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________________ ३६, वर्ष २५, कि.. मत उत्कीणं गरुड़ भाकृति सहारा दे रही है। गरुड की देवी के वाम पार्श्व में पंख युक्त एक पुरुष प्राकृति क्षहिनी भुजा और शरीर का काफी भाग सम्प्रति भग्न उत्कीर्ण है जो देवी को वाहन गरुड़ का चित्रण करती हो चुका है । देवी के चरणों के समीप दोनों पाश्वो में दो है। चक्रेश्वरी अलंकृत शिरोभूषा, दुपट्टा, हार, धम्मिल,' काफी भग्न उपासक प्राकृतियों को नमस्कार मुद्रा में मेखला, घोती प्रादि सामान्य भाभूषणों से सुसज्जित है । मतिगत किया गया है। चक्रेश्वरी के मस्तक के ऊपर खजराहो के जैन मन्दिरों और संग्रहालयों मे भी प्रत्येक पाश्व मे एक मालाधारी उड्डायमान गधर्व का प्रकन चक्रेश्वरी की कई स्वतन्त्र भौर ललाट बिम्बों पर उत्कीर्ण प्रशंसनीय है। देवी मस्तक पर पलकृत मुकुट, ग्रीवा मे चतुर्भज प्राकृतियां देखी जा सकती है ।(४) खजगहो हार, कगन, कुण्डल प्रादि मामूषणों में सुशोभित है। की प्रधिकतर चक्रेश्वरी प्रतिमानों में मानव रूप मे इस चित्रण को शैली के प्राधार पर वी-१०वी शती के उत्कीर्ण गरुड पर ललितासन मुद्रा में प्रासीन देवी की मध्य तिथ्यांकित किया जा सकता है। चतुर्भुज चक्रे- ऊपरी दाहिनी और बायी भुजानों में क्रमशः गदा और श्वरी का एक अन्य अंकन देवगढ के मन्दिर न० १२ की चक्र प्रदर्शित है, और निचले दो हाथों मे अभय या बरद भित्ति पर देखा जा सकता है ।(२) देवगढ मे समस्त मुद्रा पोर शख चित्रित है। प्रादिनाथ मन्दिर के उत्तर पक्षिणियों को नवीन प्रायुधों व वाहनों के साथ व्यक्त की दीवार के अधिष्ठान पर उत्कीर्ण चक्रेश्वरी की किया गया है पर चक्रेश्वरी के साथ ऐसी स्थिति न होने निचली वाम भजा में शख के स्थान पर मातृलिंग (फल) के कारण इस सम्भावना को बल मिलता है कि जैन स्थित है। जैन धर्मशाला में कुये के समीप रखे ललाट अक्षिणी चक्रेश्वरी के निश्चित स्वरूप का निर्धारण अन्य बिम्ब के मध्य मे उत्कीर्ण चतुर्भुज चक्रेश्वरी के दोनों मक्षिणियों के पूर्व ही हो चुका था। समभग मुद्रा में खड़ी भजायो मे शख प्रदर्शित है। सभी चित्रणो मे चक्रेश्वरी देवी के चारों हाथों में चक्र प्रदर्शित है। देवी के दाहिने अल कृत मुकुट, हार, कुण्डल, कगन, नूपुर, बाजूबन्द, घोती पाश्र्व में एक लम्बी पुरुष प्राकृति खड़ी है, जिसकी भुजाएं प्रादि सुसज्जित है।। माराधना मुद्रा में मुढ़ी है। इस पुरुष भाकृति के पृष्ठ मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के बिलहरी नामक भाग में प्रदर्शित चक्र के प्राधार पर प्रो. ब्रन ने इसके स्थल से प्राप्त १०वीं शती की चतुभुज चक्रेश्वरी चक्र पुरुष होने की सम्भावना व्यक्त की है। चक्रेश्वरी मूर्ति मे देवी को ललितासन मुद्रा मे गरुड (मानवरूप मे) के वाम पार्श्व में खड़ी एक अन्य प्राकृति के साथ मे पर आसीन प्रदर्शित किया गया है । देवी की ऊपरी दोनो चामर व पद्म प्रदर्शित है, जबकि दूसरी भुजा कटि पर भुजानो मे चक्र स्थित है, जबकि निचली दाहिनी व स्थित है। देवी के मस्तक के ऊपर तीर्थदर की प्रासीन बायी मे क्रमशः वरदमुद्रा और चक्र प्रदर्शित है। देवी के प्रतिमा अवस्थित है। नवी शती में निर्मित इस मूर्ति में शीर्ष भाग के ऊपर दो सेवको से वेष्टित तीर्थकर की देवी का वाहन गरुड़ मप्राप्य है। देवकुलिका मे स्थापित प्रासीन मूर्ति उत्कीर्ण है। मूर्ति के प्रत्येक ऊपरी बोनो चतुर्भुज चक्रेश्वरी का एक अन्य चित्रण जोधपुर के पर एक मालाधारी गन्धर्व युगल और निचले भाग मे समीप स्थित प्रोसिया जैन मन्दिर (६६०-८२० शती) दो हाथ जोड़े उपासक प्राकृतियों को मूर्तिगत किया की पश्चिमी भित्ति पर उत्कीर्ण है,(३) जिसमे देवी के गया है। चारों भुजामों में चक्र प्रदर्शित है। त्रिभग मुद्रा मे खड़ी अपने शोधकार्य के सबंध मे हाल में राजस्थान व गुजरात के कई जैन मन्दिरो की मतियों के अध्ययन के २. ब्रुन, क्लाज, दि जिन हमेजेज प्रॉफ देवगढ़, सिडेन, __ दौरान मैने उन मन्दिरों पर जैन यक्षिणी चक्रेश्वरी की १९६६, पृ० १०५। अनेक मूर्तियां देखीं, जिन सब का विवरण प्रस्तुत लेख में ३. शर्मा, बी० एन०, "सम इन्टरेस्टिग टेम्पिल स्कल्प चरस एट प्रोसिया", रूपलेखा, नई दिल्ली, ४. खजुराहो के जैन शिल्प के स्वयं मेरे मध्ययन. पर वाल्यूम ३६। माधारित ।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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