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२४, वर्ष २५, कि..
भनेकान्त बसदियों के प्रागे मानस्तम्भों के ऊपरी छोर पर एक मन्दिर की दीवारों पर देवी-देवतामों, उनके परिवार के छोटे मण्डप मे जैन मूर्ति रहती है । ब्रह्मदेवस्तम्भ के छोर दास-दामियों अथवा नर्तकियों, गायकों व वादकों की पर ब्रह्मदेव की मूति होती है। श्रवणबेलगोल की पार्व. मूर्तिया बनी हैं। जैन बसदियों में भी वैदिक देवी-देवनाथ बसदि के सामने का तथा मूडुबिदरे के "त्रिभुवन तामों के विग्रह दशिन है । शिल्पियों का उस सम्प्रदाय से तिलक चडामणि' चैत्यालय के सामने का मानस्तम्भ सम्बन्धित होना इसका कारण है। अनेक स्थानों पर बहुत ही सुन्दर है। कार्कल के हिरियंगडि का मानस्तभ मन्दिरो में कामशास्त्र से सम्बन्धित विग्रह भी हैं। मौर्य, भी बड़ा सुन्दर है। श्रवणबेलगोल का चन्दगिरि तथा गांधार, कुशान तथा गुप्त कालीन भवनों में ऐसे मिथुन विष्यगिरि एवं नागमगल तालुके के कवदहल्लि स्थित समागम के चित्र बनाने की प्रथा थी तथा दसवी सदी से ब्रह्मदेवस्तम्भ उल्लेखनीय हैं। कवदहल्लि का स्तम्भ ५० यह पद्धति बढ़ने लगी। परन्तु कर्नाटक मे ऐसे विग्रह फुट ऊंचा है।
बहुत कम है। खुजराहो, पुरी क मन्दिरो मे ऐसे विग्रह कर्नाटक के अनेक मन्दिरों में उनके शिल्पियो के प्राकार में बड़ है। पवित्र स्थानो में देव मूतियो के मध्य नाम अंकित हैं। दासोज ने श्रवणबेलगोल की चन्द्रगुप्त ऐसे विग्रह क्यो बनाये गये है, इसका समाधानकारक बसदि के पत्थर की जाली के पर्दे का निर्माण किया था। उत्तर आज तक किसी ने नहीं दिया है।
सबसे बड़ी कौन ?
व सागर की तरह है। क्या तू सामान भी हो सकता या तलवारों से
मुनि श्री कन्हैयालाल अक्ल, शक्ल, दौलत और मौत की एक दिन सहज गोष्ठी हो गई। वार्तालाप में चारों ही अपनी-अपनी गुरुता व अन्य की लघुता प्रमाणित करने के लिए व्यग्र हो रही थी। मर्व प्रथम प्रक्ल ने अपनी विशेषतामों का ख्यापन करते हुए कहा-मैं दुनिया में सबसे बडी हूँ। मेरे बिना समार का कोई भी काम चल ही नही सकता। राज्य संचालन में, सामाजिक व्यवहार मे तथा परपराणों के संचालन व सगठन आदि में सर्वत्र मेरा प्राधान्य है। किसी को विजयी बनाना तो मेरे बाएं हाथ का खेल है। बड़े-बड़े न्यायाधीशो के समक्ष वकील और वैरिस्टरों के माध्यम से मैं ही तो बहस करती हूँ।
शक्ल को यह सब सहन नही था । उसकी प्राखे खौलने लगीं। अघरावलि व दन्तावलि का कम्पन भूकम्प की तरह बढ़ने लगा और वह अक्ल की पोर घूरती हुई बोल पड़ी- क्या तू मुझे नहीं जानती? बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि भी मुझे देख कर खिल उठते है । और वर्षों की अपनी कठोर साधना को भी ताक पर रख देते है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने पाश में प्राबद्ध करने का मेरे में अतुल सामर्थ्य है । तू व्यर्थ ही इतनी क्यों फूलती है।
दौलत विद्युत की तरह चमकती हुई व सागर की तरह गर्जना करती हुई बोल उठी-शक्ल ! इतना अभिमान कसे? तेरे से भी अधिक गुण गरिष्ठ व्यक्ति ससार मे बहुत हैं। क्या तू यह नहीं जानती कि तेरी महत्ता का उपादान कौन है ? यदि मैं अपना हाथ खीच ल तो क्या तेरा कही यत् किंचित् सम्मान भी हो सकता है ? मेरे बिना तेरे सौन्दर्य मे स्थायित्व पायेगा कैसे! सारा ससार तो मेरे पीछे-पीछे दौड़ रहा है। चौबीसों घटे नगी तलवारों से मेरी रक्षा होती है । मेरे लिए बड़े-बड़े प्रक्लमन्द और सुन्दर-सुन्दर शक्ल वाले अपने प्राणों की पाहुति देने को तैयार रहते हैं । जहाँ मैं पहुँच जाती हूँ, वहाँ मेरा अपूर्व स्वागत होता है। फिर भी तू इतरा रही है । तनिक सा चिन्तन कर कि संसार में सबसे बड़ी कौन है ?
मौत की ईर्षा का ठिकाना न रहा । तीनों ही को सम्बोधित करते हुए मौत ने कहा-तुम तीनों ही झूठी हो। अपनी-अपनी विशेषताए वधारने में तुम तीनों को ही तनिक भी संकोच नही होता? मेरे समक्ष तुम तीनों का क्श मस्तित्व है ? मेरा प्रागमन होते ही तुम तीनों को झुकना पड़ता है और मेरी दृष्टि पड़ते ही तुम तीनों का ही सर्वस्व नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है। तुम तीनों ही मेरे तेज व प्रभाव से पाहत होकर मेरे चरण चूमने लग जाती हो। मेरे पीछेपीछे तुमको चलना पडता है । मैं जो चाहती हूँ, वही होता है। इसलिए संसार में सर्वत्र मेरा एक छत्र साम्राज्य है। सारा संसार मुझसे भयभीत है घबराता है, डरता है । शक्तिशाली भी मेरे सामने शक्तिहीन बन जाते हैं। मुझे मित्र बनाने के प्रयत्न चलते हैं, निमंत्रण मिलते हैं। फिर भी मैंने किसी के साथ मित्रता स्वीकार नहीं की। मैं अपने प्रण पर भडिग रही है। मैं किसी से डरती नहीं हूँ, घबराती नहीं है। विश्व में मेरा प्राधान्य होते हुए भी तुम तीनों झूठा महं. फार कर रही हो। यदि इस कथन में सन्देह हो तो क्या मैं अपनी तनिक-सी शक्ति का भी प्रदर्शन कर ?