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________________ विश्व संस्कृत सम्मेलन में जैन विद्या का प्रतिनिधित्व प्रेमसुमन जैन भारत की राजधानी दिल्ली मे (पहली बार) कुमार, बलवन्त सिंह महता, म. अजित सुकदेव, डा. यूनेस्को एवं भारत सरकार के सम्मिलित सहयोग से एन. एन. उपाध्ये, पं० दलसुम्व मालवणिया, डा.यू. पी. अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन का प्रायोजन किया गया। शाह, डा. प्रबोध पण्डित, डा. नेमिचन्द्र शास्त्री डा. पंच दिवसीय इस सम्मेलन में ४२ देशों के शताधिक दयानन्द भार्गव, डा० राजाराम जैन, डा. गोकुलचन्द्र संस्कृत के विद्वानों एवं लगभग पांच सौ भारतीय विद्वानों जैन, पं० परमानन्द शास्त्री, डा. हरीन्द्र भूषण जैन, पं. ने अपने गवेषणा पूर्ण निबन्ध पढ़े तथा विचार विमर्श में गोपीलाल 'अमर' मादि विद्वानों के साथ इन पक्तियों का भाग लिया। सस्कृत भाषा, साहित्य एवं दर्शन यादि के लेखक भी सम्मेलन के प्रतिनिधियों में सम्मिलित था। परिप्रेक्ष्य में प्राधुनिक विश्व जन अनेक समस्यानों के जैन विद्या के मध्ययन अनुसन्धान की उपयोगिता समाधान खोजने का प्रयल भी इस सम्मेलन में हुमा। पर देशी विदेशी विद्वानों के समक्ष प्रकाश डालने का यह सम्मेलन के अन्तर्गत मायुर्वेद सेमिनार एवं जैनविद्या सम्मेलन उपयुक्त स्थान था। किन्तु निम्न सात निबन्ध सगोष्ठी का प्रायोजन तथा विभिन्न सास्कृतिक कार्यक्रम ही इसमें पढ़े गये जो प्रमुख रूप से भारतीय वाङ्मय को विशेष प्राकर्षण के केन्द्र रहे हैं। व्यवस्था सम्बन्धी अनेक जैनाचार्यों के योगदान पर प्रकाश डालते हैं।। त्रुटियों के बावजूद इस प्रथम विश्व संस्कृत सम्मेलन को १ मैसूर विश्वविद्यालय मे जन विद्या विभाग के सफल ही कहा जायेगा। अध्यक्ष डा. एन. एन. उपाध्ये ने अपने निबन्ध संस्कृत, इस सम्मेलन मे जो निबन्ध पढ़े गये उन्हें संस्कृत प्राकृत एवं अपभ्रंश द्वारा इन तीनों भाषाओं में जैनासाहित्य का व्यापकता के कारण पांच भागो में विभक्त चायाँ हारा रचित प्रमुख ग्रन्थों पर प्रकाश डाला। किया गया था। यथा (4) संस्कृत एवं विश्व की भाषाएं २. विश्वधर्म सम्मेलन के प्रेरक मुनि सुशील कुमार (ब) संस्कृत एवं विश्व का साहित्य, (स) संस्कृत एवं ने न केवल अपना 'प्राचीन जैनाचार्यों का सस्कृत साहित्य विश्व चिन्तन, (ब) सस्कृत एवं विश्व संस्कृति भौर को योगदान' नामक योगदान पढ़ा, अपितु उमकी प्रका(इ) विभिन्न देशों व प्रान्तों का सस्कृत भाषा के विकास शित प्रतियां भी सम्मेलन के प्रतिनिधियों को समीक्षार्थ में योगदान । तदनुसार ही उनके वाचन एवं विचार- वितरित की, जिसमे प्रथम शताब्दी से १५वीं सदी तक विमर्श की अलग-अलग व्यवस्था थी। यद्यपि विद्वानों के जैन माचार्यों की सस्कृत रचनामों का विवरण दिया एवं प्रेक्षकों का जमघट विभागीय कक्ष 'स' में ही लगा गया है। रहता था। १. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डा. दया. संस्कृत साहित्य एवं भाषा के विकास में जैन नन्द भार्गव ने अपने 'जनानां संस्कृत काव्ये योगदानम्' प्राचार्यों का योगदान भारतीय एवं विदेशी विद्वान सभी नामक सम्मेलन की स्मारिका में प्रकाशित निबन्ध में स्वीकार करते हैं, किन्तु इस सम्मेलन में जैन संस्कृत अनेक जैन सस्कृत काव्यों के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डाला साहित्य का वह प्रतिनिधित्व नहीं हो सका, जो पपेक्षित है। जैन सस्कृत साहित्य के प्रचार-प्रसार के सम्बन्ध में था। यद्यपि अन्यान्य कारणों से अच्छी सख्या में न भी पापने अपने भाषण में विद्वानों का ध्यान प्राषित विद्वान इस समय दिल्ली में उपस्थित थे। मुनि सुशीम किया।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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