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________________ २४० वर्ष २५, कि०६ अनेकान्त साहित्य के क्षेत्र में वीर शासन की परम्परा ने ससार को प्रयत्नों और राजनैतिक आन्दोलनों मे जिन भाइयों ने उत्कृष्ट काव्य, नाटक, चम्पू, कोष, इतिहास, वैद्यक और प्रमुख भाग लिया है, उन्होने राष्ट्रीय दृष्टिकोण से ही ज्योतिष प्रादि ग्रन्थो का दान दिया। इसी तरह वीर ऐसा किया है आज भी हम बहुमत से उन सब प्रवृत्तियों शासन के अनुयायियो ने रुचिर चित्रकला, सुन्दर स्थापत्य को राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध समझते है, जो देश की स्वाऔर मनोरम मूर्ति निर्माण-कला के उत्कृष्ट उदाहरणों से धीनता मे रुकावट डाले, उसकी एकता को नष्ट करे और कलाकौशन के वैभव को बढ़ाया है। उसे प्रार्थिक तथा राजनैतिक अवनति की ओर ले जाएँ। वीर शासन पोर जैन धर्म के उपासकों मे सभी वर्गो हम न तो हिन्दुनो से अलग राजनैतिक प्रतिनिधित्व चाहते और सभी श्रेणियों के व्यक्ति सम्मिलित रहे है। शिश- है, न भारत की वह मुखी एकता को खण्डित कर देने के नाग कदम्ब, चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव, सोल की प्रादि पक्ष में है। राजवंशों मे लेन धर्म को मान्यता थी, जिसका प्रमाण हमारा समाज व्यापार और खेतिहर प्रधान है। देश भारतवर्ष के कोने-कोने मे प्राप्त जैन तीर्थों, मन्दिरो और ने खेती में उत्पादन बढ़ाने के लिए खेतिहरो को प्राह्वान स्तूपो के शिलालेखो के रूप में मिलता है। किया था। हमारे खेतिहर समाज ने पूरा सहयोग दिया___ पिछली जनगणना के अनुसार जैनियों की संख्या २५ कइयों को कृषि पण्डित की उपाधि से सम्मान मिला, जो लाख कही जाती है, किन्तु वास्तव मे जैन धर्म के मानने समाज का हिस्सा गरीबी के कारण नगण्य-सा हो गया वालो की सख्या करीब ८० लाख से ऊपर होगी, ऐसा था उन्होने पिछले कई वर्षों में धार्मिक कार्यों में बहुनमेरा अनुमान है । जनगणना के समय बहुत से जैनी अपने सा धन दिया है। तीर्थों की रक्षा के लिए सबसे अधिक को हिन्दू लिखवाते है, बहुत से वैश्य, बनिया अथवा सरा- धन महाराष्ट्र और कन्नड के खेतिहरो से ही मिला है। वगी प्रादि । जैनियो ने जनगणना में अपनी जाति और बगाल और बिहार का खेतिहर समाज भी उन्नतिपथ धर्म ठीक-ठीक भरवाने मे सामूहिक रूप से कुछ उपेक्षा पर है। दिखाई है। इसके अतिरिक्त सराक, मीना, कलार प्रादि आज हमारी प्रधान मत्री श्रीमती इन्दिरा गाधी बेरोजातियो के लाखो की सख्या में ऐसे लोग है, जिनमे पहले जगारी हटाने के अभियान से छोटे उद्योगो को बढ़ाने के जैन धर्म प्रचलित था और पाज यद्यपि जैन धर्म और लिए बहुत बल दे रही हैं और उन्होंने गल्ले के व्यापार जैन समाज से उनका सीधा सम्पर्क टूट गया है, फिर भी का स्वामित्व राज्य को दिया है। उद्योग का कार्य व्यापार वे साल में किसी विशेष त्यौहार के दिन अथवा शादी. से कुछ कठिन होने पर भी हम व्यापारियों को उद्योग विवाह के अवसर पर जैन मन्दिरों मे जाकर अपनी विधि मे लग जाना चाहिए, इससे हमारा और देश दोनो का से भगवान की पूजा करते है। इन जातियों में धर्म को लाभ होगा, परिषद का यह एक मुख्य कार्यक्रम होना पुनर्जागृति करना, उनके सस्कार को सुधारना और सबसे चाहिए। हमे इसके लिए सब स्तर पर कमेटियों का गठन बड़ी बात यह कि उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और जीविका करना चाहिए। की ओर ध्यान देना मानवता की दृष्टि से भी जैन समाज पश्चिमी सभ्यता इस देश में तेजी से बढ़ रही है, 47 विशेष कर्तव्य हो जाता है। प्रामिष भोजन और शराब का प्रचार तेजी पर है। यहाँ यह बात हमें स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि हमारी सरकार स्वस्थ भोजन के नाम पर आमिष भोजन यद्यपि जैनियों का धर्म और उनकी संस्कृति वैदिक संस्कृति के पक्ष मे है। ऐसे कठिन समय मे परिषद को निरामिष से भिन्न है और वह हिन्दू धर्म की न शाखा है और न भोजन की परम्परा को बनाये रखने के लिए बड़े और अग, पर जहाँ तक हमारे समाज का सम्बन्ध है, हम छोटे शहरों में निरामिष क्लब, निरामिष भोजनालय, विशाल हिन्दू संघ के साथ है और सामाजिक तथा राज- निरामिप होटल बनाना और उन्हें जनप्रिय बनाने का नैतिक मामलों में उससे मभिन्न है । देश के अनेक सुधार- प्रोग्राम बनाना चाहिए। इन सब स्थानों पर स्वस्थ
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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