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________________ अनेकान् १५२५०१ ३- वेधानिक को नहीं मानते मोर वैधानिक का उच्छेद भी नहीं करते। ४ - वज्जि लोग जब तक गुरुजनों, वृद्धों का प्रादर सरकार करते रहेंगे । उन्हें मानते पूजते रहेंगे । ५- वज्जिगण कुलस्त्रियों, कुलकुमारियों के साथ बलात् विवाह नहीं करते । ६ - वज्जीगण अपने नगर के बाहर भीतर चंस्यों का बादर करते हैं उनकी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करते । त्रिों की धार्मिक सुरक्षा करते हैं। प्रतएव वे उनके यहाँ सुख से विहार करते रहे तब तक उनकी वृद्धि ही रहेगी, हानि नहीं हो सकती। वस्सकार ने अजात शत्रु को बतलाया कि के बुद्ध अनुसार यद्यपि वजि भजेय है फिर भी उपलान ( रिश्वत ) और भेद से उन्हें जीना जा सकतता है । भेद कैसे डालें, तब वस्सकार ने कहा प्रजातशत्रु ने पूछा कि आप राजसभा में वज्जियों की चर्चा करे, मैं उनके पक्ष में बोलूंगा । उस दोषारोपण मे मेरा सिर मुंडवा कर नगर से निकाल देना। मै कहता जाऊँगा - कि मैंने तेरे प्राकार परिखा श्रादि बनवाए हैं, मैं उन दुर्लभ स्थानों को जानता हूँ | मैं तुम्हें शीघ्र ही सीधा न कर दूं तो मेरा नाम वस्वकार नही । 1 इस कूटनीतिक घटना की खबर यद्यपि वज्जियों तक भी पहुँच गई और कुछ लोगों ने कहा यह ठंगी है उसे * गंगा पार मत धाने दो। यदि इस पर अमल किया जाता तो वैशाली का विनाश ही न होता। पर धन्य लोगों ने कहा यह घटना अपने ही पक्ष मे घटित हुई है । वस्सकार बुद्धिवान हैं, उसका उपयोग प्रजात शत्रु करता था, हम उसका उपयोग क्यों न करें। यह शत्रु का शत्रु हैं इस लिए समादरणीय है। किन्तु इस कूट कपट नीति के अान्तरिक व रूप पर गहरा विचार किए बिना ही वस्सकार को रख लिया । उसने थोड़े ही दिनों में वहाँ अपना प्रभाव अंकित कर लिग पर कूटनीति से जियों में भेद डालना शुरू कर दिया। भोर उसने लिच्छवियों में परस्पर विश्वास मोर मनोमालिन्य उत्पन्न कर दिया। जब वस्सकार का इस बात का निश्चय हो गया कि वज्जियो में परस्पर मे मनोमालिन्य और अविश्वास घर कर गया है और अब वज्जियों को जीतना आसान हो गया है तब उसने प्रजातशत्रु को प्राक्रमण करने के लिए कहना दिया। , प्रजातशत्रु ने तत्काल चेटक के पास पुनः दून भेजा पोर लिखित पत्र दिया, जिसमे लिखा था 'हार हाथी वापिस करो या युद्ध के लिए सन्न हो जो मौर चेटक की राजसभा में जाकर सिहासन पर लात मारो, दून ने वैशाली जाकर सा ही दिया। चेटक ने युद्ध करना स्वीकार कर लिया। दोनों ओर की मेनाथों में परस्पर युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध को प्रथो में 'महाशिलाकंटक' और 'रथ मूसल' नाम दिया गया है। दोनों भोर के लाखों योद्धा इस युद्ध मे काम पाए । कहा जाता है कि यह युद्ध १२ वर्ष तक चला। अजात शत्रु ( कुणिक) ने युद्ध मे विजय प्राप्त करने के लिए अनेक कूटनीतिक कार्य किये छल और विश्वासघात भी किया। वैशाली का अपार वैभव विनष्ट हो गया और वह खण्डहरों में परिणत हो गई। अजात शत्रु का वैशाली पर अधिकार हो गया। परन्तु हार और सचेतनक हाथी कुणिक के हाथ नही लगे । सचेतनक हाथी तो किले की खाईं की भाग में जल मरा और हार देव उठा ले गए । हल्ल बेहस्व भगवान महावीर के समवसरण मे दीक्षित हो गए। चेटक और उसके परिवार के सम्बन्ध में कुछ ज्ञाते नहीं होता । किन्तु यह बहुत संभव है कि व्रतिश्रावक था, घतएव उसने अनसनांदि द्वारा या दीक्षित होकर अपना शरीर विसर्जित कर दिया हो । क्योकि उसके लिए धन्य कोई मार्ग अवशिष्ट नहीं था पर परिवार के सम्बन्ध में कोई जानकारी नही मिलती । + I प्रजातशत्रु ने वैशाली पर अधिकार कर उसे अपने राज्य में मिला लिया । वैशाली की वह श्री सम्पन्नता समाप्त हो गई । यद्यपि वैशाली का बहुत कुछ विनाश हो चुका था, किन्तु उसका प्रस्तिस्व बहुत समय तक बना रहा | वंशाली के खण्डहर प्राज भी अपनी अवनति पर सू बहा रहे हैं। प्रोर जगत प्रसारता का प्रदर्शन कर रहे हैं ।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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