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बड़ा मन्दिर पनागर की प्राचीन जैन शिल्पकला
कस्तूरचन्द सुमन एम. ए.
मध्यप्रदेश के जबलपूर शहर से ५० मील दूर जबल कोई लेख उपलब्ध नहीं हमा है जिससे उक्त संभावना पुर कटनी रोड पर स्थित पनागर एक ऐतिहासिक स्थल सत्य प्रतीत होती है। है। यहाँ प्रधानतः गोलापूर्व और परवार जनों का प्रतिमा का बायाँ हाथ टेहुनी से भग्नावस्था में दिखाई निवास है।
देता है। काले-भूरे देशी पत्थर से निर्मित इस प्रतिमा की उपलब्ध प्राचीन जैन प्रतिमानों से ऐसा प्रतिभास केश-राशि कधो पर लहराती हुई दर्शाई गयी है। श्री वत्स होता है कि १२वीं सदी के पास-पास कलचरि नरेश चिह्न यथा स्थान प्रकित है। गयाकर्ण देव के शासनकाल मे यह क्षेत्र भी जैन संस्कृति केश-राशि की रचना से प्रतिमा प्रथम तीर्थकर से प्रभावित रहा है। जैनों द्वारा प्रतिष्ठापित तत्कालीन मादिनाथ की जात होती है। ऐसी ही केशराशि से युक्त जन प्रतिमाएं प्राज अपनी मक वाणी से नगर के वैभव एक प्रतिमा नबलपुर हनुमान ताल बड़े मन्दिर में, तथा को प्रकट करती है। इन तथ्यो के परिज्ञान के लिए एक प्रतिमा कुण्डलपुर दमोह के 'बडे बाबा' के मन्दिर प्राइए-पनागर स्थित बटरिया में निर्मित बड़े मन्दिर मे में विराजमान है। देवगढ़ में भी ऐसी ही एक प्रतिमा विराजमान प्राचीन प्रतिमाओं का अध्ययन करें- माज भी विराजमान हैं, जिसका उल्लेख डा. मागचन्द्र
ने अपने शोध प्रबन्ध में किया है । शान्तिनाथ प्रतिमा
यह प्रतिमा जिस शिलाखण्ड पर अंकित उपलब्ध बड़े मन्दिर के (नीचे) प्रथम प्रश में दो स्थल हैं हुई है वह लगभग ५ हाथ उचा मोर २ हाथ घोड़ा है। जहाँ प्रतिमाए विराजमान है । इनमें एक कमरे मे कायो- प्रतिमा के पीछे भग्न भामण्डल हैं । चरणों के पास सेवकों त्सर्ग मुद्रा में मनोहारी एक भव्य जैन शिल्ल विराजमान है की मानवाकृतियां भी अकित रही है। सेवकों के भग्नायह प्रतिमा एक ही विशाल शिलाखण्ड पर प्रकित की वस्था में प्रवशिष्ट चरण प्रलकृत दिखाई देते हैं। प्रल. गयी ज्ञात होती है। प्रतिमा परिकर विहीन है। भग्न कारो से कलाकारो की सूक्ष्म छेनी प्रयोग का माभास परिकर के प्रवशिष्टांशों से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिमा होता है। प्रतिमा का यदि सम्पूर्ण परिकर उपलब्ध होता के दायें वायें दोनों पोर देव मंकित रहे हैं। चरणों के तो निःसन्देह ही यह प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा मे महाकोशल पास उनके सेवक भी मंकित रहे ज्ञात होते हैं। प्रतिमा में एक अनूठी उपलब्धि होती। के दर्शन करने से प्रहार जैन क्षेत्र की शान्तिनाथ प्रतिमा प्राप्तिः-यह प्रतिमा कछयाने से उपलब्ध हुई बताई की प्राकृति का प्रतिभास होता है। परिकर का ऊपरी जाती हैं। इस उपलब्धि के सम्बन्ध में यह किंवदंति भी प्रश टूट गया है। प्रतिमा का प्रासन भी भग्नावस्था मे यहां प्रचलित है कि प्राचीन काल में एक व्यापारी ही है। प्रासन का वह भाग संभवतः टूट कर अलग हो कछयाने से होकर नित्य व्यापार हेतु चादर जाया करता गया है जिस पर लेख अंकित रहा होगा। यह भी सभा. था। उसे पति-जाते समय एक निश्चित स्थान पर पहुँचते वना इस प्रतिमा से अभिव्यक्त होती है कि प्रतिमा लेख हो एक पत्थर से चोट लग जाया करती थी। एक दिन विहीन ही रही होगी। कलचुरि कालीन जबलपुर हनुमान उसने उस पत्थर को निकालने का निश्चय किया। उसे तास बडे मन्दिर में स्थित प्रतिमा पर भी इसी प्रकार रात्रि मे स्वप्न पाया कि धीरे-धीरे खोदना । तसरे दिम