________________
वैशाली गणतंत्र का अध्यक्ष राजा चेटक
परमानन्द जन शास्त्री
लिच्छवि बंश का राजा चेटक बात प्रसिद्ध था। ईस्वी मुः परपुर जिले का वसाह नामक ग्राम, जो गण्डक नदी पूर्व पांच सौ निन्यानवे वर्ष के प्रथित भारतीय गण-गज्यों के तट पर अवस्थित है, प्राचीन समय का वैभवशाली में वैशाली गण गज्य उस समय सबसे प्रमुख माना जाता मोर म्याति प्राप्त महानगर था। वह तीन भागो मे था। उसका मध्यक्ष राजा चेटक था।
विभक्त था। वंशाली, वाणिय ग्राम भोर कुण्डग्राम । विदेह देश की राजधानी वैशाली थी। गण्डकी नदी इनमें कुण्डग्राम भगवान महावीर ब। जन्म स्थान था। से लेकर चम्पारन तक का प्रदेश विदेह अथवा तीरभुक उसमे णात, णात, नात, ज्ञात ण ह एव गाथ वशी (निरहन) नाम से ख्यात था। विदेहों और लिच्छवियों क्षत्रियों की प्रधानता थी। वैशाली नाम उसका विशा. के पृथक-पृथक राज्यो को मिलाकर एक ही संघ गण- मता के कारण हुपा था। राज्य बन गया था। उसका नाम वृजि या बजिनगण था। अंगुत्तर निकाय की ट्राथा में वैशाली की समृद्धि समूचे बजिन गण सघ की राजधानी वैशाली ही थी। का वर्णन करते हए लिखा है कि-'उम समय वैशाली उसके चारों पोर तिहरा परकोटा था जिसमें स्थान-स्थान ऋद्ध-स्फीत (समृद्धिशाली) बहुजन मनुष्यो से प्राकीर्ण, पर बडे-बई दरवाजे और गोपुर (पहरा देने के मीनार) सुभिक्षा (अन्न-पान-सम्पन्न) थी। उस में ७७७७ प्रामाद, बने हुए थे। वजिन देश मे पाजकल के चम्पारन, मुज- ७७७७ कटागार ७७७७ मागम और ७७७७ पुष्व - फरपुर जिला प्रौर दरभंगा का अधिकांश भाग तथा रिणी थी। छपरा जिले का मिर्जापुर. पग्मा, सोनपुर के थाने तथा तिम्वती प्रनश्रुति के अनुमार यह नगर तीन भागों अन्य कुछ भूभाग सम्मिलित थे',
में विभक्न था- पहला जिसमे मोने के बज वाले प्रासादों वजित देश की शासक जाति का नाम लिच्छवि' की प्रधानता थो। दूसरे में चादी के बज थे। तीसरे मे था। लिच्छवि उच्चवशी त्री थे। उनका वश उस तांबे और पीतल के। ये विभाग उच्च, मध्यम तथा समय प्रत्यन्त प्रतिष्टित समझा जाता या यह जाति निम्न श्रेणी के लोगों के लिए थे। अपनी वीरता, धीरता, दृढता पौर पगकमादि के लिए चीनी यात्री हंनत्सांग ने वंशाली को २० मील की प्रसिद्ध थी। इनका परस्पर संगठन और रीति-रिवाज, सम्बाई चौडाई में बसा हुमा बतलाया है। उसके तीन धर्म और शासन-प्रणाली सभी उत्तम थे। इनका शरीर कोटों भागों का भी उल्लेख किया है। उसने सारे जि अत्यन्त कमनीय, पोज और तेज से सम्पन्न था। देश को ५... मील (करीब १६०० मील) की परिधि
मलिनविस्तरा में वैशाली का वर्णन प्रत्यन्त ममृद्ध में फैला हुमा बतलाया है। उस समय यह देश बड़ा एवं सुन्दर नगरी के रूप में किया गया है। प्राधुनिक सरसम्ज था। प्राम, केले प्रादि मेवों के वृक्षो से भरपूर १. गणकीतीग्भारम्य चम्पारण्यान्तकं शिवे ।
था। यहाँ के मनुष्य ईमानदार, विद्या के पारगामी, शुभ विदेहभूः समास्याता तीरभक्ताभिधो मन।
कार्यों के प्रेमी विश्वासपात्र एवं उदार थे। परस्पर में
-शक्ति संगम तंत्र उनका वात्सल्य और सौहार्द अपूर्व था । वे एक-दूसरे के २. भारतीय इतिहास की रूपरेखा पृ० ३१३ । सुख-दुःख में साथी थे। सामाजिक और धार्मिक उत्सवों ३. पुरातत्व निबधावली पृ० १२।
में सभी सम्मिलित होते थे।