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३८, वर्ष २५, कि.१
अनेकान्त
पर यहाँ देवी की निचली वाम भुजा भग्न है। यह चित्रण प्रदक्षित है और बायीं भुजापों में चक्र, कमल पौर ममय मन्दिर के पश्चिमी जगती पर देखा जा सकता है। मुद्रा चित्रित है। पीले वलुये प्रस्तर में उत्कीर्ण मूर्ति की शांतिनाथ मन्दिर (११वी शती) की पूर्वी दीवार पर निर्मिती के प्राधार पर ११वीं शती में तिय्यांकित किया उत्कीर्ण देवी की पासीन मूर्ति मे चक्रेश्वरी की ऊपरी जा सकता है। भुजामों में चक मौर निचली दाहिनी व बायीं में क्रमश:
१०वी शती में निर्मित प्रष्ठभुजी चक्रेश्वरी की एक वरद और फल प्रदर्शित है। दोनों भोर दो चामरधारी कांस्य प्रतिमा (१७.६ से. मी.x.५ से. मी.) सेवकों से वेष्टित चक्रेश्वरी का वाहन अनुपस्थित है। राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में शोभा पा रही है (नं०६७ ऋषभनाथ के जीवन की पांच घटनाओं (पांच कल्याणको) १५२)1(५) ललितासन मुद्रा में कमल पर मासीन का चित्रण करने वाली छत (सभासण्डप के पश्चिम भोर देवी के ऊपरी छह हाथों में चक्र स्थित है पोर निचली की छत) के मध्य में ऋषभनाथ के यक्ष-यक्षी, गोमुख व दाहिनी भुजा में वरद मुद्रा व्यक्त है, जबकि निचली वाम चक्रेश्वरी को मूर्तिगत किया गया है । चक्रेश्वरी ललिता. भुजा मे मातुलिंग (फल) प्रदर्शित हैं : देवी के मस्तक के मन मुद्रा मे भद्रासन पर बैठी है, जिसके समक्ष ही गर ऊपर बिछत्र से युक्त तीर्थहर की ध्यान निमग्न मति (मानव रूप) की प्राकृति उत्कीर्ण है। देवी की ऊपरी को उत्कोणं किया गया है। देवी के वाहन गरुड़ को अजामों में चक्र स्थित है, पोर निचलो दाहिनी व बायीं भासन के समक्ष मुर्तिगत किया गया है। अष्टभुजी चक्रे. मजामों में क्रमशः वरद व पंख प्रदर्शित है। देवी दोनों श्वरी का एक अन्य चित्रण खजुराहो के घण्टई मन्दिर पावों में दो चामरषारी स्त्री पाकृतियों से वेष्टित है। के ललाट बिम्ब पर उत्कीर्ण है। देवी मानव रूप मे प्रद
गुजरात के मेहसाना जिले के तारंगा हिल स्थित शित गरड़ के ऊपर ललितासन मुद्रा में पासीन है। अजितनाथ मन्दिर (११वीं-१२वीं शती) की दक्षिणी चक्रश्वरी ने ऊपर की दो मजामों में चक धारण जगती पर उत्कीर्ण प्रासीन मति में किरीट मुकुट से कर रखा है और निचली दो दाहिनी सुजानों में घण्टा सुशोभित देवी की ऊपरी दाहिनी व वाम मुजामों में गदा और फल (?) चित्रित है। देवी की दो निचली बायी व चक्र प्रदर्शित है, जबकि निचली दाहिनी व बायीं में भुजामों में एक लम्बी वस्तु (1) पम्भवतः पाश पौर वरदमुद्रा और शंख । देवी का वाहन अनुपस्थित है। कलश या फल (?) मकित है। बिल्कुल समान विवरणों वाला एक अन्य चित्रण दक्षिणी प्रतिमा शास्त्रीय प्रन्थों में दस मुजामों से युक्त बगती पर ही देखा जा सकता है, किन्तु देवी के मस्तक चक्रेश्वरी के उस्लेख के प्रभाव के बावजूद ऐसी तीन पर किरीट मुकुट नहीं उत्कीर्ण है। इसी मोर की एक प्रतिमाएं प्राप्त हुई है। पहली मूति (२४"४५३") जगती की एक अन्य मति में देवी की ऊपरी भुजामों में मथुरा के कंकाली टीला से प्राप्त होती है, जो सम्प्रति वरदमुद्रा व फल प्रदर्शित है। देवी के मस्तक पर किरीट मथुरा संग्रहालय (नं. टी-६) की निषि है।(६) इस मुकुट उत्कीर्ण है।
मूर्ति में देवी समभग मुद्रा में एक पीठिका पर खड़ी है। प्रतिमा निरूपण सम्बन्धी ग्रंथों के निर्देश के प्रभाव
देवो के पासन के नीचे गरुड़ की एक छोटी प्राकृति में भी चक्रेश्वरी की छह भजामों से युक्त मूर्तियां उत्तर उत्कीर्ण है। कमल के मलकरणों वाले मंडल से यक्त भारत में उत्कीर्ण की गई, इसकी पुष्टि खुजराहो के .शर्मा, बी० एन०, "मम्पमिशन प्राजिज इन दि मन्दिर नं. २७ के अन्दर स्थित मूर्ति से होती है। यह नेशनल म्यूजियम, नई दिल्ली" जर्नल दि मोरि. प्रतिमा (२२"४१५") वास्तव में बावली से लगे खुले पन्टल इन्सटिट्यूट, वा० १६, न. ३ मार्च १९७०, संग्रहालय की मूर्ति (के० २७-५०) है। ललितासन मुद्रा पृ.२७६। में गरुड़ पर पासीन षष्ठभजी चक्रेश्वरी की दाहिनी ६. वासुदेव शरण, अप्रवाल, मयुरा म्यूजियम केटमाग, मुजामों में (ऊपर से नीचे) चक्र, गदा पौर अभय मुद्रा ३, पृ. ३१।