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उत्तर भारत में जन यक्षिणी बकेश्वरी की मतिपत अवतारणा
देवी के दसों हाथों में चक प्रदर्शित है। देवी दोनों होने वाले एक मम्य उदाहरण में(१०) देवी का वाहन पावों में चामर पौर मालाधारी सेविकानों द्वारा वेष्टित गरुड़ तीथंकर पादिनाथ के नीचे उत्कीर्ण है। देवी की है। मति के ऊपरी भाग में एक मासीन तीर्थङ्कर को दाहिनी छह भुजामों में वरद मुद्रा, बज, दो चक्र, प्रक्षचित्रित किया गया है। तीर्थङ्कर प्राकृति के दोनों भोर माला मोर खड्ग स्थित है, पौर बायें हाथों में तीन मे मालाधारी उड्डायमान गन्धर्व प्राकृतियां उत्कीर्ण है। ढाल मोर सनाल कमल प्रदर्शित है। शेष वक्षस्थल पौर १०वीं शती की एक अन्य मति खजुराहो के पार्श्वनाथ घुटनों पर स्थित मुजायं काफी भग्न है। इसी चित्र को मन्दिर के मण्डप के ललाट बिम्ब के मध्य में उत्कीर्ण है, ११वीं-१२वीं शती मे तिथ्यांकित किया गया है। द्वादका (७) जिनमें चक्रेश्वरी मानव रूप में प्रवशित गरुड़ पर भुजाभों से युक्त पश्वरी की एक अन्य मूर्ति एलोरा के ललितासन मुद्रा में मासीन हैं। चक्रेश्वरी की दाहिनी गुफा नं. ३० में देखी जा सकती है । (११) पयासम भुजामों के (ऊपर से नीचे) में कमल । ?), चक्र, गदा, मद्रा मे पासीन चक्रेश्वरी की मात्र पाच दाहिनी भुजा ही खड्ग पोर वरद मुद्रा प्रदर्शित हैं पोर बायीं भजामो मे शेष बची हैं, जिनमें (ऊपर से नीचे) कमल, चक्र, शख, चक, धनुष, खेटक, गदा भोर शख चित्रित है। पन्तिम चक्र और गदा प्रदर्शित है। देवी की छह दाहिनी भुजामों उदाहरण उडीसा स्थित उदयगिरि हिल के नवमूनि गुफा में से खड्ग धारण किये एक हाथ ही शेष वषा है। देवी से प्राप्त होता है,(6) जिसमें तीर्थकर मादिनाथ के नीचे के कमलासन के नीचे मानव रूप मे गरुड़ को चित्रित पक्रेश्वरी को एक पीठिका पर ध्यान मुद्रा में पासीन किया गया है। देवी के मस्तक पर एक पासीन तीर्थर व्यक्त किया गया है। पीठिका के समक्ष वाहन गा को मूतिगत किया गया है। चश्वरी के वाम पावं में उत्कीर्ण है । देवी की छह भुजाम्रो में पुष्प के समान चक्र एक चामरधारी स्त्री प्राकृति उत्कीर्ण है और दाहिने भोर सातवी में छिद्रयुक्त चक्र प्रदर्शित है। शेष तीन पाश्व मे दो स्त्री प्राकृतियां अवस्थित हैं, जिनमें से एक मुजामा म ढाल, प्रक्षमाला और योगममा प्रदशित
की भुजा मे चामर स्थित है।
मध्य प्रदेश के गोलकट नामक स्थल से प्राप्त होने उड़ीसा की खडगिरि को वारामजी गुफा के बरामदे
वाली एक मध्ययुगीन मूर्ति मे कमलासीन देवी को सोलह में उत्कीर्ण मूर्ति में द्वादश भुजामों में युक्त चक्रेश्वरी को
भुजायों से युक्त प्रदर्शित किया गया है ।(१२) देवी पूर्व दो कमलों पर ललितासन मुदा में पासीन प्रदर्शित किया
प्रतिमामों के सदृश हो मानव कप में उत्कीर्ण गरुड़ पर गया है।(6) पीठिका के नीचे वाहन गरुड़ को चित्रित
ललितासन मुद्रा में पासीन है। देवगढ़ पर बन द्वारा किया गया है। देवी के तीन दाहिने हाथों मे वरद मुद्रा,
दा, लिखित पुस्तक में दिये चित्र में देवी की दो दाहिनी खढ्ग भौर चक्र स्थित है पौर चार बायीं भुजायो मे
भजामों में अक्षमाला-पोर-प्रभय मुद्रा और खड्ग चित्रित एक वक्षस्थल के समीप स्थित है भोर शेष तीन में ढाल,
म ढाल, है। शेष देवी की तीन वाम भूजामों में तीन चक्र और घण्टा और चक्र उत्कीर्ण है । देवी की मम्य भुजायें खडित
शेष में शंख पौर कमल प्रदर्शित है। शेष भृजामों की हो चुकी हैं। शीर्ष भाग पर वृषभ चिन्ह से युक्त तीर्य
सामग्री चित्र में स्पष्ट नहीं दिख रही है। देवी के पृष्ठ हर की पासीन मूर्ति चित्रित है। इसी गुफा से प्राप्त भाग में उत्कीर्ण भामंडल पुष्प, गुलाब पोर मोतियों के ७.बुन, क्लाज, "दि फिगर मॉफ दि लोवर रिलीफ्स वृत्तों से अलंकृत है। समस्त सामान्य भलकरणों से युक्त बॉन दिपाश्र्वनाय टेम्पिल एट खजुराहो", पाचार्य १०.वही, पृ. १३०। श्री विजयवल्लभ सूरि स्मृति ग्रंथ, १९५६, अग्रेजी ११. गुप्ता, भार० एस० और महाजन, बी० डी०, विभाग, पृ०२४ ।
प्रजन्ता, एलोरा भौर पौरंगाबाद केवस, बम्बई, .मित्र, देवल, "शासनदेविज इन दिखडगिरि केवस" १९६२, पृ. २१६ । जर्नल पॉफ एशियाटिक सोसायटी, बा.नं. २, १२.अन क्लाज, दि जिन हमेजेज माफ देवगढ़, चित्र १९५६ पृ. १२८ ।
सं० २२७ विवरण मात्र चित्र पर प्राधारित हैं १. वही, पृ. १३३ ।
क्योंकि मेखक ने मात्र चित्रही प्रकाशित किया है।