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उत्तर भारत में जैन यक्षिणी चक्रेश्वरी की मूर्तिगत अवतारणा
दे पाना संभव न होने के कारण कुछ प्रमुख भूतियों मात्र हरण में देवी की निचली भुजाएं लटक रही हैं। राजस्थान का ही उल्लेख नीचे कर रहा हूँ। यह ज्ञातव्य है कि नीचे के पाली जिले में सादडी स्थित पार्श्वनाथ मन्दिर (११वी की सभी मतियाँ अप्रकाशित है। चक्रेश्वरी की तीन शती) की गूढ मडप की पश्चिमी दीवार पर चतुर्भज मूर्तियाँ राजस्थान के जालोर जिले की पहाडी (गिरिस्थ चक्रेश्वरी की त्रिभग मुद्रा में खड़ी मति उत्कीर्ण है, कुमार विहार) पर स्थित महावीर मन्दिर (१२वी शती) जिसमे देवी की चारों भुजामों में चक्र स्थित है। चारों की भित्तियो पर उत्कीर्ण है। चार भुजानो से युक्त भुजामों मे चक्र के प्रदर्शन के आधार पर इसे यक्षी तीनों खडी मतियोमे देवी ने समान प्रायूध धारण किये चश्वरी से अधिक विद्यादेवी अप्रति चक्रा के रूप में है। देवी की ऊपरी भजायो में चक्र स्थित है, जब कि स्वीकार करना उचित है। पर देवी के वाहन का पखनिचली दाहिनी व बायी में क्रमश: वरद व अक्षमाला युक्त होना प्रतिमाशास्त्रीय विवरणों के विपरीत है,
और कमण्डलु प्रदर्शित है । देवी का वाहन गरुड (मानव जिसमे बिद्यादेवी का वाहन पुरुष बतलाया गया है जब रूप मे) समीप ही हाथ जोडे उत्कीर्ण किया गया है। कि प्राकृति का पंख युक्त होना उसके गरुड होने की
राजस्थान के पाली जिले के नाडोल ग्राम मे स्थित पुष्टि करता है। पंखयुक्त मानव प्राकृति को हाथ जोडे जैन मन्दिरों (११वी शती) पर भी चक्रेश्वरी की कई प्रदर्शित किया गया है। राजस्थान के पाली जिले के मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। नेमिनाथ मन्दिर की दक्षिणी भित्ति घणेरा स्थित महावीर मन्दिर (१०वी शती) के मूलपर उत्कीर्ण चतुर्भज चक्रेश्वरी की भदामन पर ग्रामीन प्रासाद के पश्चिमी भित्ति पर उत्कीर्ण चक्रेश्वरी के मति मे देवी की कार भजामों मे चक्र व निचली दाहिनी ग्रामीन चित्रण मे देवी ने ऊपरी भ जाग्रो में चक्र धारण व बायी भुजायो म वरदमुद्रा और कमण्डलु चित्रित है। किया है, और निचली दाहिनी व बायो भुजायो मे वरद दोनो पार दो स्त्री सेवक प्राकृतियो से वेष्टित चकश्वरी व अक्षमाला और फल चित्रित है। इस मति से मिलनी. के वाहन को यहाँ नही उत्कीर्ण किया गया है। इसी जुलती एक अन्य मूर्ति मन्दिर के पूर्वी दीवार पर उत्कोर्ण मन्दिर के गूढ मण्डप की पश्चिमी भित्ति पर चक्रेश्वरी है, जिसमे उपयुक्त मूर्ति के विपरीत देवी के प्रासन की एक अन्य खड़ी मुक्ति उत्कीर्ण है, जिसमे देवी ने ऊपरी के समक्ष एक हाथ जोडे आकृति को उड्डायमान दाहिनी व बायी भजामो में गदा और चक्र धारण किया मुद्रा में उत्कीर्ण किया गया है, जो वस्तुत: गरुड का है और देवी के निचले दोनों हाथ नीचे लटक रहे है। चित्रण है। देवी का वाहन यहा भी अनुपस्थित है। इस मूर्ति की गुजरात के बनासकाठा जिले के कुमारिया स्थित विशिष्टता देवी के मस्तक पर किरीट मकूट का होना जैन मन्दिरों मे चक्रेश्वरी की कई मतियां उत्कीर्ण है, है । नाडोल के ही अपेक्षाकृत एक छोटे मन्दिर (अनन्त- जिनमे से कुछ का उल्लेख नीचे किया जा रहा है। नाथ मन्दिर) की दक्षिणी दीवार पर भी चक्रेश्वरी की सभवनाथ मन्दिर (१२वी शती) की दक्षिणी दीवार पर एक प्रासीन मूर्ति उत्कीर्ण है जिसमें देवी की ऊपरी चक्रेश्वरी की खडी मूति उत्कीर्ण है, जिसमे देवी के दोनों भुजाओं में दो चक्र स्थित हैं, जब कि निचला दाहिना पाश्वों में दो स्त्री चमर पारी प्राकृतियों को मूर्तिगत हाथ लटक रहा है । देवी की निचली वाम भुजा भग्न है, किया गया है। देवी की दोनों ऊपरी भुजामों मे चक्र और वाहन का चित्रण अनुपलब्ध है। नाडोल के ही पद्म. स्थित है और निचली दाहिनी से वरदमुद्रा प्रदर्शित हैं । प्रभ मन्दिर की जगती पर चक्रेश्वरी की तीन प्राप्तीन निचली वाम भुजा की वस्तु अस्पष्ट है। देवी के वाम मूर्तियां देखी जा सकती हैं जिन सभी मे देवी की ऊपरी पावं में गरुड (मानव रूप) की हाथ जोडे प्राकृति दो भुजानो मे दो चक्र प्रदर्शित हैं, और निचली दाहिनी उत्कीर्ण है । देवी सिर पर किरीट मुकुट से अलंकृत है। व बायीं भुजामों में कमशः वरद मोर फल (कमण्डलु ?); इसी मन्दिर की एक अन्य मति में देवी को गरुड पर अभय और कमण्डलु चित्रित है, जब कि एक अन्य उदा- मासीन प्रदर्शित विया गया है। देष विवरण पूर्ववत है