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________________ वराग्योत्पादिका अनुप्रेक्षा सकलनकर्ता: वशोधर शास्त्री [मैंने २-३ वर्ष पूर्व हिन्दी की बारह भावनाओं का संकलन करना प्रारम्भ किया था किन्तु कार्य प्रागे नहीं बढ़ा था। अब देहली में आने के बाद वीर सेवा मन्दिर के पुस्तकालय का उपयोग करने से अनेक ऐसी मावनाएँ उपलब्ध हुई जो अब तक नहीं मिली थीं। अब इनकी संख्या ३० से ऊपर हो गई है। इनमें कुछ तो बहत प्रचलित हैं जैसे पं० भूधरदास जी की 'राजा राणा..' वाली बारह भावना । जो भावनायें जिनवाणी संग्रह में प्रकाशित हुई हैं वे तो फिर भी प्रचलित हैं किन्तु उनके सिवा बारह भावनायें अधिक संख्या में हैं जो प्रचलित नही है। यदि प्रकाशित भी हैं तो वे सुलभ नहीं हैं। कुछ अभी तक अप्रकाशित हैं। कुछ पुराण या चरित्रों में हैं उन सबको एक जगह प्रकाशित किये जाने की आवश्यकता है। सरस्वती भण्डारों के गुटकों में अनेक अप्रकाशित भावनायें हैं जिनका संकलन एवं प्रकाशन प्रावश्यक है। अभी बाबू पन्नालाल जोअग्रवाल की कृपा से अनेक बारह भावनायें मिली हैं उनको भी हम यथावसर प्रकाशित करेगे। अभी चूंकि वारह भावनामों की रचनायें मिलने का क्रम चालू हैं इसलिए इन सबको पुस्तकाकार देने के पूर्व अनेकान्त में क्रमशः प्रकाशन करना उपयुक्त समझा है। पाठक चाहें तो इन बारह भावनाओं का संकलन अनेकान्त से कर सकते हैं।] बारह भावना पं० भूधरदासकृत (पार्श्वनाथ पुराण से) : अनित्य-राजा राणा छत्रपति, हाथिन के मसवार । मरना सब को एक दिन, अपनो अपनो बार ।। मशरण-दल बल देई देवता मात पिता परिवार। मरती बिरियां जीव को कोई न राखनहार ।। संसार-दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णावश धनवान । कहं न सुख संसार में, सब जग देख्यो छान ।। एकत्व-पाप अकेलो अवतरै, मरे अकेलो होय। यं कवहं इस जीव को, साथी सगा न कोय ।। अन्यत्ब-जहाँ देह अपनी नहीं तहाँ न अपना कोय। घर सम्पति पर प्रकट ये पर हैं परिजन लोय ।। अशुचि-दिपै चाम चादर मढ़ी हांड पीजरा देह । भीतर या समगत में और नहीं घिन गेह ।। प्रास्रव-मोह नीद के जार जगवासी घूमैं सदा। कर्म चोर चहं ओर सरवस लूटें सुध नहीं।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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