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१८ वर्ष २५, कि.१
प्रनकान्त
का प्रसिद्ध सेनापति था। अन्य पुत्र भी यथायोग्य पदों के भाग्यविधाता होने के कारण उनका उत्तरदायित्व भी पर प्रतिष्ठिन थे। इस तरह चेटक वैशाली गणतन्त्र का अत्यधिक था। इस कारण वे अपने पद के लिये सदैव प्रसिद्ध राजा था। उसका कुटुम्ब अत्यन्त सम्पन्न था, सजग रहते थे । लिच्छवि राज्य के समस्त रानातक एवं प्रौर पुत्रियों के विवाह सम्बन्ध के कारण अनेक देशों के विवाद में अग्रणी थे। राजाप्रो के साथ उसका सम्बन्ध था। वह स्वयं बड़ा बुद्ध घोष की टीका में बताया गया है कि वज्जियों पराक्रमी था। उसे अपने जीवन मे अनेक युद्ध करने पड़े। में एक अपराधी को तभी दण्डित किया जाता था, जब उसका निशाना खाली नहीं जाता था। उसका यह नियम उसका अपगध सिद्ध हो जाता था। माठ न्यायाधिकरणों था कि वह शत्रु पर एक दिन में एक ही बाण चलाता था मे प्रत्येक न्यायाधिकरण को मह अविकार पा कि वह और वह अमोघ होता था। अहिंसक होने के कारण वह दोषी को मुक्त कर सके । न्यायालय के अधिकारियों के विरोध को अनेकान्त दृष्टि के समन्वय दृष्टिकोण से नाम इस प्रकार हैं-विनिच्छय, महामात्त, वोहारिक, मिटाता था। यदि प्रयत्न करने पर भी वह नहीं मिटता
सूत्रधार, प्रकुलिक, भाण्डागारिक, सेनापति, उपराजा था, तभी वह अपने शस्त्र बल का उपयोग करता था।
तथा राजा। इस तरह लच्छवियों या वज्जियो की न्याय वह प्रतिदिन जिन पूजा करता था और अन्य प्रावश्यक व्यवस्था बडी सुन्दर और कुशलता लोक प्रसिद्ध थी। कर्मों का पालन करता था। उसकी धर्म निण्ठता का यह
यद्यपि लिच्छवि राज्य में कई सामाजिक वर्गों के प्रबल प्रमाण है कि प्रजातशत् (कुणिक) द्वारा वैशाली
लोग रहते थे. जैसे ब्राह्मण, व्यापारी कृषक, कलाकार, पर पाक्रमण होने पर भी चेटक ने कभी धार्मिक मर्यादा
दास एवं सेवक । लेकिन केन्द्रीय सभा के सदस्य तो का उल्लंघन नहीं किया; किन्तु अजातशत्रु ने अनेक
लिच्छवि होते थे, (अर्थात क्षत्रिय ?) बौद्ध ग्रन्थों में जहाँ कूटनीतियों का अवलम्बन किया और छल छिद्र किये ।
हमें राजापो का उल्लेख मिलता है लिच्छवियों में वहाँ तभी वह वैशाली पर अधिकार करने में सफल हो सका।
हम राजकुमारों का भी निर्देश पाते है। इस निर्देश से __ इसी कारण वैशाली गणतन्त्र उस समय के सभी गण.
हम वंशगत कुलीन तत्त्व का ग्राभास पाते हैं। इस तरह तन्त्रो मे प्रधान था। चेटक का वश लिच्छवि था।
प्राचीन गणतन्त्र पूर्णतया जनतांत्रिक नहीं थे परन्तु कुछ लिच्छवि व्रात्य कहलाते थे और महंतों के उपासक थे ।
बात ऐसी भी थीं जो जनतन्त्र की ओर से उन्हें उन्मुख कर वे वेदविहित क्रियानों को नही मानते थे । यद्यपि मल्ल भी
रही थी । इससे लगता है कि प्राचीन गणतन्त्रों मे कुलीन व्रात्य थे। उनका भी गणराज्य था । मल्ल जनपद वज्जिय
तन्त्रात्मक व्यवस्था भी रही हो । पर जब हम लिच्छवियों जनपद के ठीक पश्चिम तथा कोशल के पूरब सटा हुपा
के मानवीय व्यवहारों का अध्ययन करते हैं तब उनके प्राधुनिक गोरखपुर जिले मे था। पावा और कुसावती
प्रौदार्य और सौजन्यात्मक व्यवहारों से इतर वर्षों से भेद या कुमीनाग (माधुनिक कसिया, गोरखपुर के नजदीक
की रेखा का माभास नही पाते। यही इस गणतन्त्र की पूरब) उनके यस्बे थे।
विशेषता यो। दूसरे लोग भले ही केन्द्रीय सभा के सदस्य शासन व्यवस्था-लिच्छवियो में कार्यकारिणी या
न रहे हों; परन्तु फिर भी उनमे किसी तरह का कोई मन्त्रिमडल की भी व्यवस्था थी । इसके सदस्य होते थे।
विभेद नही था। वैशाली गणतन्त्र की एकता, महत्ता जो राज्य सचालन की व्यवस्था पर या शासन के सम्बन्ध
मौर समन्वयात्मक नीति से उसकी प्रतिष्ठा गौरव की मे विचार करते थे। कार्यपालिका का प्रधान राजा समान
चरमसीमा को पहुँच चुकी थी । उसको वैभवपूर्ण प्रतिष्ठा श्रेणी व लो मे उच्चतर होता था। सभी प्रकार के मामले,
कुणिक (पत्रातुशत्रु को खलती थी, क्योकि वह महत्वा. देश की शान्ति, युद्ध, नागरिकता प्रादि का बहुपत स
कांक्षी था। प्रजातशत् (कुणिक)का खलने के दो कारण निर्णय मभी को मन्य होता था। महत्वपूर्ण समस्यापो
8. State and Government in Ancient India १. भारता इतिहास की रूप-रेखा पृ० ३१४ ।
By Altekar.