________________
२६. वर्ष २५, कि.१
भनेकाल
वजिमंघ में लिच्छवियों को ही प्रधानता थी। यह का उसा पोखरनी के जल से अभिषेक होता था। प्रत्येक इक्ष्वापूवी और वशिष्ठ गोत्री थे। इनका 'लिच्छवि' राजा के अपने अपने उप-राजा, सेनापति और भाण्डागानाम क्यो पड़ा यह वृछ जान नही होता। ये पराक्रमी, क होते थे । वंशाली मे इनके पृथक-पृथक प्रासाद पौर परिश्रमी पोरममा सम्पन्न थे । दयालु पोर परोपकारी मागम प्रादि थे। ७७०७ जाम्रो की शासन सभा
इनके शरीर की प्राकृति सुन्दर मोर मोहै सुडौन थी। 'सष सग' कहलाती थी और गणतन्त्र वज्जि सघ या ये लो। मनग-पलग रग के बहुमूल्य वस्त्र और माभूषण लिच्छवि संघ कहलाता था। लिच्छवि लोग परस्पर में पहनते पं । इनकी बोर्ड की गाडियां सोने को थीं। हाथी एक-दूसरे को छोटा या बड़ा नहीं मानते थे-वे सबको की अम्बा प्रौपालकी ये भी स्वर्ण-मित थीं। इनसे समान मानते थे। लिच्छवि राज्य के निवासी उच्चकोटि इनकी समद्धि का पता चलता है। बद्ध ने लिच्छवियो के का जीवन-यापन करनथे । उनके जीवन का उद्देश्य धन सम्बन्ध मे कहा था- जिन्होने तावनिस' (बायस्त्रिश) नही, किन्तु मर्यादा का संरक्षण था। उनमे जाति सगठन, देवता न देखे हों तो वे निच्छ वेयों को देख ले । लिग्छवियों शिक्षा, दीक्षा पोर धमिक कृत्यों प्रादि का प्रचलन था । का सष तानिश, देवतामो का सब है --।"
मामाजिक उत्मवी एव संस्कारों में बड़े समारोह के साथ शाली गणतन्त्र
कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता था। उनका प्राचार-विचार जि देश का र ज्य वंशाली गणतन्त्र के नाम से विशुद्ध था
विशुद्ध था । वे परोपकार करना प्राना कर्तव्य प्रसिद्ध था। इसमे पाठ गण थं-विदेह, ज्ञात्रिक,
मानते थे। लिच्छवि और बजि सम्मिलित थे। उग्र, भोग, इक्ष्वाकु वैशाली गणतत्र का अध्यक्ष राजा चेटक तथा कौरव भ्य चार गण । इनमे ज्ञात्रिक काश्यप वंशाली गणतन्त्र के अध्यक्ष राजा चेटक का उल्लेख गोत्र क्षत्रिय थे। मावन महावीर का जन्म इसी कुल बौद्ध त्रिपिटिक प्रथों में नहीं मिलता। वह पाश्र्वामें हुमा था। यह गणतन्त्र जिसका अध्यक्ष चेटक लिच्छवि पत्तीय परम्परा का अनुयायी श्रावक था। बौद्ध ग्रन्थों में था। उस समय के सभी गणन-त्रों में मुख्य था। लिच्छ वंशाली का उल्लेख तो अनेक प्रयो मे मिलता है। किन्तु वियों का शासन अत्यन्त व्यवस्थित था। जातक प्रकथा चेटक के सम्बन्ध मे नही मिलता। क्योंकि वह भगवान के अनुसार इस गणराज्य में ७७०७ राजा सदस्य थे। महावीर का अनन्य उपासक क्षत्रिय राजा था।
उप-राजा, सेनापति और भण्डारिक थे। इनमें इतम्बरीय प्रागम ग्रंथों में चेटक का निग्रंथ उपा. राजा या प्रगजा का कोई भेद नहीं था। इनमे प्रत्येक सक होने का उल्लेख नहीं है। हां, पावश्यक चूर्णी प्रादि व्यक्ति भनेको राजमानता था। ये सब राजा सम्भ- उत्तर कालीन अथो मे उसे अवश्य श्रावक बतलाया गया बतः अपने-अपने क्षेत्र के अधिकारी थे। उनका सगठित हेमचन्द्र ने त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरित मे चेटक का लिच्छ व गणराज्य था। पाणिनी के अनुसार इन को हैहय वश का बतलाया है। हैहय वश की उतात्ति राजापो का अभिषेक होता था। उनकी संज्ञा राजन्य' नर्मदा तट पर अवस्थित माहिष्मती के राजा कार्तवीर्य से पी। वैशाली में उनके प्रतिक मगल के लिए एक पोख- मानी जाती है। रनी थी, जिम पर कहा पहरा रहता था और कार भी श्वेताम्बरीय मावश्यक णि में लिखा है कि वशाली मोहे की जाली लगी रहती थी जिस से पक्षी भी उसके अन्दर - - षम नहीं पाते थे। वैशाली के सब राजा और रानियों ४. जातक ४ १४६
५. सो चेडवो सावनो, मावश्यक चुणि उत्तरार्ध पत्र १६५ १. देखियं राधा कुमुद मुकर्जी, Hindu civilization ____P.2011
(4) चेटकस्तुश्रावको'-त्रि.०५० चरित्र पव २. महापरिनिब्वान सुत्त-बुद्धघोष की टीका।
१०, सगं ६, पृ.१८८। ३. पाणिनी व्याकरण ६।२।३४॥
. ६. एपि प्राफिका इडिका भा॰ २, पृ.।