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________________ बैशाली गणपत्र का अध्यक्ष राजा बेटक लिच्छवि गणराज में जैनधर्म उत्पन्न हुमा । वे उसका पालन करने के लिए तत्पर हुए। भनेकों ने श्रावक के द्वादश व्रतों का अनुष्ठान किया। "विच्छनि गणराज में लिच्छवियों का धज्जियों का और.अनेकदीक्षित होकर प्रात्म साधना का कठोरता से बहुमत था। वे पार्श्वनाथ की परम्पग के श्रावक घे। पालन । पालन करने लगे। महावीर ने अपनी देशना मे धर्म का किन्तु महावीर के सर्वज्ञ सर्वदर्शी होने पर सभी. महावीर ___ स्वरूप विस्तार से बतलाया। और कहा कि जीवन को के अनन्य उपासक हो गए थे। राजा चेटक तो महावार arati बनाने का प्रावण बरना नितान्त का नाना था । और सिद्धार्थ भी वैशाली गणतंत्र का एक मारक है। बांग Hिam मनी है। हम राजा था। इस कारण वैशाली का सम्बन्ध महावीर से मा बलि सिम है। माम कति के घनिष्ठ था । महावीर वैशाली में अनेक बार पधारे, वहाँ निमल हुए बिना धर्म कैसे हो सकता है ? महावीर की की जनमा ने उनका प्रभूतपूर्व स्वागत पिया। उनके दिव्यवाणी सुनकर जनसाधारण की मांखे खुली; मौर वे दिव्य उपदेश से वहां जैनधर्म की बड़ी प्रभावना हुई। धर्म का स्वरूप और उसकी महत्ता को जानकर उसके उनकी इस महत्ता के दो कारण ये-एक तो वे वेशाला प्रवधारण करने के लिJ तत्पर हए। यद्यपि महावार के राजकुमार थे दूसरे सर्वज्ञ और सर्वदर्शी थे। वे हिसा का उपदेश अर्धमागधी भाषा मे हुमा था, किन्तु जनता को पूर्ण प्रतिष्ठा को प्राप्त हो चुके थे। उनके समक्ष जाति उसे अपनी भाषा मे समझने में समर्थ हो सकी। विरोधी जीव भी अपना घर छोड़ देते थे । महावीर को वह यह उनकी दिव्य वाणी का ही प्रभाव है । यद्यपि बुद्ध प्रशान्त मुद्रा देखन ही जाति विरोधी जीवों का वैर अपने भी वैशाली अनेक बार गए और वही उनका भी स्वागत प्राप शान हो जाता था। यह उनकी अहिमा की प्रतिष्ठा सत्कार हुमा । अम्बपाली या ने उन्हें दान भी दिया। का महत्व था। उनके दिव्य जीवन का प्रभाव अमिट बुद्ध ने वैशाली में मास भक्षण भी किया। जिसका उल्लेख होता था। उनका उपदेश भी जीवमात्र की रक्षा से भरे । स भी देखने में प्राता है। परन्तु चेटक बुद्ध के पास न तो मम्बन्धित था। उनके सिद्धान्तो मे पहिसा की प्रधानता उपदेश सनने गये. और न कभी दर्शक रूप में ही गये । थी। वैशालो में उनके कई महत्वपूर्ण उपदेश हुए, जिनका इससे जहा चेटक को मं निष्टता का पता चलता है वहां सम्बन्ध जनकल्याण की भावना से प्रोत-प्रोत था । उनका उसकी महावीर के प्रति मनन्य भक्ति का भी पाभास श्रोतामों पर विशेष प्रभाव पडा। उससे वैशाली के मिलता है। इन सब कारणो से वैशाली मे जनधर्म की निवासियो का वीर शामन के प्रति विशेष अनुराग निष्ठा या महत्ता का सहज ही माभास मिल जाता है। भगवंत भजन क्यों भूला रे । यह संसार रन का सुपना तन धन वारि बबूला रे ॥१॥ इस जीवन का कौन भरोसा पासक में तण पूला रे। काल कुदार लिये सिर ठांडा, क्या समझ मन फुला रे । २॥ स्वारथ साथ पांच पांव तू, परमारथ को लला रे। कह कैसे सुख है प्राणी, काम करें दुख मूला रे ॥३॥ मोह पिशाच छल्यो मति भार, निजकर कंध वसूला है। भजपी राजमतीवर 'भूधर,शेदुरमति सिरयूला रे ॥
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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