SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाडनू की एक महत्त्वपूर्ण जिन-प्रतिमा देवेन्द्र हाण्डा लाडन उत्तर रेलवे के रतनगढ-डेगाना खण्ड पर एक सहस्र वर्ष पूर्व लाडनं एक महत्वपूर्ण नगर रहा रतनगढ़ से ५५ किलोमीटर दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम तथा होगा। यहां के गढ, मन्दिरों मस्जिदों तथा विभिन्न भवनों डीडवाना से ३१ किलोमीटर उत्तर-उत्तर-पश्चिम में की नीवों की खुदाई से प्राप्त प्रतिमानों, पूजा-पात्रों, स्थित राजस्थान के नागौर जिले का एक प्रसिद्ध ऐति- अभिलेखों एवं अन्य भग्नावषों से इसी प्राशय के प्रमाण हासिक नगर हैं, इस प्राचीन नगर की ऐतिहासिकता एव मिलते है कि इस नगर ने सवत् १०१० के पश्चात अनेक अवशेषो ने कई विद्वानों का ध्यान प्राकृष्ट किया है। राज्यों तथा विभिन्न धर्मों का उत्थान पतन देखा है। यद्यपि एक स्थानीय किंवदन्ती के अनुसार यहा के गढ़ का लाडन के उच्च शिखर, बृहत् दिगम्बर जैन मन्दिर मे निर्माण लगभग चार सौ वर्ष पूर्व हग्रा तथापि इसकी जो अब बाह्य घरातल से लगभग तीन मीटर नीचे पृथ्वी दीवालों में लगी मूर्तियों, उत्कीणं खण्डों एव अभिलेखो से मे धंसा प्रतीत होता है, लाडनं की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक स्पष्ट है कि इसके निर्माण मे दसवी शताब्दी के भग्नाव- एव घामिक धरोहर के दर्शन किए जा सकते है। यद्यपि शेषों का प्रयोग किया गया। निस्सन्देह प्राज से लगभग इस मन्दिर के अधिकतर अवशेषो- उत्कीर्ण स्तम्भों, १. गोविन्द अग्रवाल, "लाडनं की एक अद्वितीय सरस्वती अभिलेखों मृतियो, तोरणो तथा पूजा-पात्रो को प्रकाश मे प्रतिमा" । मरुभारती, वर्ष १६, प्रक २ (जुलाई लाया जा चुका है तथापि इसमे एक प्राचीन प्रतिमा ऐसी १९७१), पृ० ५१-२, “६०० वर्ष प्राचीन अनुपम है जिस पर ध्यान नहीं दिया गया है। यह प्रतिमा है कलाकृति-लाडनू", मरभारती, वष १६, प्रक३ जैन धर्म के अधिष्ठाता प्रादि तीर्थकर भगवान् ऋषभनाथ (अक्टूबर १९७१), १० ५२; ऐतिहासिक व की, जिसका विवरण निम्नलिखित पक्तियो में दिया जा सांस्कृतिक नगर लाडनू", विश्वम्भरा, वर्ष ७ मक रहा है । १ (जन्माष्टमी, विक्रम संवत् २०२८), पृ० ६२-६६ जिन कमलासन पर ध्यान मुद्रा मे प्रासीन है, जिनकी तथा युवक परिषद स्मारिका, लाडन, १९७१-७२; कर्ण-पालि (earlobes) लम्बी, 5 घन्वाकार, नयन मुन्नालाल पुरोहित, "लाडनू : एक ऐतिहासिक ध्यान-निष्ठ, नासिका त्रिकोणात्मक, प्रघर पूर्ण, ग्रीवा पर विवेचन", तथा वैद्य मोहनलाल दीक्षित, "लाडनूं के मांस-बलन, स्कन्ध विस्तृत एव गोलाकार तथा कर-पाद प्रतीत की एक झांकी", युवक परिषद स्मारिका, पञ्चदलीय-पुष्पों से मकित हैं । केश-काकुल कर्ण पालियों लाडनूं, देवेन्द्र हाण्डा, "लाडनूं के दो साभिलेख धातु- के साथ लगते हुए दोनों कन्धो पर गिर रहे हैं । शिरोरुह प्रतिमाएँ", मह भारती, वर्ष २०, प्रक ४ (जनवरी दाएं हाथ धमते हुए घुघर बनाते हैं मोर उष्णीष पर्याप्त १९७३), पृ०१६-१७; Devendra Handa and उन्नत है। वक्ष पर श्री वत्स अक तथा मुख पर परमाGovind Agrawal, "Another Magnificent नन्द-परिचायिका स्मित-रेखा स्पष्ट है । पीछे हल्का-हल्का Saraswati From Rajasthan", East and उत्कीर्ण पुण्डरीक-प्रभामण्डल है और ऊपर त्रिस्तरीय west, Rome (under print); Indian Ar- छत्र, जिनके दोनो पोर पाश्वों में बहुत सुन्दर ग से chacology 1968-69-A Review, p. 49. उत्कीर्ण हाथो में चोरी लिए परिचारिकाएँ खड़ी हैं। २. गोविन्द अग्रवाल के उपरिनिर्दिष्ट लेख। चौरी उनके दाएं हाथ मे है और वे कर्ण:कुण्डल, कण्ठ
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy