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________________ ४२, वर्ष २५, कि.१ अनेकान्त उसने खोदना प्रारम्भ किया और उसे यह प्रतिमा उपलब्ध प्रतिमा का वर्णन भी मैंने प्रकाशित करा देना ठीक ____ समझा है। इस प्रतिमा के सम्बन्ध में श्री सिंघई मिठूलाल जी मभिलेख पनागर निवासी से यह किंवदंति भी ज्ञात हुई कि प्राप्ति लेख दो पंक्तियों में संस्कृत भाषा में नागरी लिपि के उपरान्त जब प्रतिमा को उठाने की चली तो स्वप्न में अंकित है। माया और स्वप्न के अनुसार उक्त प्रतिमा को कच्चे धागे (१)। संवत् १८५८ मीती (मिती) वसाष (वैशाख) से बांधकर छत्तरपुर की टोरिया की भोर भरत बढ़ा। सूदि १३ श्री मलसघे सरस्वनी गच्छे बलात्कार (गणे) मक्त इस स्थल तक मा पाया था कि उसका धैर्य टूट कुंदकंदाचार्यान्वये श्री भट्टारक नरेन्द्र भूषण जी पट्ट पुवाले गरा। प्रतिमा पा रही है कि नहीं इस चाह ने उस पीछे (?) रतनतउ पट्ट सात सिंघई कासीराम पुत्र सुखलाल देखने के लिए बाध्य कर दिया। कहते हैं जैसे ही भक्त ने तालौटकर देखा कि फिर प्रतिमा मागे नहीं बढ़ी। तत्पश्चात् (२) श्री-व-सवसु बाजण (जिण) मंदिर प्रतिष्ठा उसी स्थल पर प्रतिमा को विराजमान करना पड़ा। एक __ कारापिता ॥ गो उल्वद्रे से मध्ये पनागर नगरी मध्ये तिण पतिशय यह भी हमा कि एक हाथ टेहुनी से टूटकर (जिण) मंदिर गजरथ प्रतिष्ठा कारापिता। प्रतिमा का पपने पाप गिर गया। चिलिन भक्त को पुनः अतिशय स्वप्न माया कि हाथ सीरे से जोड दो"। भम ने वैसा श्री रतनचन्द्र जी गोदिया द्वारा लिखित "जैन ही किया। वह जोड़ माज भी दिखाई देता है । समाज पनागर का क्रमिक विकास" नामक कषि में पूर्व (२) निर्देशित किवदन्ति दूसरे रूप में निर्देशन की गयी हैमन्दिर के इसी प्राङ्गण मे एक पृथक् अलकृत वेदी कि जबलपूर समाज इस प्रतिमा को ले जाना चाहती पर पाश्वनाथ प्रतिमा भी विराजमान है। प्रतिमा के शिर थी। प्रयत्न किये, किन्त प्रतिमा-पचासों व्यक्तियों द्वारा पर ग्यारह फणावली से युक्त अकन है। यह पा. मागे ले जाए जाने का प्रयास किए जाने पर भी, वर्तमान सनस्थ प्रतिमा प्रतिशय पूर्ण बनाई गई है। ग्राम पंचायत कार्यालय से मागे न ले जायी जा सकी। अतिशय प्राश्चर्य कारक यह बात रही कि प्रतिमा को पीछे लौटाने इस प्रतिमा के सम्बन्ध में बताया जाता है कि किसी पर वह दो व्यक्तियों द्वारा ही पासानी से ले जायी जाने बाहरी जैनी ने इसे प्रतिष्ठित कराया था। वह इस प्रतिमा लगी। को अन्यत्र ले जाना चाहता था किन्त गाडी के बार-बार एक प्रतिशय यह भी बताया गया है कि इस प्रतिमा टूटने पर ऐसा निश्चय किया गया कि गाड़ी पर प्रतिमा को पीछे वेदी बनाकर उस पर प्रतिष्ठित किया गया किन्तु को विराजमान कर दिया जावे मोर बलों को छोड़ दिया प्रतिमा एक बार नहीं अपितु द्वितीय प्रयास में भी अपने जावे। प्रतिमा जहां जाना चाहेगी चली जावेगी। ऐसा यथा स्थान पर पाकर विराजमान होती रही। किए जाने पर बैल प्रतिमा को लेकर इस मन्दिर को भोर तृतीय अतिशय उस समय घटित हुमा जब किसी रजचल दिए फलस्वरूप प्रतिमा तत्पश्चात् इसीमन्दिर मे स्वला स्त्री का प्रतिमा से स्पर्श हुमा स्पर्श होते ही प्रतिमा प्रतिष्ठित की गयी। से इतना स्वेद निकला कि पच्चीसों घोतियां जल में भीग यह प्रतिमा प्राचीन नहीं है। इस पर अंकित लेख गयीं। इस घटना का प्रत्यक्षदर्शी प्रेम माली था माज धूमिल सा हो गया है पढ़ने में कठिनाई होती है। मन्दिर के प्रथम प्रांगण के प्रवेश द्वार की बायीं मोर यदि यही व्यवस्था रही तो भविष्य मे यह लेख मपठनीय पार्श्वनाथ प्रतिमा के समीप विराजमान एक कलाकृति हो जावेगा। प्रतः लेख सुरक्षित हो सके इसलिए इस बहुत ही भव्य अवस्था में विराजमान है। लगभग एक
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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