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________________ वैशाली गणतंत्र का अध्यक्ष राजा पेटक थे । एक कारण सो यह था कि राजा बिम्बसार (श्रेणिक) ने को राज्य दे दिया मोर हल्ल वेहल्ल को प्रजानशत्रु रश्नहार पोर सचेतनक हाथो । ये दोनों चीजें उसके राज्य के मूल्य के बराबर थी। बिम्बसार के मरने पर अजातशत्रु के भय से हल्ल बेहल्ल प्रपने नाना चेटक के पास चले गये थे। अजातशत्रु को जब यह मालूम धा तब उसने चेटक के पास दूर भेजा घौर कहलाया कि रवहार और संचननक हाथी सहित हल बेहाल को मेरे पास वापस भेज दो। चेटक ने कहा यदि मेरा नप्ता कुणिक इनको (हस्य को भाषा राज्य दे तो मैं हार और हाथी बास दिलवाऊँ क्योकि तुम तोनो मेरे लिए समान हो । वे मेरी शरण मे पाये हैं, मैं उन्हें वापस नहीं लोटाता । चेटक ने शरणागतो की रक्षा करना अपना कर्तव्य मानते हुए उन्हें नहीं लौटाया। कार बनाया जा चुका है कि कुणिक को धामी की सम्पन्नता खटकती थी सीमा विस्तार की इच्छा मौर वैशाली का वैभव उसके आकर्षण तो थे ही साथ ही वैशाली गणतंत्र के लोगों में उच्च कुलीन होने का भी तथा मगधराज कुल के प्रति घृणा का भाव था। वह भी कुणिक को प्राक्रमण करने के लिए उकसाना रहता था। वैशाली गणतंत्र की प्रोर मगध की सीमाएं मिलती थी । चेटक ने मगध को छोड़कर प्रत्य सीमा स्थित सभी राजाधों से मैत्री सम्बन्ध स्थापित कर लिया था। इस लिए यह संभव हो सकता है कि चेटक के मन मे प्रतिरोध की भावना रही हो । कुणिक के मन में भी राजा बेटक को भावनाओं को नीचा दिखाने की भावना हो सकती है। बौद्ध साहित्य से यह स्पष्ट है कि कुणिक झलकता वैशाली को नष्ट करने के लिए बहुत समय से तैयारी कर रहा था। इसमें तो सन्देह नहीं कुणिक (प्रजातशत्रु) प्रकृति से दृष्ट मौर क्रूर था. उसने षड़यंत्र कर अपने पिता को कैद कर उसे बड़ा कष्ट दिया था। इसी तरह उसने अपने नाना चेटक को भी कष्ट देने का उपक्रम किया। दूसरा कारण यह बतलाया जाता है कि गंगा के पास पतन मे एक रन खान थी। उस पर प्रजातशत्रु मोर लिच्छवि दोनों का अधिकार था धौर दोनों में परस्पर यह समझौता सम्पन्न था कि दोनों प्राघे मावे रत्न द्यापस મ मे बाँट लें। परन्तु अजातशत्रु वही न पहुंचता, प्राजकल करके रह जाता, किन्तु लिच्छवि सभी रत्न ले जाते थे । इन कारणों से प्रजातशत्रु के मन में लिच्छवियों के प्रति घोर प्रसन्तोष था । वह यह भी जानता था कि लिच्छ वियों से युद्ध करना कठिन है। उनका तीर निष्फल नहीं जाता। फिर भी उन्हें उच्छिन्न करना चाहता था । को राजगृह से गंगा पार कर लिच्छवियों से प्रजातशत्रु युद्ध करना सम्भव नहीं था। इसीसे उसने पाटलि ग्राम म एक किला बनवाया था । महात्मा बुद्ध को भी वैशाली की महत्ता सहा नहीं थी क्योंकि वहाँ जैनधर्म की महता भी यद्यपि बुड । वंशाली अनेक बार गये, पर वहाँ महावीर की मान्यता अधिक थी, वैसी मान्यता बुद्ध की नहीं थी । क्योकि राजा चेटक भगवान महावीर का अनुयायी भोर व्रती श्रावक या और जिनेन्द्र की पूजा करता था और जैन धर्म का प्रबल समर्थक था। चेटक कभी बुद्ध की सभा मे नहीं गया, धनुयायी होना तो दूर की बात है। बौद्धों के महापरिनिवाण सुत्त में (दो० नि० पृ० ११७) में लिखा है कि एक समय भगवान बुद्ध राजगृह मे विहार कर रहे थे। उस समय मगधर ज, भजातशत्रु, वैदेहो पुत्र वज्जि पर चढ़ाई करना चाहता था । वह ऐसा कहना था। मैं ऐसे महद्धिक (वैभव.सी) महानुभाव वज्जियों को उच्छिन्न करूंगा । वज्जियों का विनाश करूंगा- उन पर ग्राफत डाऊँगा । प्रजातशत्रु ने वस्सकार बुद्ध की सलाह लेने के लिए सपने मम्मी कार को युद्ध के पास भेजा था तब बुद्ध ने वैशाली शक्ति के सम्बन्ध मे वस्सकार को गृष्ट्रकूट पर्वत पर सात अपरिहानीय बातें बताई थी की प्रजेव १ जण जब तक सात बहुत है उनको प्रधिवेशनों में पूर्ण उपस्थिति रहती है । २ बज्जियों में जब तक एकता है-वे एकमत होकर कार्य करते हैं, सन्निपात भेरी के बजते हीं खातेबीते वस्त्र पहनते हुए भी क्यों के त्यों एकत्रित हो जाते हैं । १. ०४८४ मंसि
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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