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नदृष्टि में मोक्ष : एक विश्लेषण
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निर्माण में जानारिगुणों का भी सर्वया उच्छेद नहीं से विलग हो जाती है तब इसका स्वाभाविक स्वरूप प्रकट होता-वैशेषिकों ने पात्मा के नव विशेष गुणों-बुद्धि होता है। जैन दार्शनिक भी मोक्ष-निर्वाण मे कमजन्य सुख-दुःख पादि का प्रत्यन्त उच्छेद रूप मोक्ष माना है। सुख दुःख प्रादि का विनाश तथा ज्ञान की स्थिति स्वीइनका कहना है कि इन नव विशेष गुणों की उत्पत्ति कार करते हैं। किन्तु यदि वे भी चंन्य का विनाश मात्मा और मन के संयोग से होती है। अत: मोक्ष की स्वीकार करने लगे तो परमतत्त्वरूप प्रात्मा का अपना अवस्था में मन के संयोग का प्रभाव होने से इन गुणों की । स्वरूप ही नष्ट हो जावेगा। उत्ति नहीं होती। इसीलिए.. प्रारमा वहां पर निर्गुण .
इसलिए जनदालिमपलेपण
स रहतासनी गुण कोसनिलीगु,
'गुणवत्मात्मा का उच्छेद स्वीकार किया गया है और न ही को सत्ता मोम में व्यवस्थित नहीं मानी जा सकती।
मात्मा के स्वाभाविक गुणों का सर्वथा विनाया। अमन इस सिद्धान्त में पात्मा के विशेष गुण 'बुद्धि'-(मान)का ।
सांस्कृतिक परम्पग मे मोक्ष की व्याख्या इस प्रकार उच्छेद मोक्षावस्था में स्वीकार करना सगत नहीं बैठता।
स्वीकार को पई है। जीव के समन को के जयका. यपि सांसारिक अवस्था में इन्द्रियों और मन के सयोग
अभिप्राय है कि कमपुद्गल जीव से सर्वथा मलम हो जाते से मांशिक सान मारमा को प्राप्त होता है। इसका प्रभाव
है। उनका सर्वथा (अत्यन्त) विनाश सम्भव नहीं होता। जी वहाँ सुनिश्चित है, किन्तु मात्मा का जो स्वरूप भूत
क्योंकि सत् पदार्थ का द्रव्यदृष्टि से कभी भी विनासन चैतन्य इन्द्रियों पोर मन से परे है, उसका उच्छेद तो
तो हमा है और न ही भविष्य में सम्भावित है। इसीलिए कभी सम्भव नहीं हो सकता। पोर न ही ऐसी कमी
मात्मा प्रपनी वैभाविक (कर्म सश्लिष्ट) परिणति का सम्भावना की जा सकती है।
परित्याग करके सर्वथा के लिए पसंश्लिष्ट हो जाता है। वैशेषिकों ने निर्वाणावस्था में पारमा की स्वरूप में इसी प्रकार चूंकि प्रात्मा एक स्वतंत्र व मौलिक चेतन स्थिति जिस प्रकार स्वीकार की है।वह स्वरूप ही 'इन्द्रि- पदार्थ है, तब फिर उसके मौलिक गुणों की भी मोक्ष में यातीत चैतन्य' है। यही चैतन्य इन्द्रिय-मन मादि पदार्थो विनाशकल्पना नहीं की जा सकती। अपितु उनकी निमं. के निमित्त से विभिन्न विषयाकार बुद्धि के रूप में परि- लता एवं विशुद्धि ही अपेक्षाकृत अधिकतर होती है। यही गत होता रहता है। जब यह पदार्थगत उपाधियां प्रात्मा बद्ध जीव का अभिप्रेत परामर्श होता है।
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