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________________ गाथा सप्तसती की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ___डा. प्रेम सुमन जैन एम. ए., पो-एच. डी. गाथासतसई का विद्वानों ने विभिन्न दृष्टि यो से चित्रित कर डाला। अध्ययन किया है, किन्तु अभी तक ग्रन्थ में उपलब्ध ३-मित्र उसे बनाना चाहिए जो विपत्ति पड़ने पर सास्कृतिक सामग्री का विवेचन नहीं हो सका है। प्राचीन ___ कहीं और किसी समय भीत पर लिखे गए पुतले की भांति भारतीय कला एवं सास्कृतिक जीवन के यद्यपि सकेत मुंह नही फेरता। मात्र ही गाथासतसई मे प्राप्त होते है, किन्तु उनसे इस तसइ म प्राप्त हात है, किन्तु उनस इस ४-विरह मे प्रासूमो के कारण नायिका को नायक रचना के निर्माण की पृष्ठभूमि स्पष्ट हो जाती है । कला के चित्र दर्शन का भी प्राधार जाता रहा। भौर साहित्य में प्रयुक्त कई अभिप्रायो को समझने में भी ५-चित्र मे लिखित मोदक की यथार्थता उसे स्पर्श सहायता मिलती है। करके ही ज्ञात की जा सकती है। (७.४१) गाथा सप्तसती मे प्रायः चित्रकला सम्बन्धी उल्लेख ६-रग और छाया सयोजन से रहित जिस रेखा. ईसा की प्रथम शताब्दी से गुप्त युग तक को भारतीय चित्र में एक पुरुष को आलिंगनबद्ध मकित किया जाता चित्रकला के विकास को सूचित करते है। प्रमुख चित्र है, वे पल भर को भी अलग नहीं होते है। संकेत इस प्रकार है : ७-मन प्राभा की बहुरगी तूलिकामों से हृदय १-अपते प्रति देवर के मन को विकारयुक्त जान फलक पर जिस चित्र का प्रकन करता है उसे विधाता कर कुल बधू सारे दिन घर की दीवाल पर राम का मनु- वालक की भांति हसता हुघा पोंछ देता है। गमन करते हुए लक्ष्मण के चरित्रों को चित्राकित करती चित्रकला से सम्बन्धित इन सन्दर्भो से ज्ञात होता है कि भित्तिचित्रो का जनजीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध था। २-दीवाल पर लिखे हुए अवधिसूचक दिवस सयुक्त परिवार में रहते हुए स्त्रिया चित्रांकन द्वारा चिन्हों को जल धारामों से सुरक्षित रखने के लिए मनोविनोद कर सकती थी । भित्तिचित्रों पर केवल प्राकृ. नायिका अपने हाथों से ढकने का प्रयत्न करती है। तिक दृश्य ही नहीं, अपितु पौराणिक कथाओं के दृश्य भी अन्यत्र नायिका की सखियां भीत पर लिखी हुई रेखानों चित्रित किये जाने लगे थे। अजन्ता के भित्ति चित्रों मे मे से दो-तीन रेखाएं चोरी से पोंछ डालती है ताकि बौद्ध दृश्यों की ही भरमार है। सम्भव है, वैदिक कथानायक के निश्चित समय पर न लौटने पर नायिका जीवन नकों के दृश्यों का चित्रण अजन्ता के चित्रों के बाद धारण कर सके (३-६) एक अन्य नायिका ने नायक के प्रारम्भ एवं जनसामान्य में प्रचलित हमाहो, जिसकी परदेश जाने के बाद प्राधे दिन में ही भीत को रेखामों से : ३. पढमविम दिग्रहदे कुड्डो रेहाहि चित्तलिम्रो ।।३.५ 4. भा. प्राच्य विद्या सम्मेलन के उज्जैन मधिवेशन ४. प्रालिहिअभित्ति बाउल्लप्रवण परम्मुह ठाइ ।३.१७ १९७२ मे पठित निबन्ध । १.दिपरस्स प्रसुद्धमणस्स कुलवहू णिग्रप कुड्डलिहिणाई ६. वण्णक्कमर हिस्स वि एस गुणोणवरि चित्त कम्मस्स । दिग्रहं कहेइ रामाणु लग्ग सोमित्तिचरिमाई ॥१.३५ णिमिस पि ज ण मुञ्चइ पिनो जणो गाढमुवऊढो ॥७-१२ २. झज्झा वाजत्तिणि अधर विवर पलोट्टसलिल पाराहिं, ७. जं जं आलिहइ मणो मासावट्टोहि हि मप्रफलमम्मि । कुइलिहि मोहिदिग्रहं रक्खाइ मज्जा कर मलेहिं ।।२-७. तं तं वालो व्व विही णिहमं हसिऊण पम्हसह ७-५६ ५.
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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