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________________ प्रसिद्ध उद्योगपति साहू शान्तिप्रसाद जोन का उद्घाटन भावन २४१ मामोद-प्रमोद का इन्तजाम हो। यदि हमने मोक्ष हेतु ने और धर्म साधकों ने बीज रूप मंत्रइस ससार को केवल हेय ही समझा, तो भाने वाली सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्राणि मोम मार्गः समाज को सन्तान भारतीय संस्कृति से बहुत दूर चली जायगी और दिया, जो परम सत्य है। किन्तु जो मार्ग मुक्ति का है। भगवान महावीर के जो ममतमय नैतिक उपदेश हैं, उनसे उस पर चलने से पहले जो संसार का लम्बा-चौडा मैदान मानवता वचित हो जायगी। है, उसमे किस प्रकार विचरण करना चाहिए। इसका समाज को स्वस्थ बनाने का उपाय भगवान प्रादिनाथ पूरा विधिवत उपदेश न मिलने के कारण समाज मे अनेक ने सुझाया, इसका विवरण मादिनाथ पुराण में विस्तृत विषमताये मा गई । जैसे स्थापना का सिद्धान्त तो सत्य रूप से है। उन्होंने सभी विद्यायो और कलामो को जन्म है, किन्तु उसकी प्रति के कारण बच्चे उसे समझ नहीं दिया, राजनीति, समाजनीति, युद्धनीति का विवेचन पाते हैं और उनके विश्वास पर चोट लगती है। स्थापना किया। भगवान मादिनाथ के बताये हुए रास्ते पर चल- वही करनी चाहिए, जह! उसकी परम प्रावश्यकता हो । कर स्वस्थ समाज का निर्माण ही हमारा लक्ष्य है, जो परिषद को भगवान मादिनाथ का बताया हुआ भगवान महावीर का उपदेश साधुपो को लक्ष्य करके कहा नैतिकता और मानव धर्म पर स्थित, जो श्रावक प्राचार गया है, उस पर दृष्टि तो रखनी चाहिए-किन्तु यदि परम्परा है उस पर अधिक बल देना चाहिए। उस मार्ग पर गृहस्थ रहते हुए चलने की कोशिश की तो समाज के सभी सूधारकों का मैं अभिनन्दन करता न हम घर के रहेगे न घाट के। हूँ। अनेक प्राज हमारे बीच नही हैं, उनकी सेवामों के चल तो सकेगे नही पौर विडम्बना मात्र कहे जायेगे। ही कारण प्राज जैन समाज देश की सभी प्रवृत्तियों में मुक्तिप्राप्ति शुक्ल ध्यान से होती है । हम धर्म ध्यान भी कधे-से-कंधा मिलाकर सहयोग दे रहा है और देश का नही कर पाते है। द्रव्यो की पूजा के द्वारा मोक्ष की सब प्रकार समद्ध और सबल बनाने में समर्थ होगा। कामना करते है-जो असंभव है। पूजा और दान से सद्- श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भगवान महावीर के गति की कामना भोर प्राप्ति ही सत्य है। २५००वें निर्वाणोत्सव की नेशनल कमेटी की अध्यक्षा-पद सद्गृहस्थ रहते हुए स्वर्ग मोर मनुष्य गति ही हमें स्वीकार किया है। हम उनके प्राभारी हैं और हमे प्राप्त हो सकती है । मुस्लिम प्राधिपत्य के समय मे ज्ञान विश्वास है कि निर्वाणोत्सव से देश का नैतिक बल बढ़ेगा का ऊहापोह होना असभव-सा हो गया था। प्राचार्यों और समाज सब प्रकार से सुखी होगा। अनेकान्त के ग्राहक बनें "अनेकान्त' पुराना ख्यातिप्राप्त शोध-पत्र है। अनेक विद्वानों और समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों का अभिमत है कि वह निरन्तर प्रकाशित होता रहे। ऐसा तभी हो सकता है जब उसमें घाटा न हो और इसके लिए ग्राहक संख्या का बढ़ाना अनिवार्य है। हम विद्वानों, प्रोफसरों, विद्यार्थियों, सेठियों, शिक्षा-संस्थानों, संस्कृत विद्यालयों, कालेजों, विश्वविद्यालयों और जैन श्रुत की प्रभावना में श्रद्धा रखने वालों से निवेदन करते हैं कि वे 'अनेकान्त' के ग्राहक स्वयं बनें और दूसरों को बनावें। और इस तरह जैन संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार में सहयोग प्रदान करें। इतनी महगाई में भी उसके मूल्य में कोई वृद्धि नहीं की गई, मूल्य वही ६) रुपया है। विद्वानों एवं शोधकार्य संलग्न महानुभावों से निवेदन है कि वे योग्य लेखों तथा शोधपूर्ण निबन्धों के संक्षिप्त विवरण पत्र में प्रकाशनार्थ भेजने की कृपा करें। -व्यवस्थापक 'भनेकान्त'
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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