों में विभाजित है। प्रथम अंश में तीन-तीन लेख नहीं है । कलाकृति से प्रतिमा कलचुरि कालीन ज्ञात प्रतिमाएं हैं । इनमें मध्य में एक प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा में होती है।
तथा उस प्रतिमा के दोनों भोर कायोत्सर्ग मुद्रा में एक-एक बहुत कुछ ऐसे ही अंकन से युक्त काले पाषाण से प्रतिमा दर्शाई गयी है। निर्मित कायोत्सर्ग मुद्रा में दो प्रतिमाएं बड़े मन्दिर के समीप मध्यवर्ती तथा निचले अंक के मध्य में एक-एक ही निर्मित एक पृथक् मन्दिर की एक वेदी पर भी विराज- ध्यानस्थ मुद्रा में तथा उसके दोनों मोर दो-दो कायोत्सर्ग
मुद्रा में प्रतिमाएं विराजमान है । मासन पर दोनो भोर ये प्रतिमाएं प्रथम तीर्थकर मादिनाथ को ज्ञात होती सिंहाकृतियां है । इन प्राकृतियों के मध्य एक पुष्पाकृति है। ऐसी प्रतिमाएँ कछयाने में भी संग्रहीत हैं जिनमे यह भी मंकित की गई है। तथ्य और भी स्पष्ट हो जाता है।
मन्दिर के द्वितीय अंश से भीतर की पोरवायत